अभिनेता नील नितिन मुकेश मानते हैं कि फिल्म उद्योग एक बॉक्सिंग रिंग की तरह है जहां खेल तब तक खत्म नहीं होता जब तक मुकाबले में एक व्यक्ति हार न जाए या खेल का वक्त पूरा न हो जाए. नील का कहना है कि कलाकार लगातार वापसी के लिए जूझता है और आखिरी तक लड़ता है. 2007 में श्रीराम राघवन की थ्रिलर ‘‘जॉनी गद्दार’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले नील ने ‘‘न्यूयार्क’, ‘‘7 खून माफ’ और ‘‘डेविड’ जैसी फिल्मों में भी अपने अभिनय के जौहर दिखाए. न केवल उनकी फिल्में लोकप्रिय हुईं बल्कि आलोचकों ने भी उनके अभिनय को सराहा.
उन्होंने वह दौर भी देखा जब उनकी फिल्में फ्लॉप हुईं. उन्होंने बताया कि समय ने उन्हें बहुत मजबूत बना दिया. उन्होंने कहा ‘फिल्म उद्योग ने मुझे सिखाया कि यह एक बॉक्सिंग मैच है जहां हर शुक्रवार को आपको अहसास होता है कि या तो आप उठ जाएं या हार जाएं.’
उन्होंने आगे कहा,’ आपको उठना पड़ता है और वापसी के लिए जी जान लगाना पड़ता है. फिल्म उद्योग ने मुझे सिखाया कि अपने लिए लड़ना आसान नहीं है. आपको खुद को साबित करना होता है, वह भी पूरे दम खम के साथ.’
नील ने कहा कि अपने 12 साल के करियर में उन्होंने श्रीराम, विशाल भारद्वाज, कबीर खान और विजय नांबियार जैसे फिल्मकारों के साथ काम किया, यह उनका सौभाग्य है. नील के अनुसार, इन लोगों से उन्होंने फिल्म निर्माण के बारे में बहुत कुछ सीखा. उन्होंने कहा ‘सीख देने वाली यात्रा रही. मैंने अभिनेता बनने से पहले अभिनय की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी. हर दिन मैं सीखता गया. अच्छे निर्माताओं के साथ बहुत कुछ सीखने को मिला. अलग अलग भाषाओं में मैंने फिल्में कीं और उनसे भी सीखा.’
नील ने कहा ‘मेरे लिए नंबर गेम वाली बात तो है ही नहीं. मैंने जिनके साथ काम किया, उनसे सीखा। बॉक्स ऑफिस का गणित कभी मुझे समझ आया ही नहीं.’ 37 वर्षीय नील मानते हैं कि सिनेमा कभी भी, कहीं भी नहीं ठहरता इसलिए उनका अलग अलग भाषाओं की फिल्में करने का फैसला सही है. ‘‘इससे मेरी सोच में भी बहुत बदलाव हुआ.’ अब नील खुद निर्माता बन गए. उन्होंने ‘‘बाई पास रोड’ का निर्माण किया और पटकथा भी लिखी. फिल्म का निर्देशन उनके भाई नमन नितिन मुकेश ने किया है.