चित्रांगदा सिंह इस साल एक लंबे अंतराल के बाद लगातार अपने काम को लेकर सुर्खियों में रही हैं. कभी निर्मात्री के तौर पर तो कभी अभिनेत्री के तौर पर. वह जल्द ही फिल्म ‘बाजार’ में नजर आनेवाली हैं. उन्हें उम्मीद है कि सुर्खियों का यह दौर यूं ही बना रहेगा. अभिनेत्री चित्रांगदा की उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
‘बाजार’ फिल्म में आपको क्या खास लगा ?
बॉलीवुड में रोमांटिक और नाच-गाने वाली फिल्में खूब बनती हैं, लेकिन बाजार जैसी फिल्में बहुत कम बनती हैं. यह फिल्म शेयर मार्केट पर आधारित है. जो हमारी इकोनॉमी का बहुत अहम हिस्सा है. यह एक थ्रिलर फिल्म है. फिल्म की कहानी काफी दिलचस्प है. फिल्म में मेरा किरदार मंदिरा का है. मैं शेयर बाजार के गेम में भले ही फिल्म में नहीं हूं, लेकिन फिल्म में मेरी उपस्थिति बहुत अहम है.
एक एक्ट्रेस के तौर पर आप अपनी खूबी और खामी क्या मानती हैं ?
मेरी स्ट्रेंथ एक एक्टर के तौर पर स्क्रीन प्रेजेंस है. कई लोगों ने मुझसे कहा कि मैं उन चुनिंदा एक्ट्रेसेज में से हूं. जिनको भले ही ज्यादा लाइनें न मिली हो लेकिन मैं अपनी मौजूदगी से ही स्क्रीन पर सशक्त उपस्थिति प्रजेंट करती हूं. मैं अपनी कमजोरी की बात करूं तो मैं अलग-अलग तरह का किरदार निभाना चाहती हूं, लेकिन मुझे वैसे फिल्में आॅफर ही नहीं होती हैं. मुझे लोग सशक्त महिला का रोल आॅफर करते हैं. जो या तो बहुत हॉट हो जिसमें ढेर सारे बोल्ड सीन करने हो या बिना मेकअप वाला. जो मैंने अपनी पिछली फिल्मों में किया है. मैं उसके बीच में कुछ करना चाहती हूं.
बतौर अभिनेत्री पिछली फिल्म ‘साहेब बीवी गैंगस्टर’ नहीं चली ?
फिल्म जिस तरह से बननी चाहिए उस तरह से वह नहीं बन पायी जिस वजह से दर्शकों ने फिल्म को नकार दिया. बुरा लगता है जब आपकी फिल्म नहीं चलती है. वैसे जिंदगी अप एंड डाउन का ही नाम है. साहेब बीवी नहीं चली, लेकिन बतौर निर्माता मेरी फिल्म सूरमा को लोगों ने बहुत पसंद किया. मैं उससे बहुत उत्साहित हूं.
प्रोडयूसर के तौर पर और क्या प्लानिंग चल रही है ?
एक बच्चों की फिल्म मैंने लिखी है और एक बायोपिक फिल्म है. उस पर काम चल रहा है . इससे ज्यादा और कुछ फिलहाल नहीं बता पाऊंगी.एक्ट्रेस के तौर पर वेब सीरीज से जुड़ने की भी योजना है.
इंडस्ट्री में आपका कोई गॉड फादर नहीं है और बढ़ती उम्र के साथ क्या आपको लगता है कि कुछ सीमित रोल ही करने को रह जाते हैं ?
मुझे नहीं लगता है कि उम्र अब ज्यादा मायने रखता है. इंडस्ट्री में धीरे-धीरे ही सही लेकिन बदलाव हो रहा है. हम आगे बढ़ रहे हैं. हर एज की अभिनेत्रियों के लिए अच्छा काम हैं. हां मुझ तक वह काम नहीं पहुंच पा रहा है. मेरे बजाये दूसरों को मिल जा रहा है. मैं नाच गाने वाले रोल के बजाये अभी भी कंटेंट वाली फिल्में और रोल करना चाहूंगी, क्योंकि आप याद उन्हीं के लिए रह जाते हैं.
क्या आप निर्माता निर्देशकों को काम के लिए कॉल करती हैं?
मैं नहीं करती हूं. ऐसा मैं घमंड की वजह से नहीं करती हूं बल्कि मुझे लगता है कि इंडस्ट्री छोटी सी तो है. सबको सबका काम दिखता है. ऐसे मे काम के लिए कॉल क्या करना.
इन दिनों मी टू की चर्चा जोरों पर हैं निर्मात्री के तौर वूमन सेफ्टी के लिए क्या नियम बनने चाहिए?
नियम से ज्यादा माहौल देना जरूरी है. नियम तो पहले भी थे. काम का माहौल ऐसा होना चाहिए ताकि लोग अपनी बात रखने में झिझके नहीं. जो भी उनके साथ हो रहा है वो खुलकर मैनेजमेंट के सामने बात रख पाएं. उन्हें किसी मी टू जैसे मूवमेंट का इंतजार नहीं करना पड़े. एक लड़की होने के नाते मैं यही कहूंगी कि एक सेंस रखना होगा और आंखे खोलकर रखनी होगी. कई बार काम के नाम पर आपका शोषण हो सकता है.
आपने अपनी जिंदगी में कब इसका सामना किया है?
मुझे लगता है कि हर लड़की कभी न कभी इससे गुजरती ही है. भले ही वह मानें या न मानें. एक हकीकत ये भी है कि सभी का अपना-अपना मानक है कौन कितना सहज है. बाबूमोशाय, बंदूकबाज से पहले एक फिल्म में मुझे कुछ ऐसा करने को कहा गया जिसमें मैं सहज नहीं थी. मैंने मना किया तो बाबुमोशय बन्दूकबाज की तरह उस फिल्म में भी मुझे रिप्लेस कर दिया गया. जब आप स्टैंड किसी चीज के लिए लेते हैं तो परिणाम भी आपको ही भुगतने पड़ता हैं, लेकिन उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए. मैं तनुश्री से यही कहूंगी कि वे किसी की परवाह न करें.
क्या इंडस्ट्री महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है?
यहां बात सुरक्षा और असुरक्षा की नहीं है बल्कि कंफर्ट और अनकंफर्ट की है. सब बुरे नहीं है. जबरदस्ती कुछ भी नहीं होता है. जहां तक मैं जानती हूं. जब तक आपकी मर्जी नहीं होगी आपका कोई शोषण नहीं कर सकता है. हां काम से आपको बाहर निकाला जा सकता है या काम नहीं मिलेगा ये हो सकता है.