उर्मिला कोरी
फ़िल्म: धड़क
निर्देशक: शशांक खेतान
निर्माता: करण जौहर
कलाकार: जाह्नवी कपूर, ईशान खट्टर, आशुतोष राणा, अंकित बिष्ट, श्रीधरन और अन्य
रेटिंग: तीन
मराठी सिनेमा की सबसे कामयाब फ़िल्म ‘सैराट’ का हिंदी रीमेक धड़क है. वैसे दो लोगों के बीच प्यार और घर एवं समाज की नफरत फिल्मों के लिए नया नहीं है. सैराट से पहले ‘कयामत से कयामत तक’ और उससे पहले ‘एक दूजे के लिए’ जैसी कई फिल्मों की कहानियां ऑनर किलिंग जैसे मुद्दे पर ही थी. श्रीदेवी की फ़िल्म ‘जाग उठा इंसान’ भी इसी विषय पर थी अब उनकी बेटी जाह्नवी कपूर की लॉन्चिंग फ़िल्म की कहानी भी इसी पर है.
‘धड़क’ की बात करें तो धड़क मधुकर (ईशान खट्टर) और पार्थवी (जाह्नवी) की कहानी है. कहानी का बैकड्रॉप राजस्थान है. मधुकर और पार्थवी दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं.
लेकिन दोनों के बीच पैसों और जाति की खाई है लेकिन आर्थिक असमानता का फ़िल्म में एक बार भी जिक्र नहीं हुआ लेकिन ऊंची नीची जाति का कई बार. मधु छोटी जाति का है. अपने पिता के समझाने के बावजूद मधुकर पार्थवी से खुद को दूर नहीं रख पाता है और दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है. पार्थवी के दबंग पिता रतन सिंह (आशुतोष राणा) को इस प्यार का पता चलता है. वो मधु की हत्या करवाने का फैसला करते हैं लेकिन पार्थवी अपनी हिम्मत से इस योजना को विफल कर देती है.
मधुकर और पार्थवी दोनों उदयपुर से भाग जाते हैं. कहानी फिर मुंबई, नागपुर से होते हुए कोलकाता पहुंचती हैं. थोड़ी बहुत लड़ाई झगड़े के बाद मधुकर और पार्थवी अपनी प्यार से भरी गृहस्थी शुरू कर देते हैं. दोनों को एक बेटा भी है. कुछ सालों बाद जाह्नवी का भाई उससे मिलने कोलकाता आता है.उसके बाद कि कहानी जानने के लिए आपको फ़िल्म देखना होगा.
फ़िल्म की कहानी में नयापन नहीं है लेकिन इसकी प्रस्तुति खास है. फ़िल्म में युवा प्रेमकहानी की तड़प और मासूमियत दोनों है. फ़िल्म की कहानी में कॉमेडी का तड़का भी है. संवेदनशील मुद्दे पर आधारित होने के बावजूद फ़िल्म को हल्का कर देता है. इन वजहों से फ़िल्म आपको बांधे रखती है.
फ़िल्म की कमज़ोरियों की बात करें तो अगर आपने मराठी फिल्म ‘सैराट’ देखी है तो शायद यह फ़िल्म आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरेगी लेकिन अगर मराठी फिल्म से इसकी तुलना न किया जाए तो यह एक इंटरटेनिंग फ़िल्म है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा लंबा हो गया है. थोड़ी एडिटिंग की जा सकती थी.सेकंड हाफ में कहानी रफ्तार पकड़ती है.सेकंड हाफ अच्छा बन पड़ा है. फ़िल्म का क्लाइमेक्स सैराट से थोड़ा अलग है. फ़िल्म के अंत में आंकड़े दिखाए जाते हैं. ऑनर किलिंग के नाम पर कितने लोगों की हत्या हो चुकी है.
अभिनय की बात करें तो यह जाह्नवी कपूर की लॉन्चिंग फ़िल्म है लेकिन जिस तरह से उन्होंने खुद को फ़िल्म प्रस्तुत किया है वह उनकी मेहनत को साफ बयां कर जाता है. वह बेहतरीन रहीं हैं. ईशान की भी तारीफ करनी होगी. दोनों के अभिनय को देखते हुए यह बात कहीं जा सकती है कि हिंदी सिनेमा का स्थापित नाम बनने की दोनों में कूवत है. दोनों की केमिस्ट्री खास है. अंकित बिष्ट और श्रीधरन अच्छे रहे हैं. उन्होंने ईशान का परदे पर बखूबी साथ दिया है. इनकी मौजूदगी फ़िल्म में कॉमेडी का तड़का लगाती है.बाकी के कलाकारों में आशुतोष राणा,खरज मुखर्जी,आदित्य कुमार ने भी अपने अभिनय से प्रभावित किया है.
फ़िल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी उम्दा है. जिस तरह से उदयपुर और कोलकाता के रंग परदे पर बिखेरे गए हैं वो खास है. कुलमिलाकर कुछ खामियों के बावजूद धड़क एक मनोरंजक फ़िल्म है. जाह्नवी कपूर और ईशान खट्टर के बेहतरीन अभिनय और केमिस्ट्री के लिए यह फ़िल्म देखी जा सकती है.