हिंदी फिल्मों में 1980 के दशक तक नायक थे गांधीजी के मूल्यों से प्रभावित : नयी किताब का दावा

नयी दिल्ली : क्या आपको कभी इस बात पर हैरत नहीं हुई कि हिन्दी सिनेमा में 1980 के दशक तक फिल्मी नायक कनक-कामिनी के प्रलोभन से सदा बचने का प्रयास करता हुआ क्यों प्रतीत होता था? लंदन में रहने वाले लेखक और पत्रकार संजय सूरी के अनुसार इसके पीछे महात्मा गांधी की जनमानस पर पड़ी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 13, 2019 9:41 AM

नयी दिल्ली : क्या आपको कभी इस बात पर हैरत नहीं हुई कि हिन्दी सिनेमा में 1980 के दशक तक फिल्मी नायक कनक-कामिनी के प्रलोभन से सदा बचने का प्रयास करता हुआ क्यों प्रतीत होता था? लंदन में रहने वाले लेखक और पत्रकार संजय सूरी के अनुसार इसके पीछे महात्मा गांधी की जनमानस पर पड़ी गहरी छाप थी. अपनी नयी किताब ‘‘ए गांधीयन अफेयर: इंडियाज क्यूरियस पोर्टेल ऑफ लव इन सिनेमा” में सूरी दावा करते हैं कि चाहे वो राज कपूर, शम्मी कपूर या देवानंद या फिर मनोज कुमार, वे सभी अपने चरित्रों में राष्ट्रपिता की छवि को उकेरने का प्रयत्न करते प्रतीत होते हैं. वे सांसरिक प्रलोभनों से लड़ते और जीतते ही दिखते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार ने पुस्तक के लोकार्पण अवसर पर कहा कि नायक को अनिवार्यत: धन-दौलत को अर्जित करते हुए और बाद में उसका त्याग करते हुए दिखाया गया है. उसे यौन संभावनाओं को हासिल करते हुए और बाद में उसका आकर्षण त्यागते हुए दिखाया जाता है. इस दोहरे त्याग में ही उसका नायकत्व छिपा होता है. कई बार निर्माताओं ने यौन इच्छाओं के दमन के बजाय उन्हें गानों के जरिए बाहर आने का मौका भी दिया.

उन्‍होंने आगे कहा,’ मिसाल के तौर पर ‘‘सावन भादों” फिल्म का गाना, ‘‘ कान में झुमका..” या फिर ‘इन इवनिंग इन पेरिस’ फिल्म का गाना, ‘‘आसमान से आया फरिश्ता..” सूरी कहते हैं कि ये नायक गीतों में तो अपनी कामेच्छा तो व्यक्त करता है लेकिन उसका वास्तविक मूल्य है त्याग. सिनेमा के नायकों का यह चलन बहुत सरल है क्योंकि यह सतत चलता आ रहा है. उन्होंने ‘‘प्यासा”, ‘‘गाइड” से लेकर ‘‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे” और ‘‘लगे रहे मुन्ना भाई” फिल्मों के उदाहरण भी गिनाए.

सूरी कहते हैं कि सिनेमा किए जाने वाले और न किए जाने वाले कामों की कठोर नैतिकताओं से बंधा हुआ है. इस किताब का प्रकाशन हार्पर कॉलिंस ने किया है. सूरी किताब में कहते हैं, ‘‘उसूल साफ है, अगर आप सेक्स चाहते हैं तो आप खराब हैं; अगर आप इसे कर रहे हैं तो शरीफ़ नहीं हैं; अगर आप कर चुके हैं तो आपने गलती की है.” हालांकि वास्तविकता इससे पूरी तरह भिन्न है. आम जिंदगी में कंचन और कामिनी को पाने की कामना अधिकतर समय आदमी को चलाती रहती है.

Next Article

Exit mobile version