B”Day: बेटी के जन्म के 1 साल बाद ही पत्नी से अलग हो गये थे गुलजार
मशहूर गीतकार-फिल्मकार और शब्दों के जादूगर गुलजार साहब का आज जन्मदिन है. 18 अगस्त 1934 को अब पाकिस्तान के पंजाब में पड़ने वाले झेलम जिले के दीना गांव में उनका जन्म हुआ था. गुलजार के नाम से प्रसिद्ध हुए संपूर्ण सिंह कालरा के पिता उनके गीत व कविता लिखने को बहुत पसंद नहीं करते थे, […]
मशहूर गीतकार-फिल्मकार और शब्दों के जादूगर गुलजार साहब का आज जन्मदिन है. 18 अगस्त 1934 को अब पाकिस्तान के पंजाब में पड़ने वाले झेलम जिले के दीना गांव में उनका जन्म हुआ था. गुलजार के नाम से प्रसिद्ध हुए संपूर्ण सिंह कालरा के पिता उनके गीत व कविता लिखने को बहुत पसंद नहीं करते थे, लेकिन उनके गीत और उर्दू कविता ही था, जिसने बॉलीवुड में नये-नये आये को उस जमाने के दिग्गज लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया.
गुलजार साहब 20 बार फिल्मफेयर तो 5 बार राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं. 2010 में उन्हें फिल्म ‘स्लमडॉग मिलेनेयर’ के गाने ‘जय हो’ के लिए ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया. उन्हें ‘दादा साहेब फालके’ अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है.
कविता लिखने से नहीं चलती अजीविका
बंटवारे की हिंसा के उस दौर को वो सालों तक भूला नहीं पाये और फिल्म ‘माचिस’ में उनका दर्द पर्दे पर नजर आया. ग़ुलज़ार अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान थी. मां की ममता की छांव भी उन्हें ज्यादा दिन तक नसीब न हो सकी. वे उन्हें बचपन में ही छोड़कर इस दुनियां को अलविदा कह गईं. बचपन से ही उन्हें कवितायें लिखने का शौक था. लेकिन उनके पिता कहा करते थे कि कविता और कहानी लिखने से अजीविका नहीं चलती.
मोहे श्याम रंग दे दई…
वर्ष 1950 में ग़ुलज़ार ने मुबंई की ओर रुख किया. शुरुआती दिनों में उन्होंने वर्ली के ही एक गैरेज में मैकेनिक का काम किया. लेकिन धीरे-धीरे उनका रुझान फिल्मों की तरफ हुआ. उन्होंने हिंदी सिनेमा में बिमल रॉय और ऋषिकेश मुखर्जी के सहायक के तौर पर काम किया. 1963 ग़ुलज़ार ने बिमल रॉय की फिल्म ‘बंदनी’ के लिए पहला गीत लिखा,’ मोरा गोरा अंग लइ ले, मोहे श्याम रंग दे दई…इसी गीत उन्होंने बता दिया कि वे लंबे समय तक टिकने वाले हैं.
गुलजार और राखी की पहली मुलाकात
राखी की शादी मात्र 15 साल की उम्र में पत्रकार से बांग्ला फिल्मकार बने एक शख्स से हो गई थी. लेकिन यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और दोनों अलग हो गये. दूसरी ओर यह वह समय था, जब गुलजार अपने कैरियर के चरम पर थे और अंगरेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर में मुताबिक तब की बड़ी अभिनेत्री व ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी से अपने प्रेम संबंध को लेकर चर्चा में थे. इसी दौरान गुलजार-राखी की एक फिल्म पार्टी में मुलाकात हुई. गुलजार के नाम से मशहूर संपूर्ण सिंह कालरा के अंदर बांग्ला संस्कृति, रीति-रिवाज के प्रति आकर्षण था और इसी कारण वे राखी की ओर खींचे चले गये और अंतत: 15 मई 1973 को दोनों ने विवाह कर लिया.
इस शर्त ने कर दिया दूर
कहते हैं कि गुलजार और राखी का विवाह ही इस समझौते पर हुआ था कि राखी शादी के बाद फिल्मों में काम नहीं करेंगी. उस दौरान राखी अपने कैरियर के चरम पर थीं. बड़े फिल्मकार राखी को अपनी फिल्मों में लेना चाहते थे और राखी भी अपने को फिल्म से दूर नहीं रख सकी. मशहूर निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा ने राखी को फिल्म ‘कभी-कभी’ में काम करने का ऑफर दिया. राखी ने इस फिल्म को गुलजार से बिना मशविरा किये साइन कर लिया और यही दोनों के अलगाव का कारण बना. जिसके बाद राखी अपनी 1 सालकी बेटी मेघना गुलजार को लेकर अलग हो गयीं. कवि हृदय गुलजार को राखी के घर छोड़ जाने से बहुत दुख हुआ. इसे उन्होंने कुछ इस तरह बयां किया : शहर की बिजली गयी बंद कमरे में बहुत देर तक कुछ भी दिखाई नहीं दिया, तुम गयी थी जिस दिन उस रोज भी ऐसा ही हुआ था.