अक्षय कुमार की आनेवाली फिल्म गोल्ड जल्द ही बड़े पर्दे पर रिलीज होनेवाली है. पिछले कुछ समय से अपनी फिल्मों से मनोरंजन के साथ साथ सामाजिक संदेश देने वाले अभिनेता अक्षय कुमार की अगली रिलीज को तैयार फ़िल्म ‘गोल्ड’ है. सच्ची घटना पर आधारित इस फ़िल्म की कहानी को अक्षय बहुत प्रेरणादायी करार देते हैं. वे कहते हैं कि ऐसी कहानियां भारत को एक ब्रांड बनाने का माद्दा रखती है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…
‘गोल्ड’ में आपको क्या खास लगा ?
मैं इस कहानी से अंजान था. मैंने अपनी निर्देशक रीमा कागती से पहली बार यह जाना कि आजाद भारत ने 1948 में अपना पहला गोल्ड़ मेडल हॉकी में जीता था लेकिन आजादी के कुछ सालों बाद ये घटना कहीं गुमनामी के अंधेरों में खो गयी. आज इस घटना का जिक्र दो पेज में सिमटा हुआ है. मुझे लगता है कि ये सब घटनाएं सामने आनी चाहिए. किताबों से गहरा असर फिल्में डालती हैं. मैं खुद को लकी मानता हूं कि मुझे ऐसे रोल निभाने का मौका मिल रहा है.
फिल्म में आपका रोल क्या है और बंगाली बनना कितना आपके लिए सहज था ?
मैं फिल्म में तपन दास के किरदार में हूं. वह शराब पीता है. थोड़ा चीटर भी है. वह हॉकी टीम का मैनेजर है और पागल आदमी है. जहां तक बंगाली बनने की बात है तो मेरे लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था क्योंकि अपने शुरुआती दिनों में मैं कोलकाता दो साल रहा हूं. इस शहर और यहां के लोगों को मैं जानता हूं. कल्चर से भी वाकिफ हूं. मेरे अब भी कई दोस्त यहां से हैं. बंगाली लोग बहुत ही पैशनेट होते हैं. अगर वह किसी चीज को ठान लेते हैं तो फिर वह करके ही दिखाते हैं. बहुत ही जीनियस होते हैं.
हाल के समय में आप ज्यादा से ज्यादा असल जिंदगी की कहानियां और लोगों को पर्दे पर जी रहे हैं. इसकी कोई खास वजह ?
एक दिन मैं अपने घर पर बैठा हुआ था. मेरा पडोसी भी मेरे ही घर पर था. अचानक बच्चों में बातचीत हो रही थी. उसने कहा कि अगर एलियन का पृथ्वी पर हमला होता है तो अमेरिका बचा लेगा. उस बच्चे की गलती नहीं है. हॉलीवुड की फिल्मों के जरिए यही दर्शाया जाता है कि कुछ भी मुसीबत आएगी उससे अमेरिका बचा लेगा क्योंकि अमेरिका सुपर पावर है. मुझे लगता है कि अब सोच बदलने का समय आ गया है. पूरे विश्व में भारत सबसे बड़ी डेमोक्रेसी है. उन्होंने फिल्म ३०० बनायी थी. अपने जाबांज लडाको पर. हमारा तो उससे भी बड़ा वीरता का युद्ध है बैटल ऑफ सारागढी जहां 21सिक्खों ने दस हजार अफगान लड़ाकों से लोहा लिया था. एयरलिफ्ट में भारतीय लोगों ने खाड़ी देशों से एक लाख सत्तर हजार लोगों को बाहर निकाला था. यह घटना गीनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है. हमारे पास ऐसी कहानियां हैं. जिनसे हम भारत को भी एक ब्रांड बना सकते हैं.
आपकी यह फिल्म हॉकी पर आधारित है क्या आपको लगता है कि गोल्ड आने के बाद हॉकी खेल की स्थिति में भी बदलाव आएगा ?
