उर्मिला कोरी
फ़िल्म: बत्ती गुल मीटर चालू
निर्देशक: श्री नारायण सिंह
कलाकार: शाहिद कपूर,श्रद्धा कपूर,दिव्येन्दु शर्मा और अन्य
रेटिंग: दो
‘टॉयलेट एक प्रेमकथा’ के बाद निर्देशक श्री नारायण सिंह फिर छोटे शहर की कहानी और उससे जुड़ी समस्या को लेकर आए हैं. इस बार उन्होंने बिजली कंपनियों की मनमानी को अपनी कहानी के लिए चुना है. फ़िल्म की कहानी टिहरी में रहने वाले तीन दोस्तों की है. सुशील (शाहिद कपूर), ललिता (श्रद्धा कपूर और सुंदर ( दिव्येन्दु) शुरुआत में कहानी प्रेम त्रिकोण से होकर गुजरती है. दोनों ही दोस्त ललिता को चाहते हैं फिर मालूम होता है कि ललिता सुंदर को चाहती हैं.
सुशील और सुंदर के रिश्ते में दूरियां आ जाती है. अब कहानी मुख्य मुद्दे पर आती है. सुंदर का एक प्रिंटिंग प्रेस है. सुंदर कम समय के लिए बिजली आने से परेशान है लेकिन उसकी परेशानी उस वक़्त बढ़ जाती है जब भ्र्ष्ट बिजली कंपनी सुंदर को डेढ़ लाख का बिल थमा देती है.
वह शिकायत करता है लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं होती उल्टे उसे 50 लाख का और बिल मिल जाता है. हताश हो सुंदर आत्महत्या कर लेता है. बिजली कंपनी के भ्रष्टाचार के खिलाफ सुशील अदालत का दरवाजा खटखटाता है।क्या वह अपने मरे हुए दोस्त को इंसाफ दिला पाएगा.
इसी पर फ़िल्म की आगे की कहानी है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ बहुत कमजोर है बोझिल सा है. श्रद्धा के किरदार का दोनों दोस्तों के साथ एक एक हफ्ते डेट करने वाला फार्मूला थोड़ा अजीबोग़रीब लगता है।सेकंड हाफ थोड़ा ठीक ठाक है. कहानी से जुड़ी सोच जितनी प्रभावी है. उस ढंग से वह परदे पर नहीं आ पाई है.
फ़िल्म का मुद्दा रीयलिस्टिक है लेकिन जिस ढंग से वह कहा गया है. वह रियलिस्टिक नहीं लगता है. अभिनय की बात करें तो फ़िल्म के विषय के साथ यह पहलू अच्छा है.
शाहिद कपूर और दिव्येन्दु दोनों ही अपने अपने किरदार में प्रभावी रहे हैं।श्रद्धा का काम भी अच्छा है. यामी गौतम अपने किरदार में जमी हैं. फ़िल्म का गीत संगीत औसत है. फ़िल्म की एडिटिंग पर काम करने की ज़रूरत महसूस होती है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. कुलमिलाकर बत्ती गुल मीटर चालू अपने विषय के साथ न्याय नहीं कर पाती है.