अपनी आवाज से सबके दिलों में राज करने वाले मोहम्मद रफी एक बेहतरीन सिंगर होने के साथ-साथ शानदार इंसान भी थे. मात्र 13 साल की उम्र से अपनी गायकी की शुरुआत करनेवाले रफी ने अपनी गायकी से लोगों को खूब प्रभावित किया. कहा जाता है कि उन्हें गाने की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी. 24 दिसंबर 1924 को एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे. उसी फकीर से प्रेरणा लेकर उनके दिल में गाने के प्रति आकर्षण बढ़ा.
रफी के बड़े भाई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन मे संगीत के प्रति बढ़ते रुझान को पहचान लिया था और उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया. उनकी पुण्यतिथि पर जानें 9 दिलचस्प बातें…
1. लाहौर मे रफी संगीत की शिक्षा उस्ताद अव्दुल वाहिद खान से लेने लगे थे और साथ हीं उन्होंने गुलाम अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखना शृरू कर दिया. एक बार हमीद रफी को लेकर के.एल.सहगल संगीत कार्यक्रम में ले गये, लेकिन बिजली नहीं होने के कारण के.एल. सहगल ने गाने से इंकार कर दिया. हमीद ने कार्यक्रम के संचालक से गुजारिश की कि वह उनके भाई रफी को गाने का मौका दें.
2. संचालक के राजी होने पर रफी ने पहली बार 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शकों के बीच पेश किया. दर्शकों के बीच बैठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होंने रफी को मुंबई आने के लिये न्यौता दिया. श्याम सुंदर के संगीत निर्देशन मे रफी ने अपना पहला गाना सोनियेनी हिरीये नी पार्श्व गायिका जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिये गाया.
3. वर्ष 1944 मे नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्हें अपना पहला हिन्दी गाना हिन्दुस्तान के हम है पहले आप के लिये गाया. वर्ष 1949 मे नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म मे गाये गीत ‘सुहानी रात ढ़ल चुकी’ के जरिये वह सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच गये और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
4. दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, शशि कपूर, राजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने वाले रफी अपने संपूर्ण सिने कैरियर मे लगभग 700 फिल्मों के लिये 26000 से भी ज्यादा गीत गाये. मोहम्मद रफी ने हिन्दी फिल्मों के अलावा मराठी और तेलुगू फिल्मों के लिये भी गाने गाये.
5. मोहम्मद रफी अपने करियर में 6 बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किये गये. वह वर्ष 1965 मे रफी पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये.
6. 30 जुलाई 1980 को आस-पास फिल्म के गाने ‘शाम कयू उदास है दोस्त’ गाने के पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कहा, ‘शूड आई लीव’, जिसे सुनकर लक्ष्मीकांत प्यारे लाल अचंभित हो गये क्योंकि इसके पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नही की थी.
7. अगले ही दिन 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को ही छोड़कर चले गये. आज भी जब उनके गीत कानों में गुंजते हैं मन मंत्र मुग्ध हो जाता है. उनकी आवाज का तोड़ आज भी नहीं है. भले ही कई गायक उनकी आवाज में गाते हों लेकिन उनके सुर की की नकल कर पाना काफी मुश्किल है.
8. कहा जाता है कि एक बार संजय गांधी किशोर कुमार से बेहद नाराज हो गये थे. उन्हें मनाने और संजय गांधी के गुस्से से उन्हें बचाने के लिए रफी साहब ने खुद संजय गांधी से मुलाकात की थी. बताया जाता है कि रफी साहब मौत से किशोर कुमार को गहरा धक्का लगा था वे रफी के पैरों के पास ही बैठ कर घंटों तक बच्चों की तरह रोते रहे थे.
9. मोहम्मद रफी के लिए लोगों की मोहब्बत कितनी थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब मुंबई में रफी का जनाजा निकाला गया तो उसमें करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे. रफी के गुजर जाने पर दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था.