मैं ये साफ कहना चाहूंगा कि इस फिल्म को देखने के बाद सभी लोग हॉकी खेलने लगे मैं ये बिल्कुल भी नहीं चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि हर कोई बस किसी न किसी स्पोर्ट को अपनी जिंदगी से जोड़ ले फिर चाहे वह हॉकी हो किक्रेट हो, फुटबॉल हो या फिर कोई और. फुटबॉल वर्ल्डकप के फाइनल में क्रोएशिया जो देश था. वहां पर स्पोर्टस अनिवार्य है. सभी को वहां कोई न कोई स्पोर्टस खेलना ही है. आपकी उम्र चाहे कुछ भी हो. हमें अपने दिमाग को सुचारु रुप से चलाने के लिए ऑक्सीजन चाहिए और ये ऑक्सीजन खेल से ही आ सकता है. अगर हम सभी अपनी जिंदगी में खेल को अपना लेंगे तो हमारे देश में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है. अफसोस की बात ये है कि हम मोबाइल को अपना समय दे रहे हैं. वो हमें बस बीमार बना सकता है और कुछ नहीं.
आपको लगता है कि भारत में स्पोर्टस ग्राऊंड हैं जहां पर बच्चे खेल पाएंगे ?
जब मैं बच्चा था तो मुझे भी खेलने के लिए बड़ा सा ग्राऊंड नहीं मिला था. मैंने बांद्रा इस्ट के बीएमसी स्कूल से मार्शल आर्ट सीखना शुरु किया था. मैं रोड पर मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस करता था. सरकार से उम्मीद मत लगाओ. अगर आप खेलना चाहते हैं तो आपको कोई नहीं रोक सकता है . मैं तो बीच पर फुटबॉल खेलता था मछुवारों के साथ. आज भी मुझे मौका मिलता है तो मैं खेलता हूं. मैं हाल ही में एक बच्चे से रियैलिटी शो में मिला था. वो एक्रोबेटिक्स करता है और उसने अपने घर के बेड पर ये सीखा है. वो वहीं इसकी प्रैक्टिस भी करता है मतलब साफ है कि बस चाह होनी चाहिए.
इन दिनों इंडस्ट्री में बायोपिक का ट्रेंड हैं क्या आपको लगता है कि आपकी बायोपिक बननी चाहिए ?
बिल्कुल भी नहीं , मुझे नहीं लगता कि मैंने ऐसा कुछ किया नहीं है. जिस पर बायोपिक बनें. बहुत सारे प्रेरणादायी कहानियां और लोग हैं. मैं उनकी जिंदगी को परदे पर लाना चाहूंगा.
इस उम्र में भी आप युवाओं के आदर्श हैं आपको क्या लगता है क्या चीजें उनसे आपको जोड़ती है ?
मुझे लगता है कि मेरा अनुशासन है जो लोगों को आकर्षित करता है. मैं एक ऐसा इंसान हूं. जो अपने दिल से बोलता है. अपने अठाइस साल के कैरियर में मैंने कभी किसी के बारे में बुरा नहीं बोला है. जिस तरह से मुझे अपने बारे में बुरा सुनना पसंद नहीं है. उसी तरह बोलना भी नहीं पसंद है. आप मुझे डिप्लोमेट कह सकते हैं लेकिन ये मेरी मार्शल आर्ट ट्रेनिंग की वजह से है. मुझे मेरे मार्शल आर्ट ने ही सीखाया है कि किसी के बारे में बुरा मत बोलो. अपने काम से मतलब रखो. खूब मेहनत करो. अपने परिवार के साथ रहो और उनका ख्याल रखो.
आप स्टारडम को किस तरह से देखते हैं ?
मैं स्टारडम को ज्यादा सीरियसली नहीं लेता हूं. आज है कल नहीं होगा. खूब मेहनत करो. इमानदार रहो और नेकनीयत रखो.
बीते दिनों फोर्ब्स की सूची में अमीर लोगों में आपका नाम शुमार किया गया था?
अच्छा लगा. कभी सोचा नहीं था कि मैं इतनी दूर आ जाऊंगा. मैं आज भी वह दिन याद करता हूं जब चर्च गेट पर मैं 100 रुपये वाली एक किताब नहीं खरीद पाया था क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं थे. एक्टर बनना था और एक्टिंग क्लासेस ज्वॉइन करने के लिए पैसे नहीं थे तो सोचा कि चलो एक्टिंग किताब से ही सीख लेते हैं. चर्च गेट पर देखा बाहर रास्ते में किताब लगाकर जो बेचेते हैं. उसके बाद एक किताब थी किस तरह से एक्टिंग सीखें. मैं वो किताब नहीं खरीद पाया था.