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खास बातचीत: ”फादर्स डे” पर बोले शाहिद कपूर- पिता के तौर पर मैं अपना बेस्ट करता हूं

अभिनेता शाहिद कपूर जल्द ही तेलुगू की सुपरहिट फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ के हिंदी रिमेक ‘कबीर सिंह’ में नजर आयेंगे. शाहिद कहते हैं कि कबीर सिंह हिंदी आॅडियंस को ध्यान में रखकर बनायी गयी है, लेकिन मूल फिल्म वैसी ही है क्योंकि वह उन्हें वैसे ही पसंद आयी थी. शाहिद बताते हैं कि यह फिल्म दिल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 16, 2019 8:31 AM

अभिनेता शाहिद कपूर जल्द ही तेलुगू की सुपरहिट फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ के हिंदी रिमेक ‘कबीर सिंह’ में नजर आयेंगे. शाहिद कहते हैं कि कबीर सिंह हिंदी आॅडियंस को ध्यान में रखकर बनायी गयी है, लेकिन मूल फिल्म वैसी ही है क्योंकि वह उन्हें वैसे ही पसंद आयी थी. शाहिद बताते हैं कि यह फिल्म दिल टूटे आशिक की जर्नी है. जिससे हर तरफ का यूथ रिलेट करेगा. फादर्स डे और उनकी आनेवाली फिल्म के बारे में शाहिद कपूर की उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

-‘कबीर सिंह’ के किरदार को आप किस तरह से परिभाषित करेंगे.

ये इस तरह का किरदार है. जिसको समझने में थोड़ा वक्त लग सकता है. जहां आपको तैयारी करनी पड़ती है. कई किरदार सिंगल डाइमेंशनल होते हैं, लेकिन ये बहुत ही कॉम्प्लेक्स किरदार हैं. ऐसा बंदा है जिसका दिल टूट गया है. वह खुद को तबाह करने में जुटा है. बहुत ही इंटेंस और पॉवरफुल किरदार है.

-जैसा कि आप बता रहे हैं कि बहुत इंटेंस किरदार है ऐसे में कबीर सिंह क्या पैकअप होने के बाद भी आप पर हावी रहता था
मैं बहुत ही प्रैक्टिकल एक्टर हूं. काम, काम होता है और निजी जिंदगी, निजी जिंदगी मैं दोनों को मिलाता नहीं हूं. यही वजह है कि मैं पैकअप के बाद रोज शाहिद कपूर बन जाता था क्योंकि अगर मैं कबीर सिंह की पर्सनालिटी में घर जाता था तो मेरी बीवी मुझे घर से निकाल देती थी.

-अक्सर यह बात सुनने में आती है कि आज का युवा पैशनेट नहीं प्रैक्टिकल लव में यकीन करता है?

मैं अपनी बात करूं तो मेरा मानना है कि प्यार तो पैशनेट ही होना चाहिए वरना होना ही नहीं चाहिए. ऐसा हर किसी प्यार करने वाले के साथ हुआ है जब उसका दिल टूटा है तो उससे गुजरना उसके लिए मुश्किल हो जाता है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है. कबीर सिंह हम सभी की जिंदगी का फेज रह चुका है. जब आपको कुछ अच्छा नहीं लगता है. खुद भी नहीं बस एक ही इंसान का ख्याल आता रहता है. जब मैंने ओरिजनल फिल्म देखी तो बहुत सारी यादें ताजा हो गयी थी. जब कॉलेज में पहली बार दिल टूटा था तो बिस्तर में पड़े-पड़े सैंड सॉन्ग सुन करता था.

-‘कबीर सिंह’ में आपका किरदार सिगरेट और शराब दोनों पीता है. अभी आपके बच्चें छोटे हैं क्या जब वो बड़े होंगे आप ऐसी फिल्में करने से पहले सोचेंगे?

अलपचीनो ने स्कारफेश किया रॉबर्ट डी नीरो ने टैक्सी ड्राइवर या फिर लियोनार्डो डि कार्पियो जिन्होंने हमेशा इस तरह की फिल्में की. भारत में दिलीप कुमार ने देवदास जैसी फिल्म की. जिसमें वे शराबी थे. मिस्टर अमिताभ बच्चन ने एंग्री यंग मैन की भूमिका में बेहतरीन फिल्में अपने कैरियर में की. मेरे कहने का मतलब ये है कि एक्टिंग एक काम की तरह है. आप किस तरह के एक्टर हैं यह महत्वपूर्ण है. किस तरह के किरदार करते हैं ये नहीं. अगर मैं रियल लाइफ में शराबी पिऊं या सिगरेट फूंकू अपने बच्चों के सामने और पर्दे पर आदर्श किरदार निभाऊं तो ये सही होगा क्या? जो मैं असल जिंदगी में हूं. उनके लिए ये मायने रखता है.

-आज फादर्स डे हैं आप किस तरह के पिता हैं?

मैं अपने बच्चों को बहुत प्यार करता हूं. मीरा मुझसे कई बार कहती है कि मुझे थोड़ा सख्त पिता बनने की जरूरत है वरना बच्चें बिगड़ जायेंगे मगर वह मुझसे होता ही नहीं है. पिता के तौर पर जहां तक जिम्मेदारियों की बात है तो मैं अपना बेस्ट करता हूं. खाना खिलाना, डाइपर बदलना, बच्चों की किताबें पढ़ना. उनके स्कूल जाना (हंसते हुए- जब मीरा नहीं जा पाती तो मैं ही जाता हूं). मैं रोज अपने बच्चों के साथ वक्त बिताने की पूरी कोशिश करता हूं.

-आपके पिता पकंज कपूर से क्या आप बेहतर पिता बनने की कोशिश करते हैं ?

मुझे नहीं लगता कि कोई ये बात कह सकता है कि वे अपने पिता से अच्छा पिता हैं. कई बार ऐसा होता है कि जब आप पिता बनते हैं. आप बच्चों के लिए ऐसा बहुत कुछ कर जाते हैं जो बच्चों को याद भी नहीं होता है क्योंकि उस वक्त वे बहुत छोटे होते हैं. जब मैं एक दो साल का था मेरे माता पिता ने क्या किया मुझे याद नहीं है. दरअसल उस उम्र में बच्चों को सबसे ज्यादा माता-पिता की जरूरत होती है. जब मुझे बचपन में समझ आयी तो पापा के साथ उतना वक्त नहीं बीता पाया. अठारह साल का जब मैं हुआ तो हमारी बातचीत शुरू हुई लेकिन फिर भी मैं यही कहूंगा कि वह मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है. जब मैं अपने माता-पिता को अपने बच्चों के साथ देखता हूं तो मुझे बहुत खुशी मिलती है.

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