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पढ़ें, प्रभात खबर डॉट कॉम की “मोहन अगाशे” से विशेष बातचीत

झारखंड में पहली बार मेंटल हेल्थ और हेल्दी माइंड को ध्यान में रखते हुए “ अनुभव फ़िल्म फ़ेस्टिवल” का आयोजन किया गया. इस मौके पर डॉ मोहन अगासे जो मनोचिकित्सक होने के साथ- साथ फिल्ममेकर, अभिनेता और थियेटर आर्टिस्ट भी हैं, रांची में मौजूद थे. प्रभात खबर डॉट कॉम ने इस मौके पर डॉ मोहन […]

झारखंड में पहली बार मेंटल हेल्थ और हेल्दी माइंड को ध्यान में रखते हुए “ अनुभव फ़िल्म फ़ेस्टिवल” का आयोजन किया गया. इस मौके पर डॉ मोहन अगासे जो मनोचिकित्सक होने के साथ- साथ फिल्ममेकर, अभिनेता और थियेटर आर्टिस्ट भी हैं, रांची में मौजूद थे. प्रभात खबर डॉट कॉम ने इस मौके पर डॉ मोहन अगाशे से खास बातचीत की…

सवाल- "अस्तु" जैसी फिल्में, जो समाज को संदेश देती हैं उन्हें जगह कम मिलती हैं ? इस तरह की फिल्में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच पाये इसके लिए क्या किया जाए ?
जवाब- आप ठीक कह रहे हैं, ऐसी फिल्मों को स्क्रीन नहीं मिलती. देखिये, हम जंक फूड ज्यादा खाते हैं. मैं ऐसी फिल्मों को दिखाने के लिए ही घूम रहा हूं, ज्यादा से ज्यादा लोगों को बता रहा हूं. अब मैंने अपना पेशा बदल दिया है, मैं पहले साइकायट्रिस्ट था अब मैं न्यूट्रशनिस्ट हो गया हूं. मैं अच्छे स्वास्थ के लिए अच्छी फिल्में देखने की सलाह देता हूं. जंक फूड और हेल्दी फूड में फर्क करना सीखना होगा क्योंकि हमें अपने शरीर का ध्यान रखना है. वैसे हीं आपको जंक इंटरटेनमेंट और हेल्दी इंटरटेनमेंट में फर्क करना होगा.
सवाल-"अस्तु" मराठी भाषा में बनी फिल्म है, जितने दर्शकों ने भी फिल्म देखी, सबने फिल्म की तारीफ की, क्या आपको लगता है कि अच्छी सिनेमा के लिए भाषा कोई दीवारबनती है ?
जवाब- देखिये, फिल्म की अपनी भाषा होती है, इमेज और साउंड से आप फिल्म की मूल कहानी समझ जाते है. फिल्में आप किताबों से ज्यादा बेहतर समझ सकते हैं क्योंकि पुस्तक पूरी तरह से भाषा पर निर्भर होती है.
फिल्म पूरी तरह से भाषा पर निर्भर नहीं होती, इसमें भाव भी एक भाषा होती है. जैसे इस वक्त मैं आपको देख रहा हूं, आप मुझे देख रहे हैं. मैं आपको कितनी देर देखता हूं, नजरें चुराता हूं या झटक कर आपसे निगाहें हटा लेता, कितनी सारी चीजें हैं समझने के लिए. इस फिल्म में जब बुजुर्ग किरदार अनपढ़ महिला को "मां" कहकर पुकारता है , तो वह पीछे मुड़कर देखती है आखों से कई बातें वह कह देती है, फिल्म में ऐसे कई दृश्य हैं जिसके लिए शब्दों की जरूरत नहीं है.
सवाल- मैंने फिल्म देखी, फिल्म में ऐसे कई दृश्य हैं, जो दर्शकों को फिल्म के साथ जोड़कर रखते हैं ?
जवाब- सही कहा आपने, आपको एक दृश्य याद होगा जिसमें महिला गाना गा रही है और उसका सबसे छोटा बच्चा सो रहा है, बड़ी बेटी सो रही है, हाथी सो रहा है और बुजुर्ग व्यक्ति भी सो रहा है. यह कई तरह के संदेश देती है.
