हर साल कश्मीर जाती हूं और वहां के संगीत को आत्मसात करती हूं: विभा सर्राफ
‘राजी’ फ़िल्म के दिलबरो गीत को अपनी आवाज़ से सजाने वाली विभा सर्राफ इस गीत को बहुत खास बताती हैं. मूल रूप से कश्मीर की रहने वाली विभा का इस गीत से बचपन का जुड़ाव रहा है. विभा अब तक कई फिल्मी गीतों और जिंगल्स को अपनी आवाज़ से सजा चुकी हैं. वह गीत लिखती […]
‘राजी’ फ़िल्म के दिलबरो गीत को अपनी आवाज़ से सजाने वाली विभा सर्राफ इस गीत को बहुत खास बताती हैं. मूल रूप से कश्मीर की रहने वाली विभा का इस गीत से बचपन का जुड़ाव रहा है. विभा अब तक कई फिल्मी गीतों और जिंगल्स को अपनी आवाज़ से सजा चुकी हैं. वह गीत लिखती भी हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
फिल्म ‘राजी’ का दिलबरो गीत कितना आपके लिए खास है ?
अभी तक मैंने कुछ छह फिल्मों के लिए गाया था जिसमें हाइजैक और धनक जैसी फिल्में शामिल है. राजी की तुलना में उतनी बड़ी फिल्म नहीं थी. बड़ी फिल्म बड़ी स्टारकास्ट का मतलब काफी सारे लोग देखते हैं क्योंकि मैं पहले मैं कंसल्टेंट भी रह चुकी हूं तो मेरे पहले प्रोफेशन के लोगों ने जो अब तक मुझे याद नहीं किया था. वो राजी के बाद मुझे मैसेज करते हैं तो अच्छा लगता है. वैसे मुझे राजी के दिलबरो के गाने से जुड़ने की बहुत खुशी हुई क्योंकि मैं जब साढे चार साल की थी तब से मैंने अपनी मां को दिलबरो का जो खान मुईचको पार्ट है. वो गाते हुए सुना था. एक तरीके की खुशी है कि जो मां ने बचपन में मेरे गाया था. वो बड़े होकर मैं उसे एक अलग रुप दे पा रहीहूं. उनके ख्वाबों को उनके इमोशन को .
‘राजी’ के दिलबरो गीत का हिस्सा किस तरह से बनी ?
राजी का सफर मेरा इस तरह से शुरु हुआ था कि मैं पिछले तीन साल से शंकर एहसान लॉय के साथ जुड़ी हुई . मैंने उनके लिए कई एड जिंग्लस गाएं हैं. फिल्मों के लिए भी सिंगिंग ऑडिसन दिया लेकिन बात नहीं बनी लेकिन हां इस बीच वो लोग जानने लगे कि मैं कश्मीरी फोक गाती हूं. जिस वजह से उन्होंने मुझे राजी के लिए बुलाया. कश्मीर के जितने भी पोएट है. उनमे से किसकी रचना सहमत की सिचुएशन को शूट करेगी. इस पर हमारा बकायादा पूरा सेशन हुआ. जिसमे निर्देशिका मेघना गुलजार और लीजेंड गुलजार साहब भी शामिल थे. मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ. दरअसल सबकुछ अचानक ही हुआ था. मुझे एहसान का कॉल आया था कि आप मुंबई में हो. मैंने कहा कि हां तो स्टूडियो आ जाओ. हम एक फिल्म पर काम कर रहे हैं. जो कश्मीर के आसपास की है. मैं स्टूडियो पहुंची और गुलजार साहब को देखा कुछ वक्त तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ. जिनके बारे और जिनके काम के बारे में हम अब तक सुनते आ रहे हैं. उनको इस तरह से सामने देखना यकीन करना मुश्किल होता है. उनकी किॅएटिव प्रोसेस का हिस्सा बनना एक अलग ही खुशी देती है.
गुलजार साहब से आपकी क्या कुछ बात हुई ?
ज्यादा नहीं वह बहुत कम बोलते हैं. मेरी ज्यादा बातचीत मेघना गुलजार से ही हुई. गुलजार साहब ने मुझसे पूछा कि क्या तुम कश्मीरी हो उसके बाद उन्होंने बताया कि उन्होंने कश्मीर में अपनी बेटी मेघना के साथ काफी समय बिताया है ।वह सेंटूर होटल में रहते थे।तब मैंने कहा कि आप तो कश्मीर को मुझसे ज्यादा जानते हैं क्योंकि मुझे तो 90 के आसपास कश्मीर में हुए हिन्दू मुस्लिम दंगों के बाद उसे छोड़ना पड़ा था. उनसे दिलबरों गाने पर बहुत बात हुई क्योंकि उन्होंने गाने को पूरी तरह से समझने के बाद ही उसका अंतरा लिखा था.
