90 साल की हुईं जादुई सुरों की मलिका : जानें अब गाना क्यों नहीं सुनना चाहती हैं लता मंगेशकर
महज पांच साल की उम्र में रंगमंच से अपनी कला-यात्रा शुरू करनेवाली लता मंगेशकर अनेक भाषाओं में हजारों गीत गा चुकी हैं. सिनेमाई अभिनेत्रियों की चार पीढ़ियों को उनकी सुरीली आवाज का सहारा मिला. युवाओं और किशोरों की नयी पीढ़ी भी उनके दशकों पुराने गीतों को गाती और सुनती है. लता मंगेशकर को सिनेमा और […]
महज पांच साल की उम्र में रंगमंच से अपनी कला-यात्रा शुरू करनेवाली लता मंगेशकर अनेक भाषाओं में हजारों गीत गा चुकी हैं. सिनेमाई अभिनेत्रियों की चार पीढ़ियों को उनकी सुरीली आवाज का सहारा मिला.
युवाओं और किशोरों की नयी पीढ़ी भी उनके दशकों पुराने गीतों को गाती और सुनती है. लता मंगेशकर को सिनेमा और संगीत की दुनिया में बहुत पहले महान और मिथक होने का मुकाम हासिल हो चुका है. आज उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अपनी विशालता के साथ भारतीय कला व संस्कृति में एक आदर्श के रूप में स्थापित हैं.
लता मंगेशकर जब पांच वर्ष की थीं, तभी उन्होंने अपने पिता शास्त्रीय गायक और रंगकर्मी दीनानाथ मंगेशकर से संगीत सीखना शुरू कर दिया था. जब उनकी उम्र सात वर्ष थी, तो उनका परिवार मध्य प्रदेश के इंदौर से महाराष्ट्र आ गया. यहां पर पहली बार मंच पर गाने के लिए उन्हें 25 रुपये मिले थे. वर्ष 1942 में पिता के निधन के बाद उनका संघर्ष भरा जीवन शुरू हुआ. बड़ी संतान होने के कारण महज 13 वर्ष की उम्र में ही उनके कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गयी.
उनके पिता के दोस्त और मराठी फिल्मकार विनायक दामोदर कर्नाटकी (मास्टर विनायक) ने उन्हें फिल्मों में अभिनेत्री और गायिका के तौर पर काम दिलाया. मास्टर विनायक के कहने पर लता ने पिता के निधन के एक सप्ताह बाद ही मराठी फिल्म ‘पहली मंगलागौर’ में अभिनय किया. इसके बाद उन्होंने सात अन्य मराठी फिल्मों में अभिनय किया.
उन्हें पहली बार पार्श्व गायन का अवसर मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ के लिए मिला, लेकिन दुर्भाग्यवश फिल्म के रिलीज होने से पहले इस गाने को हटा दिया गया. काफी दिनों तक संगीतकारों ने उनसे गाना नहीं गवाया, क्योंकि उन्हें लगता था कि लता की आवाज पतली है. उनका पहला हिंदी गाना 1943 में रिकॉर्ड हुआ. 1945 में लता मुंबई आ गयीं.
‘मजदूर’ फिल्म के गीत से मिली पहचान
लता मंगेशकर ने अपना पहला एकल गीत 1947 में फिल्म ‘आपकी सेवा’ के लिए गाया था. गीत के बोल थे ‘चलो हो गयी तैयार.’ वर्ष 1948 में ‘मजदूर’ फिल्म के लिए गाये गीत ‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा’ से उन्हें पहचान मिली. वर्ष 1949 लता के करियर का टर्निंग प्वाइंट रहा. इस वर्ष आयी फिल्म ‘महल’ में उनके द्वारा गाया गीत ‘आयेगा आने वाला’ हिट रहा. इस गीत ने न सिर्फ उनकी प्रतिभा को स्थापित करने में मदद की, बल्कि फिल्म जगत के बड़े संगीतकारों के साथ गाने का मौका भी दिया. इसके बाद लता मंगेशकर ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उन्होंने 36 से अधिक भाषाओं में हजारों गीत गाये हैं.
