नयी दिल्ली : राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए गए. लेकिन समारोह का 65 वां संस्करण तब विवादों में आ गया जब कई विजेताओं ने राष्ट्रपति के हाथों चुनिंदा विजेताओं को ही सम्मानित किये जाने का विरोध किया. कई लोगों ने इसके विरोध में समारोह में हिस्सा नहीं लिया. परंपरा के उलट इस बार विज्ञान भवन में आयोजित समारोह दो हिस्सों में बंटा था.
पहले चरण में पुरस्कार केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री एवं राज्य मंत्री स्मृति ईरानी एवं राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने प्रदान किये. पंकज त्रिपाठी को स्मृति ईरानी ने फिल्म ‘न्यूटन’ के लिए फीचर फिल्म कैटेगरी में सम्मान दिया गया.
दूसरे चरण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रमुख पुरस्कार भेंट किए जिनमें विनोद खन्ना एवं श्रीदेवी के लिए मरणोपरांत क्रमश : दादा साहेब फाल्के और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार शामिल थे. श्रीदेवी को ये सम्मान फिल्म मॉम के लिए दिया गया. श्रीदेवी के लिए ये सम्मान लेते समय बोनी और उनकी बेटियां भावुक हो गईं. राष्ट्रपति ने अपने भाषण में कहा , ‘हमें हमेशा उनकी कमी खलेगी.’
समारोह का रिहर्सल हुआ था और जब विजेताओं को पुरस्कार भेंट किए जाने के तरीके में बदलाव की जानकारी दी गयी तब सभी को राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार नहीं दिये जाने को लेकर विरोध की सुगबुगाहट होने लगी थी. पारंपरिक रूप से राष्ट्रपति ही राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के सभी विजेताओं को पुरस्कार प्रदान करते हैं.
कौशिक गांगुली की फिल्म ‘ नगरकीर्तन ‘ ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, विशेष ज्यूरी, मेक अप और कॉस्ट्यूम सहित कई पुरस्कार जीते. वे समारोह से दूर रहे हालांकि फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीतने वाले रिद्धि सेन मौजूद थे. समारोह में हिस्सा ना लेने वाले कलाकारों के नामों की घोषणा नहीं की गयी.
नगरकीर्तन ‘ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीतने वाले रिद्धि सेन ने कहा , ‘‘ हर कोई हल्का नाराज है क्योंकि हमें आखिरी समय में इस बदलाव के बारे में पता चला. यह सही नहीं लगता क्योंकि देश भर से लोग राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार लेने के लिए अपने परिवार के साथ यहां आए हैं.’ सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार जीतने वाली शाशा तिरूपति ने कहा कि उन्हें अपनी जीत पर खुशी है लेकिन जिस तरह से विजेताओं को यह खबर दी गयी उससे उन्हें ‘‘ काफी समस्या ‘ है.