15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

EXCLUSIVE: झारखंड में फिल्‍म बनाना चाहते हैं ”सोन चिड़िया” के डायरेक्‍टर अभिषेक चौबे

‘इश्किया’, ‘डेढ़ इश्किया’ और ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्मों के निर्देशक अभिषेक चौबे की अगली फिल्म सोन चिड़िया आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई है इस फ़िल्म और निर्देशक के तौर पर जिम्मेदारियों,सेंसरशिप सहित कई मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत… आपकी पिछली फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ बहुत विवादित रही थी ‘सोन चिडिया’ को बनाते हुए क्या […]

‘इश्किया’, ‘डेढ़ इश्किया’ और ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्मों के निर्देशक अभिषेक चौबे की अगली फिल्म सोन चिड़िया आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई है इस फ़िल्म और निर्देशक के तौर पर जिम्मेदारियों,सेंसरशिप सहित कई मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत…

आपकी पिछली फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ बहुत विवादित रही थी ‘सोन चिडिया’ को बनाते हुए क्या जेहन में चल रहा था ?

न तब मैंने सोच समझकर किया था न इस बार हालांकि सोन चिडिया में कोई कंट्रोवर्सी नहीं है. सेंसर भी हो गयी है हां इस फिल्म में भी बातें हैं. जैसे उड़ता पंजाब में ड्रग अब्यूज के बारे में बात कर रहा था. यहां पर भी सोशल इश्यूज के बारे में बात कर रहा हूं. मैंने कभी खुद को बदलने की कोशिश नहीं कि मेरी पिछली फिल्म सेंसर में फंसी थी तो मैं इस बार कंट्रोवर्सी न करुं. फिल्ममेकर का पहला धर्म है आपको उकसाना है। यह मेरी जिम्मेदारी है. अगर आपके मन में कोई पक्षपात की भावना है या आप जाति भेद में विश्वास रखते हो या सोजनिस्ट हो तो मैं ऐसी फिल्म बनाऊंगा जो आपकी सोच पर सवाल उठाए कि आप ये क्यों करते हो. ये गलत है. आपकी सोच ऐसी क्यों है. ये आपको असहज करेगा क्योंकि असलियत वही है. मैं हमेशा से ये करता आया हूं और आगे भी करता रहूंगा.

सुशांत सिंह राजपूत लेने की वजह क्या थी ?

जब मैं लिखता हूं कहानी तो खुद को ऐसे फोर्स नहीं करता कि यही एक्टर होना चाहिए. कभी नेचुरली आइडिया आ जाए तो ठीक है लेकिन कभी सोच कर नहीं लिखता कि इस एक्टर को लूंगा. जब मैंने लिखी और सोचा कि कोई फिट होगा तो दिमाग में इमेज आती थी उसमे सुशांत भी थे. ज्यादातर इंडस्ट्री के जो स्टार हैं वो बड़े शहरों से हैं.सबसे ज्यादा मुंबई से आमिर से रणवीर सिंह तक सभी. सुशांत पटना की पैदाइश हैं हालांकि वो पला बढ़ा दिल्ली में हैं लेकिन वो भारत को दिल्ली बॉबे के अलावा जानता है और वो रिसर्च वाला इंडिया नहीं. उसने देखा है वो इंडिया. यही क्वालिटीज मुझे पसंद आयी. स्क्रिप्ट को लेकर मैं पहली बार किसी एक्टर से मिला तो वो सुशांत ही थे.

फिल्म का नाम सोनचिरिया के बजाए सोन चिडिया क्यों ?

बुंदेलखंडी भाषा में बोले तो सोनचिरैया ही होगा. फिल्म में हमने बुंदेलखंडी भाषा का इस्तेमाल भी किया है लेकिन हिंदी में सोनचिडिया होगा. बुंदेलखंडी में सोनचिरैया को मतलब एक चिडिया होगी. हिंदी में संधि विच्छेद करें तो सोने की चिडिया होगी. जो भारत को कहा जाता है. मैं फिल्म के शीर्षक के जरिए लार्जर पिक्चर को प्रस्तुत करना चाहता हूं.

फ़िल्म को लेकर आपका क्या होमवर्क था ?

सुदीप जो हमारे को राइटर हैं. वो सबसे पहले चंबल गए थे. कई लोगों से मुलाकात की थी. पुलिस ऑफिसर्स से लेकर डाकुओं सबसे मुलाकात की थी. बहुत मोटा डॉक्यूमेंट उन्होंने तैयार किया था. उसमे बहुत कुछ लिखा गया था फिर मैं गया था. वहां पर ही जाकर मैंने सेकेंड ड्राफ्ट लिखा था. काफी रोचक एनेकडोट्स मिले थे. कई ऐसे पुलिस ऑफिसर्स से मिला था. जिनकी पूरी जिंदगी उन्होंने चंबल में ठाकुओं को पकड़ने में ही बीता दी. उनकी बहुत सारी कहानियां थी. ये पर्स़नल रिसर्च बहुत काम आया. इसके अलावा बहुत सारी किताबें थी माला सेन की किताब थी. जिस पर बहुत हद तक बैंडिट क्वीन भी प्रभावित थी.मलखान सिंह के उपर एक किताब थी प्रशांत पंजियार करके एक फोटो जनालिस्ट हैं. दिल्ली में रहते हैं. उन्होंने चंबल में बहुत काम किया है. बहुत सही तस्वीरें खींची हैं तो रिसर्च में बहुत मदद मिली. किस तरह के कपडे पहनते थे. कैसे दिखते थे. वो सब जानकारी मिल गयी.

चंबल में ही इस फ़िल्म की शूटिंग हुई है कितना टफ था ?