क्या आपको लगता है कि कश्मीर बहुत सारी बॉलीवुड फिल्मों में नजर आया है लेकिन कश्मीरी लोकगीत और संगीत गायब से रहे हैं
मैं इसके लिए कुछ नहीं कह सकती हूं. ये उन लोगों पर भी निर्भर करता है कि जो लोग वादी से निकले है और संगीत से जुड़े हैं और वह वहां के संगीत को किस तरह से जिंदा रखे हुए हैं. बहुत सारे म्यूजिशियन कश्मीर से आते हैं लेकिन क्या वह अपनी जड़ो से जुड़े हुए हैं. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि अपने संगीत में हम जहां से आते हैं. वहां की खुशबू को बरकरार रखें. बॉलीवुड में ज्यादा प्रचलित नहीं रहा है. शंकर एहसान लॉय ने ही आखिरी बार मिशन कश्मीर के गीत बुमरो में वहां के लोकगीत का इस्तेमाल किया था. शांतनु मोइत्रा ने भी किसी फिल्म में थोड़ा बहुत किया था.
आपकी कितनी कोशिश रहती है कश्मीरी गीत संगीत को लाने की ?
मैंने जो अपना बचपन कश्मीर में जीया नहीं है. चाहे जिस भी वजह से. वहां के गीत संगीत से ज्यादा से ज्यादा जुडकर मैं उसे कमी को पूरा करने की कोशिश करती हूं. मैं हर साल कश्मीर जाती हूं. वहां के लोक संगीत से ज्यादा से ज्यादा जुड़ती हूं ताकि मैं अपने साथ उसे मुंबई ला सकूं. मेरी तरफ से ये हमेशा कोशिश रहेगी कि मैं जिस क्षेत्र से हूं वहां की खूबियां वहां की पॉजिविटी मैं पूरी दुनिया को दिखा सकूं. अगर दिलबरों गीत से मैं जुड़ी हूं तो इसी वजह से की मेरे से जुड़े लोगों को पता है कि मैं वहां के गीत संगीत की समझ रखती हूं क्योंकि मैं ये बात बताती हूं.
संगीत की तरफ आपका रुझान कब हुआ था ?
मैं चार साल की थी जब मुझे मेरे के सिंगर के बारे में मुझे पता चला था. मैं अपने मम्मी पापा के साथ ट्रेन में जा रही थी. हमारी अगली में कुछ लड़कों ने अंताक्षरी का खेल शुरु कर दिया. मैंने भी उनको ज्वॉइन किया. उन्होंने मेरे माता पिता को बताया कि मैं बहुत अच्छा गाती हूं. मैंने पहली बार एक टेलिफिल्म के लिए गाया था हब्बा खातून. मेरी उम्र उस वक्त १० साल की रही होगी. उसके बाद मैं पढ़ाई के साथ अपना संगीत से लगाव भी जारी रखा. मैं स्कूल कॉलेज में हमेशा परफॉर्म किया करती थी. मैंने अपने कॉलेज के दिनों में इंडियन क्लासिकल संगीत को स्वर्गीय शांति शर्मा से सीखा है. सीखना अभी भी जारी है. हां किसी गुरु से न सही. आसपास की चीजों और लोगों से सीखती हूं.
आपकी अब की जर्नी में आपका संघर्ष क्या रहा है ?
मैं नहीं कहूंगी कि मेरा कोई संघर्ष रहा है.मैं इससे पहले एक फाइनेंशियल कंपनी में कंसल्टेंट थी. मुंबई में आए मुझे पांच साल हो जाएंगे. अब तक मैं सौ से डेढ सौ एड फिल्म किए है. टेलिविजन प्रोमो में आवाज दी है. वॉइस ओवर भी करती हूं. कई महत्वपूर्ण फिल्मों से भी मेरी जुड़ी है. हालिया रिलीज फिल्म हाइजैक में मैंने बहका गाने को लिखा और कंपोज भी किए. संघर्ष वो है जो आपका दिल नहीं करता वो आप काम करते हैं. जिस काम को आप करना चाहते हैं और वो आपको मिल रहा है. अपने पसंद का काम करने में थोड़ा समय तो लगता ही है लेकिन वह संघर्ष तो नहीं होगा क्योंकि आप अपने दिल का काम कर रहे हैं.
आनेवाले प्रोजेक्ट्स
मैं गीत लिख रही हूं. उनको कंपोज़ करने की भी मेरी तैयारी है. इसके अलावा कई फिल्मों के लिए भी बातचीत चल रही है.