II उर्मिला कोरी II
फिल्म: द जोया फैक्टर
निर्माता : फॉक्स स्टार स्टूडियो
निर्देशक:अभिषेक शर्मा
कलाकार: सोनम कपूर, दुलकर सोनम, अंगद बेदी, संजय कपूर, मनु रिषी, सिकंदर खरबंदा और अन्य
रेटिंग : ढाई
अव्वल नंबर से धौनी तक अब तक रुपहले परदे पर क्रिकेट से जुड़े जुनून, लगन और हीरोज की कहानियां आयी है. ‘द जोया फैक्टर’ क्रिकेट से जुड़े अंधविश्वास, टोटके सिंपल शब्दों में कहें तो लकी चार्म की बात करता है. क्रिकेटर्स से जुड़ी अंधविश्वास और टोटकों की कहानियां लंबी है. सुनील गावस्कार मैदान में हमेशा राइट साइड़ से चलते हुए एंट्री करते थे तो वही सचिन तेंदुलकर अपने लेफ्ट पैर का पैड राइट से पहले हर मैच में पहनते थे. भारतीय क्रिकेटर ही नहीं विदेशी क्रिकेटर्स भी टोटको और लकी चार्म में यकीन करते रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया के सबसे सफल कप्तान स्टीव वॉ के पास हमेशा एक लाल रुमाल मैच के दौरान उनके पॉकेट में होती थी. अपनी दादी द्वारा दिए गए इस रुमाल को वो अपना लकी चार्म मानते थे. क्रिकेटर्स के साथ साथ इस खेल दीवाने भी ऐसे टोटकों औऱ फंडों को अपनाते आए हैं.
इसी अंधविश्वास के साथ क्रिकेट, प्यार और कॉमेडी को मिलाकर हल्के फुल्के अंदाज में फिल्म की कहानी में परोसा गया है. जोया फैक्टर की कहानी जोया सोलंकी ( सोनम कपूर) की है जिसका जन्म 1963 को हुआ था जब भारत ने क्रिकेट में विश्वकप जीता था. जोया सोलंकी के किक्रेट लवर पिता के लिए उनकी बेटी उसी दिन से लकी हो जाती है. जोया की वजह से उसका पिता और भाई हमेशा गली क्रिकेट में जीत जाते हैं.
जोया एक एड एजेंसी में काम करती है. हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि वो भारत क्रिकेट टीम का लकी चार्म बन जाती है. क्रिकेटर्स अपनी काबिलियत और मेहनत के बजाए जोया के लक पर ज्यादा विश्वास करने लगते हैं लेकिन भारतीय टीम का कप्तान निखिल खोड़ा( दुलकर सलमान) लक से ज्यादा मेहनत और प्रतिभा पर यकीन करता है. क्या निखिल की सोच सही है या सफलता के लिए लक ही सबकुछ है. क्या नि खिल का प्रतिभा और मेहनत पर यकीन करना उसे वर्ल्डकप जीता पाएगा. इस फंडे के साथ साथ फिल्म की कहानी में जोया और निखिल का लव एंगल भी है. जिसमे गलतफहमियां हो गयी है.
अनुजा चौहान की किताब जोया फैक्टर पर आधारित इस फिल्म की कहानी पहले भाग में काफी स्लो है. इंटरवल के बाद फिल्म रफ्तार पकड़ती है. फिल्म की कहानी में जमकर सिनेमैटिक लिबर्टी ली गयी है. जिस तरह से जोया इंडियन टीम को मैच जीताती है वो कई बार बचकाना सा लगता है. जो भी परदे पर नजर आता है उस पर विश्वास नहीं होता है. हां फिल्म इंटरटेन जरुर करती है. यही इस फिल्म की खासियत है. फिल्म आपको गुदगुदाती रहती है.
अभिनय की बात करें तो दुलकर सलमान फिल्म में बेहतरीन रहे हैं. उनका चार्म फिल्म में उभरकर सामने आया है. उन्हें ज्यादा से ज्यादा हिंदी फिल्में करनी चाहिए. सोनम कपूर ने इस तरह का किरदार उन्होंने पहले भी किया है लेकिन इस बार वो हंसाने में कामयाब रही है. उनकी कॉमिक टाइमिंग सुधरी है लेकिन हां संवाद पर थोड़ा और काम करने की उन्हें अभी भी जरुरत है. संजय कपूर और सिकंदर खेर अपने अभिनय में जमें है. अंगद बेदी ने अपने किरदार में अच्छा काम किया है. बाकी के किरदारों को काम भी अच्छा है.
फिल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी है. संगीत पक्ष कमजोर है. संगीत फिल्म की कहानी से ज्यादा प्रभावी नहीं बना पाता है. फिल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं. कॉमेंट्री वाला पार्ट नकली जरुर लगता है लेकिन उससे जुड़े पंचेस हंसाते जरुर है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है. कुलमिलाकर द जोया फैक्टर एक हल्की फुल्की टाइमपास कॉमेडी फिल्म है.