मैं जब चंबल गया तो वहां की खूबसूरती देखकर दंग रह गया था. रेगिस्तान है लेकिन जो खूबसूरती है वो अलहदा है. आपको ऐसी खूबसूरती और कहीं नहीं मिलेगी. मुझे लगता है कि दुनिया में वैसी खूबसूरती कहीं नहीं मिलेगी. हां वहां शूटिंग करना बहुत टफ था. ऐसा लगा कि तीन महीने हमने सिर्फ ट्रैकिंग की है 45 फीट रोज चढ़ना. उपर से कैमरा और दूसरे •भारी इंक्वीपमेंट लेकर चढना बहुत ही मुश्किल था. जो धूल उडती थी वो •भी बहुत गरम होती थी. शारीरिक तौर पर इस फिल्म की शूटिंग बहुत ही चुनौतीपूर्ण थी. हम सब की स्किन जल सी गयी थी. शाम को जब हम आते थे और नहाते थे तो सिर्फ काली मिट्टी ही निकलती थी. मैंने अपनी फिल्म की एक्ट्रेस को पहले ही तैयार कर दिया था क्योंकि मुझे पता था कि कमजोर दिलवाले नहीं कर पाएंगे इसलिए सबको मेंटली प्रीपेयर किया था. सभी काफी पहले ही चंबल आ गए थे ताकि वह हालात से पूरी तरह से सहज हो सकें. मैं तो कहूंगा कि एक्टर्स के लिए ज्यादा मुश्किल था. हम लोग तो ट्रैकिंग वाले शूज पहनते थे लेकिन सुशांत और भूमि तो चप्पल मे ही जाते थे. फिल्मसिटी के बड़े से एसी फ्लोर पर शूटिंग करना आसान होता है लेकिन वहां पर शूटिंग एक्सीपिरियंस अच्छा नहीं होता है क्योंकि सबकी आपस में बनती नहीं है. हमारे में दोस्ती का माहौल बन गया था. भाषा से लेकर हर बारीकी पर काम हुआ. बंदूक पकड़ने का मिलट्री बागी का अलग तरीका होता है. उनका गन भी अलग होता है. एक हाथ राइफल पर सोते वक्त भीहोता था ताकि हमला होने पर तुरंत जवाबी हमला दे सके.

डाकू आपकी फिल्म का नायक है ?

अभी आप नायक शब्द को लें तो क्या साधु संत ही नायक हो सकते हैं .मैं रोल मॉडल डाकू को नहीं कह रहा हूं लेकिन हां फिल्म जो सवाल कर रही है या सवाल करने की कोशिश कर रही है. उस दुनिया का नायक सुशांत है जो डाकू है.

आपकी फ़िल्म का नायक डाकू हैं क्या आपको लगता है इससे गलत मैसेज नहीं जाएगा ?

गलत मैसेज तब जाएगा. जब मैं इस चीज को ग्लैमराइज करुं. अमूमन हम अपनी फिल्मों में हिंसा को बहुत ही सेक्सी कर देते हैं. हीरो है बनियान पहने हैं एलएनजी में धडधड़ मार रहा है. अच्छा लगता है लेकिन ये अच्छी नहीं लगनी चाहिए. बुरी लगनी चाहिए . बंदूक गलत चीज है. किसी को मारती है तो बदन में क्या होता है बताना चाहिए. मैंने बंदूक को ग्लोरिफाई नहीं किया था.

आप जल्द ही वेबसीरिज भी अपनी शुरु आत करने वाले हैं. सेंसरशिप को लेकर आपको क्या कहना है ?

मैं सेंसरशिप में विश्वास ही नहीं करता हूं. मैं पूर्णता फ्रीडम आॅफ स्पीच में यकीन करता हूं. हां उसका ये भी परिणाम होगा कि कुछ बातें ऐसी होगी जो हमें चुभ सकती हैं. हमें अच्छी न लगें मगर हम अपने आप को उसके तैयार कर सकते हैं लेकिन हां मैं यही कहूंगा कि बस अपनी भड़ास निकालने का माध्यम डिजिटल को ना बनाएं. आपको वही कीजिए जो आपकी कहानी डिमांड करती है. यही आपको करना चाहिए और जो भी जरुरी है. वो आपको करना चाहिए. सिनेमा में सेंसरशिप है लेकिन आज तक मुझे समझ नहीं आया कि सेंसरशिप है तो वह किसी के बदन की नुमाइश करने से क्यों नहीं रोकता है. सेंसरशिप सही नहीं है. सही चीजें सेंसर ही नहीं कर रहा है. बेडरुम में है एक पति पत्नी तो वो आपस में किस करते हैं तो आपको उससे ऐतराज है लेकिन एक लड़की कम कपडे पहनकर अपनी बॉडी का नुमाइश कर रही है तो वो आपको खराब नहीं लगता है. ये मुझे समझ नहीं आता है.

झारखंड की किसी कहानी को दिखाना चाहते हैं ?

हां मैं चाहता हूं. मैं रांची और जमशेदपुर में पला बढ़ा हूं तो मुझे वहीं की कहानी को दिखाना है. मुझे पता है कि क्राइम फिल्म बनाना नेचुरल होगा लेकिन मैं वो नहीं करुंगा. मैं जब बनाऊंगा तो अपने बचपन की याद को ध्यान में रखते हुए बनाऊंगा. रांची को लेकर मेरी बहुत ही स्वीट यादें हैं.

जमशेदपुर कितना जाना होता है ?

जमशेदपुर अक्सर जाता रहता हूं माता पिता वही हैं. पिछली बार अगस्त सितंबर में गया था. फिर जल्द ही जाऊंगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें