फिल्म : रोमियो अकबर वाल्टर
निर्देशक: रॉबी ग्रेवाल
कलाकार: जॉन अब्राहम, मौनी रॉय, जैकी श्रॉफ, सिकंदर खेर और अन्य
रेटिंग : ढाई
।। उर्मिला कोरी ।।
राष्ट्रवाद से ओत प्रोत फिल्में पिछले कुछ समय से हिंदी सिनेमा का लोकप्रिय जॉनर बनता जा रहा है. रोमियो अकबर वाल्टर इसी जॉनर को आगे बढ़ाती है. यह फिल्म स्पाय थ्रिलर फिल्म उन जासूसों को समर्पित है, जो अपने देश और लोगों से दूर काम कर रहे हैं. जिनकी शहादत को सम्मान नहीं बल्कि गुमनामी नसीब होती है.
फिल्म की कहानी की बात करें तो यह स्पाई थ्रिलर 71 के दशक पर आधारित है. वो वक्त जब ईस्ट पाकिस्तान मतलब आज के बांग्लादेश को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच अनबन चल रही थी. कहानी में रोमियो अली (जॉन अब्राहम) की कहानी है. जो एक बैंक में काम करता है. उसे नाटकों का भी बहुत शौक है.
हर किरदार में ढल जाना उसकी खासियत है. उसी खूबी को देखते हुए भारतीय इंटेलिंजेंस ब्यूरो रॉ उसे जासूस के रूप में चुनता है. वह अकबर मलिक बनकर पाकिस्तान पहुंचता है और पाकिस्तान में उच्च आयुक्तों का दिल जीतकर वहां भारत में खुफिया जानकारी मुहैया करवाता है.
सबकुछ ठीक चल रहा होता है एक दिन एक फोन टेपिंग में आईएसआई ऑफिसर खुदाबख्स खान (सिकंदर खेर) को अकबर के भारतीय जासूस होने का शक हो जाता है. उसके बाद कहानी में उतार चढ़ाव शुरू होता है. क्या रोमियो अपने मिशन में कामयाब होगा. इसी के इर्द गिर्द फिल्म की कहानी घूमती है.
फिल्म की कहानी बहुत ही धीमी है. शुरुआत के दृश्य में जॉन अब्राहम को खून से लथपथ देखने के बाद लगा कि फिल्म के सींस कमाल के होने वाले लेकिन फिल्म में वो हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को ही नहीं मिला. फिल्म में इमोशन और रोमांस को भी डालने की कोशिश की गयी है लेकिन वो भी अधपका सा लगता है.
फिल्म का फर्स्ट हाफ बहुत स्लो है. सेकंड हाफ में भी कहानी रोमांच नहीं जगा पाती है. रही सही कसर फिल्म की लंबाई पूरी कर देती है. अभिनय की बात करें तो जॉन ने सधा हुआ अभिनय किया है. मौनी राय के लिए फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था. जैकी श्रॉफ ने अपना रोल बेहतरीन ढंग से निभाया है. सिकंदर खेर की मौजूदगी भी प्रभावित करती है. बाकी के कलाकारों का काम ठीक ठाक है.
फिल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरुप है. बैकग्राउंड म्यूजिक निराश करता है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी बन पड़ी है. कुल मिलाकर रोमियो अकबर वाल्टर निराश करते हैं.