15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Film Review: फिल्‍म देखने से पहले जानें कैसी है ”खानदानी शफाखाना”

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म: खानदानी शफाखाना निर्देशक: शिल्पी दासगुप्ता कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा, नादिरा बब्बर, वरुण शर्मा, बादशाह, कुलभूषण खरबंदा, अनू कपूर, प्रियांश जोरा और अन्य रेटिंग: दो सेक्स या यौन संबंधी विषयों को भारतीय समाज में आज भी प्रतिबंधित माना जाता है. इस पर बातचीत भी बंद कमरे में ही हो. यही सभी को […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म: खानदानी शफाखाना

निर्देशक: शिल्पी दासगुप्ता

कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा, नादिरा बब्बर, वरुण शर्मा, बादशाह, कुलभूषण खरबंदा, अनू कपूर, प्रियांश जोरा और अन्य

रेटिंग: दो

सेक्स या यौन संबंधी विषयों को भारतीय समाज में आज भी प्रतिबंधित माना जाता है. इस पर बातचीत भी बंद कमरे में ही हो. यही सभी को सही लगता है. खानदानी शफाखाना समाज के इसी सोच पर चोट करती है. फ़िल्म अपने विषय की वजह से हिम्मतवाला प्रयोग करार दी जा सकती है खासकर महिला किरदार का सेक्स क्लीनिक चलाने जाना लेकिन परदे पर जो भी कहानी और स्क्रीनप्ले के नाम पर सामने आया है उसे देखने के लिए भी हिम्मत की ही ज़रूरत है.

यूनानी दवाइयों से सेक्स की समस्याओं को ठीक करने वाले मामाजी (कुलभूषण खरबंदा) की मौत हो चुकी है. उन्होंने अपनी वसीयत अपनी भांजी बॉबी बेदी (सोनाक्षी सिन्हा) के नाम कर दी है. बॉबी के ऊपर बहुत सारे कर्ज़ है. यह वसीयत ही उसे बचा सकती है लेकिन ट्विस्ट ये है कि बॉबी को प्रोपर्टी बेचने से पहले मामाजी की सेक्स क्लीनिक को छह महीने चलाना होगा.

बॉबी के खिलाफ समाज ही नहीं उसका परिवार भी हो जाता है. एक लड़की और सेक्स क्लीनिक चलाएगी. कैसे बॉबी बेदी सभी के खिलाफ जाकर सेक्स क्लीनिक चलाती है।यही आगे की कहानी है. संवेदनशील मुद्दों को ह्यूमर के अंदाज़ में कहना सिनेमा का नया फंडा है. खानदानी शफाखाना में भी यही अपनाया गया है.

अलग बात है कि पूरी फ़िल्म में ऐसा हूयमर कहीं भी आपको नहीं मिलता जिस पर आप ठहाके लगा सके।यह फ़िल्म से जुड़ा गंभीर मुद्दा आपको छू जाए. फ़िल्म एक वक्त के बाद मुद्दे पर भाषणबाजी करने लगती है. फ़िल्म से जुड़ा ड्रामा ना एंगेज कर पाता है ना एंटरटेन. कुलमिलाकर फ़िल्म की कहानी बुरी तरह से निराश करती है.

अभिनय की बात करें तो यह फ़िल्म पूरी तरह स सोनाक्षी सिन्हा की फ़िल्म थी लेकिन कमज़ोर कहानी और स्क्रीनप्ले में उनका किरदार भी कमजोर ही रह गया है. बादशाह को फिलहाल एक्टिंग नहीं करनी चाहिए. अनू कपूर और कुलभूषण खरबंदा का किरदार ज़रूर फ़िल्म में थोड़ी राहत देता है।वरुण शर्मा जमे हैं. बाकी के किरदारों के काम ठीक ठाक रहा है.

फ़िल्म गीत संगीत के मामले में भी चूकती है।सिनेमाटोग्राफी की तारीफ करनी होगी पंजाब की खुशबू को सीन में बरकरार रखने की कोशिश हुई है. फ़िल्म को देखते हुए महसूस होता है कि यह लंबी हो गयी है एडिटिंग पर काम करना चाहिए थी हालांकि दो घंटे 17 मिनट की ही फ़िल्म है लेकिन सुस्त और उबाऊ स्क्रीनप्ले उतने समय में ही परीक्षा लेने लगता है. कुलमिलाकर एक फ़िल्म एक बेहतरीन विषय के साथ न्याय करने में चूक गयी है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें