नयी दिल्ली : विवादास्पद विषय पर फिल्म बनाना सदैव चुनौतीपूर्ण रहा है. निर्देशक निखिल आडवाणी के लिए यह और चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उन्हें अपनी अगली फिल्म में बाटला हाऊस मुठभेड़ के घटनाक्रम से संबंद्ध चर्चा को अपने पूर्वाग्रहों से दूर रखना था और जटिलताओं का पूर्णता में परीक्षण करना था. आडवाणी ने कहा कि 2008 में दिल्ली के बाटला हाऊस में मुठभेड़ के दौरान जो कुछ हुआ उनका ध्यान उसके मानवीय पहलू पर था.
उन्होंने कहा,‘‘ कैसे तत्क्षण निर्णय लिये गये, उसके पीछे की तार्किकता, व्यक्तिगत इतिहास, आकांक्षाएं, निजी जोखिम, और संघर्ष.” उसके लिए फिल्म निर्माता को गहन शोध करने की जरूरत होती है और मजबूत पटकथा की भी दरकार होती है.
आडवाणी ने कहा कि इस परियोजना पर शोध उनके पटकथा लेखक और मित्र रितेश शाह ने किया। शाह जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और यह विश्वविद्यालय मुठभेड़ स्थल के समीप ही है. शाह ने ही आडवाणी को इस स्टोरी के बारे में बताया था क्योंकि वह पहले ही इस पर काम कर चुके थे.
आडवाणी ने कहा, ‘‘ जिस चीज ने सबसे अधिक मेरा ध्यान खींचा तो वह राजनीति और विवाद से परे विषय था कि कैसे इंसान दबाव में बर्ताव करता है, कैसे लोग संकट की स्थिति में आगे बढ़ते हैं, कैसे वे निर्णय लेते हैं.”
उल्लेखनीय है कि 19 सितंबर, 2008 को इस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के अधिकारी मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गये थे. दो संदिग्ध आतंकवादी मारे गये थे और दो गिरफ्तार किये गये थे. बाटला हाऊस फिल्म पुलिस उपायुक्त (विशेष शाखा) संजीव यादव के नजरिये से पेश की गयी है. जॉन अब्राहम ने डीसीपी का किरदार निभाया है. यह फिल्म में स्वतंत्रता दिवस पर रिलीज होगी. उसमें मृणाल ठाकुर और नोरा फातेही भी अलग अलग किरदार में हैं.