नयी दिल्ली : यूं तो बाजार में उपलब्ध बार्बी डॉल समेत कई ग्लैमरस एवं मोहक छवि वाले गुड्डे-गुड़ियों के बच्चों पर पड़ रहे प्रभाव को लेकर पहले ही बहस छिड़ी हुई है लेकिन जब किसी बच्चे की लोकप्रियता को भुनाकर उसकी डॉल बनाई जाए तो गुड्डे-गुड़िया का यह खेल बाल मन की मासूमियम से खिलवाड़ कर कई जटिलताएं पैदा कर सकता है. बॉलीवुड कपल सैफ अली खान और करीना कपूर के दो वर्षीय बेटे तैमूर अली खान की लोकप्रियता को भुनाने के लिए केरल के एक उद्यमी ने उसका 54 सेमी का गुड्डा बनाया है जो बाजार में उपलब्ध है.
लेकिन विशेषज्ञों और अभिभावकों का मानना है कि इस प्रकार का चलन कई जटिलताएं पैदा कर सकता है. ‘परफेक्ट फिगर’ वाली बॉर्बी डॉल का किशोरावस्था में कदम रखने वाली लड़कियों और युवतियों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. इसी प्रकार के खिलौने किशोरों में उनकी शारीरिक बनावट एवं छवि से जुड़ी कई समस्याएं पैदा कर रहे हैं.
ऐसे में ‘तैमूर डॉल’ जैसे गुड्डे-गुड़िया नई जटिलताओं को जन्म दे रहे हैं. मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान के निदेशक निमेष देसाई ने कहा कि इस बाजार में नैतिकता की कोई जगह नहीं है. ऐसी कोई भी चीज जिसकी मांग है और जिसे बाजार में बेचा जा सकता है, बाजार उसका उत्पादन करेगा, फिर भले ही उसका कोई भी असर पड़े. ‘ब्रांड तैमूर’ की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है, ऐसे में अभिभावक एवं विशेषज्ञ इसके तैमूर और उसके गुड्डे से खेलने वाले अन्य बच्चों पर पड़ सकने वाले प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं.
छह वर्षीय बच्चे की मां गुड़गांव निवासी प्रिशा मंडाविया ने कहा, ‘‘कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि बच्चा बहुत प्यारा है और उसकी फोटो एवं वीडियो देखकर कोई उकता नहीं सकता, लेकिन केरल के उद्यमी ने उसका गुड्डा बनाकर शायद सीमा पार कर दी. माफ करें, ऐसा करना सही नहीं है. मैं नहीं चाहती कि मेरा बच्चा कभी ऐसे गुड्डे से खेले, जो किसी और बच्चे की तरह दिखता हो. मैं एक मासूम बच्चे की लोकप्रियता को भुनाकर पैसा कमाने के खिलाफ हूं.”
समाजशास्त्री संजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘सिलेब्रिटी को मीडिया और मीडिया को सिलेब्रिटी की आवश्यकता होती है. तैमूर सिलेब्रिटी संस्कृति, मीडिया संस्कृति और उपभोक्ता संस्कृति का शिकार है. वह उत्पाद बन गया है.’