जीवन के विविध पहलुओं पर लता मंगेशकर
लता मंगेशकर का मानना है कि जिंदगी में निरंतर प्रयास ही उन्हें बेहतर इंसान और अच्छा कलाकार बनाने में मददगार रहा.
जावेद अख्तर जैसी शख्सियत को उनकी गायकी में भले ही संपूर्णता दिखती हो, लेकिन लता जी को खुद के गानों में सुधार की गुंजाइश दिखती है. वे कहती हैं कि जिन कमियों को महसूस करती हैं, वह हर आदमी नहीं पकड़ सकता.
उग्र स्वभाव को अपना व्यक्तिगत दोष मानती हैं. वे कहती हैं कि बचपन से ही बहुत जल्दी नाराज हो जाना उनके स्वभाव में शामिल था. उम्र बढ़ने के साथ उनके स्वभाव में परिवर्तन हुआ. वे आश्चर्यचकित होती हैं कि अब उनके स्वभाव में बहुत बड़ा बदलाव आ चुका है.
वे सफलता से अतिउत्साहित नहीं होती हैं. माता-पिता ने उन्हें लोगों को माफ करने और भूलने की शिक्षा दी है, वे इसका अनुपालन करती हैं.
उनका मानना है कि अच्छा गाने की कला भगवान और माता-पिता का दिया हुआ उपहार है. वे कहती हैं कि अपने गायन कला को मेहनत से तराशने की कोशिश की है.
नये गायकों को वे निरंतर रियाज की सलाह देती हैं. कहती हैं कि जो भी गायक अपनी गायकी को लेकर गंभीर है, उसे अपने रियाज पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. आज भी जितना संभव हो पाता है, वे रियाज करती हैं.
वे फिल्मी शास्त्रीय संगीत को शुद्ध शास्त्रीय संगीत नहीं मानती हैं. वे कहती हैं कि अगर मौका मिलता, तो वे स्टेज पर तानपुरे के साथ दो घंटे तक जरूर गायन करतीं, लेकिन गानों की ‘घंटों की रिकॉर्डिंग’ में उन्हें समय कहां मिल पाया. उन्हें फोटोग्राफी और पेंटिंग का शौक है. अगर समय मिलता, तो इस शौक को जरूर पूरा करतीं.
वे संदेश देती हैं कि अपना धर्म निभाओ और कर्म का सम्मान करो. सफलता जरूर मिलेगी. कठिन परिश्रम के बिना कुछ हासिल नहीं होता.
यादों को समेटती पुस्तक ‘दीदी और मैं’
लता जी के संघर्ष और सफलता के संस्मरण को उनकी बहन मीना मंगेश्कर ने एक पुस्तक के रूप में साझा किया है. मीना मंगेशकर खादिकर के संस्मरण का हिंदी रूपांतरण ‘दीदी और मैं’ के रूप में प्रकाशित किया गया है. यह मराठी पुस्तक ‘मोथी तिची सावली’ का अनुवाद है, जिसे पिछले वर्ष जारी किया गया था. मीना के मुताबिक यह लता जी के 90वें जन्मदिन पर उनकी तरफ से उपहार है. पुस्तक में मंगेशकर परिवार की खट्टी-मीठी यादों को समेटा गया है. पुस्तक में मंगेशकर परिवार की यादगार तस्वीरों को साझा किया गया है. पुस्तक की प्रस्तावना मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने लिखी है
अब गाने नहीं सुनतीं
– इन दिनों बहुत कम गाना गाने की वजह
संगीत फिल्मों में रहा ही नहीं. शास्त्रीय संगीत जैसा था, वैसा ही चल रहा है. मेरी पीढ़ी के फिल्म संगीत पर पूर्ण विराम लग चुका है. फिल्मकार और संगीतकार मुझसे कहते भी हैं कि बाजार बदल गया है.