सवाल- क्षेत्रीय फिल्में खूब बन रही है, आपको इनका कैसा भविष्य नजर आता है ?
जवाब- देखिये, इस वक्त इन फिल्मों के लिए बेहतर वक्त है क्योंकि दर्शकों के पास विकल्प है. आज दर्शक थियेटर में कम जाते हैं क्योंकि उन्हें मोबाइल पर भी अच्छा मनोरंजन मिल जाता है. टेलीविजन चैनल की टीआरपी कम हो गयी क्योंकि लोग टैब और मोबाइल पर फिल्में देख रहे हैं.
सीरियल के लिए आपको टेलिविजन पर तय वक्त का इंतजार करना पड़ता है अब आप यात्रा करते वक्त भी टैब और मोबाइल पर फिल्में, सीरियल देख सकते हैं. क्षेत्रीय फिल्में डिजीटल प्लेटफोर्म पर आ रही है.
सवाल- आप अपनी पहली पहचान क्या रखते हैं, एक अभिनेता या मनोचिकित्सक ?
जवाब- अगर कल तुम्हें खबर बनानी हैं, तो मेरा परिचय पहले लिखना, मोहन अगासे एक अच्छे इंसान हैं. पहले अच्छा इंसान होना चाहिए. बाद में आप कुछ भी हो, दूसरों की कद्र करना चाहिए . मोहन अगासे अच्छे इंसान है, यह किसी ने लिखा, तो मुझे अच्छा लगेगा.
सवाल– आप पहली बार झारखंड आये हैं, कैसा है अनुभव
जवाब– (हंसते हुए) यह आम सवाल है ,जो हर बार पूछा जाता है, जैसे किसी को मेडल मिला हो और पूछा कैसा लग रहा है, ऐसा कोई थोड़ी ना कहता है कि बहुत दुख हुआ, हां लेकिन पहली बार आया हूं, मैं ज्यादा घूम नहीं सका. एक उद्देश्य के साथ आया हूं. जितने लोगों से मैं मिला मुझे अच्छा लगा और मैं इस अनुभव के साथ जा रहा हूं दोबारा आना चाहूंगा.
सवाल– आपने बहुत काम किया है, आपको कई अवार्ड मिले हैं… सवाल पूरा होने से पहले ही टोकते हुए कहते हैं, जो बुढ़ा होते हैं बहुत काम किया होता है , सवाल फिर दोहराता हुआ पूछता हूं आपका कौन सा काम आपको सबसे ज्यादा संतुष्टि देता है, बेहतर लगता है
जवाब- ( मजाकिया लहजे में ) इस फिल्म के बाद मुझे भूल जाने की बीमारी हो गयी तो मुझे अपना कोई काम याद नहीं है.
सवाल– रांची शहर में कहीं घूम पाये या नहीं ?
जवाब– मैंने आते- आते महेंद्र सिंह धौनी ( क्रिकेटर ) का घर देखा . आपके शहर में सबसे ज्यादा फेमम क्या है, शहर में धौनी ही फेमस हैं. धौनी अलग तरह के व्यक्तित्व हैं. मैं धौनी से नहीं मिला फिर भी तसल्ली है
सवाल- आगे की योजना क्या है, कौन सी फिल्मों पर काम कर रहे हैं ?
जवाब- मैं एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूं जिसका टाइटल है राइट टू डाइ, कई बार आप शरीर को सिर्फ दवा पर जिंदा रखते हैं. एक खबर छपी है कि 2050 के बाद मरना या बचे रहने का विकल्प होगा.आपको चुनना होगा कि आप क्या चाहते हैं. क्या आप प्राकृतिक रूप से मरना चाहते हैं या कृत्रिम तरीके से बचे रहना चाहते हैं. देखिये , फिल्म कब तक आयेगी और कहां आयेगी कहना मुश्किल है जब तक फिल्म बन नहीं जाती तबतक मैं कुछ नहीं कह सकता.

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