II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: ड्रीम गर्ल
निर्माता: एकता कपूर
निर्देशक: राज शांडिल्य
कलाकार: आयुष्मान खुराना, अनु कपूर, नुसरत भरुचा, मनजोत, अभिषेक बनर्जी, विजय राज और अन्य
रेटिंग: तीन
आयुष्मान खुराना पिछले कुछ समय से लगातार अपनी फिल्मों के साथ एक्सपेरीमेंट कर वाहवाही बटोर रहे हैं. लीग से हटकर उनकी फिल्मों के विषय रहे हैं. ‘ड्रीम गर्ल’ में वह महिला का किरदार निभा रहे हैं. फ़िल्म का कांसेप्ट आकर्षित करता है लेकिन फ़िल्म की कहानी और उससे जुड़ा ट्रीटमेंट इसे लीग से हटकर नहीं बल्कि विशुद्ध मसाला फ़िल्म की श्रेणी में ले जाता है. इस मसाला फ़िल्म की कहानी जो फ़िल्म के प्रोमो में नज़र आयी है बस वही भर है.
करमवीर (आयुष्मान खुराना) को महिलाओं की आवाज़ निकालने में महारत है. वह रामलीला में सीता और द्रौपदी का किरदार निभाता है और पूरे शहर में सीता मैया के नाम से प्रसिद्ध भी है. करमवीर को पैसे की ज़रूरत है और उसे नौकरी नहीं मिल रही है.
ऐसे में करमवीर महिला की आवाज़ निकालने के अपने गुण का इस्तेमाल करता है और कॉल सेन्टर में पूजा बनकर लोगों से बात करने लगता है. सभी को इंटरटेन करने के साथ साथ वो उनकी परेशानियों को भी दूर करने लगता है ऐसे में कई लोग उसके प्यार में पड़ जाते हैं. वे भी ऐसे-वैसे आशिक़ नहीं है. पूजा को पाने के लिए किसी भी हद से गुज़र सकते हैं. उन्हें धर्म, लिंग किसी का अंतर रोक नहीं सकता है.
इसके बाद करमवीर की ज़िंदगी में कैसी उथल पुथल मचती है, यही आगे की कहानी है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ बहुत धीमी है. कहानी सेकंड हाफ में रफ्तार पकड़ती है. फ़िल्म की कहानी में संदेश भी है कि सोशल मीडिया के इस दौर में दोस्तों की संख्या हज़ारों है लेकिन हर कोई तन्हा है. ये अलग बात है कि ये प्रभावी संदेश दिल को छूता नहीं है. फ़िल्म का क्लाइमेक्स थोड़ा कमज़ोर है. उस पर थोड़ा और काम करने की ज़रूरत थी.
फ़िल्म के निर्देशक राज शांडिल्य की यह बतौर निर्देशक पहली फ़िल्म है. उन्होंने छोटे परदे के कई सुपरहिट हास्य शोज लिखे हैं. फ़िल्म में जबरदस्त वन लाइनर्स हैं और हास्य का भरपूर डोज ,कहीं कहीं डबल मिनिंग भी हो गयी है. फ़िल्म में सबकुछ डालने के चक्कर में इमोशन वाला पोर्शन कमज़ोर रह गया. जिससे यह प्रभावी फ़िल्म बनते बनते रह गयी. हां मनोरंजन करने में पूरी तरह से कामयाब होती है.
अभिनय की बात करें तो आयुष्मान खुराना एक बार फिर दिल जीत लेते हैं. करमवीर और पूजा दोनों ही किरदार में वह जमे हैं. पूजा के किरदार में उनका वॉइस मॉड्यूलेशन हो या बॉडी लैंग्वेज दोनों खास है. अनु कपूर ने पिता और पूजा के आशिक के रोल में जान डाल दी है. कई दृश्य में वे आयुष्मान से भी लाइमलाइट ले जाते हैं. विजय राज का किरदार एक बार फिर गुदगुदाता है. नुसरत भरुचा को फ़िल्म में ज़्यादा स्कोप नहीं है लेकिन जो भी स्पेस उन्हें मिला है उसमें वो जमी हैं. अभिषेक बनर्जी ,मनजोत औऱ बाकी के किरदारो का काम अच्छा है. निधि विष्ट की विशेष तारीफ करनी होगी.
फ़िल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं. कहानी को मनोरंजक बनाने में उनका सबसे अहम योगदान है. गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी और दूसरे पहलू ठीक ठाक हैं.