युवा बिल्कुल अलग तरह का संगीत और मनोरंजन चाहते हैं. तकनीक के विकास के साथ सिंथेसाइजर और डिजिटल इफेक्ट ने विशेषज्ञ वादकों और ऑर्केस्ट्रा के इंतजाम की जगह ले ली है. गीतों में आवाजें इतनी तेज गति से चलती हैं कि गीतों को बमुश्किल ही समझा जा सकता है. मानवीय कारक गौण हो चला है. मशीन से बनी ध्वनि और आवाज में बदलाव प्रमुख हो गये हैं. नयी सहस्राब्दी के संगीत को समझने के लिए अपने कानों पर दबाव डालने के बजाय मैंने चार्टबस्टर गानों को भी सुनना बंद कर दिया है. मैं अभिमानी प्रतीत नहीं होना चाहती हूं.
मैंने अपने गाने और अपने साथी कलाकारों के पुराने गीतों को भी सुनना बंद कर दिया है. मैं मानती हूं कि पुराने गानों- भूले-बिसरे गीतों- के सुननेवाले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जो अचरज की बात नहीं है. स्पष्ट तौर पर वे गीत विशिष्ट थे, बेहतर थे. मैं अपने गाने इसलिए नहीं सुनती कि यह बहुत आत्म-मुग्धता होगी. यह ऐसा ही कहना होगा कि देखिए लोगों, अब मैं अतीत में जा बसी हूं, अपने मन के सूर्यास्त की गलियों में.
– तो क्या संगीत बिल्कुल ही नहीं सुनतीं!
नहीं-नहीं, ऐसा करने के लिए तो मुझे अपने कान ही काटने होंगे. जब मूड होता है, तो मेहदी हसन और गुलाम अली की गजलें तथा बड़े गुलाम अली खान और उस्ताद आमिर खान का शास्त्रीय गायन सुनती हूं. मैं पूर्ण शास्त्रीय ढंग में नहीं गा सकती थी, क्योंकि मैं फिल्म संगीत में रची-बसी थी. वैसे मुझे लोकप्रिय और शास्त्रीय, एक साथ दोनों रूपों में गायन करना चाहिए था.
(प्रीतीश नंदी और तपन चाकी द्वारा संपादित पुस्तक ‘पीयरलेस माइंड्स’ में लता जी से खालिद महमूद के साक्षात्कार का अनुदित अंश). शी द पीपुल डॉट टीवी से साभार
सुरमयी सफर
जन्मतिथि 28, सितंबर, 1929.
जन्म स्थान इंदौर, मध्य प्रदेश.
पिता दीनानाथ मंगेशकर.
माता शेवंती मंगेशकर.
संबंधी आशा भोसले, उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर (बहनें) और हृदयनाथ मंगेशकर (भाई).
संगीत गुरु अमानत खान, पंडित तुलसीदास शर्मा और अमन अली खान.
पुरस्कार
सम्मान पद्म भूषण (1969), दादासाहेब फाल्के (1989), पद्म विभूषण (1999), भारत रत्न (2001), तीन बार राष्ट्रपति पुरस्कार (1972, 1974 व 1990), चार बार फिल्मफेयर पुरस्कार व फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार.
उनके पसंदीदा गाने
वर्ष 2012 में उन्होंने पहली बार अपनी पसंदीदा गीतों के बारे में बताया था. उन्हीं में से आपके सामने 10 गीतों को रख रहे हैं.
सीने में सुलगते हैं अरमा (तराना)
प्यार किया तो डरना क्या (मुगल-ए-आजम)
लग जा गले से (वो कौन थी)
वो चुप रहें तो मेरे दिल के दाग..(जहांआरा)
पिया बिना पिया बिना (अभिमान)
रुलाके गया सपना मेरा (ज्वेलथीफ)
कहीं दीप जले कहीं दिल (बीस साल बाद)
दुनिया करे सवाल (बहू बेगम)
अल्लाह तेरो नाम (हमदोनों)
तू चंदा मैं चांदनी (रेशमा और शेरा)