II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: मोतीचूर चकनाचूर
निर्माता: वायकॉम 18
निर्देशक: देबमित्र
कलाकार: नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी, आथिया शेट्टी,विभा छिब्बर, अभिषेक रावत,करुणा पांडेय,नवनीत परिहार और अन्य
रेटिंग: तीन
छोटे शहर की कहानियां, वहां के लोगों के सपने, उनकी समस्याएं जैसे कई विषय पिछले कुछ समय से सिनेमाई पर्दे पर उकेरे जा रहे हैं. ‘मोतीचूर चकनाचूर’ भोपाल की खुशबू समेटे हुए है. शादी के लिए अच्छा पार्टनर नहीं बल्कि भारी दहेज और विदेश में नौकरी करनेवाला लड़का लोगों को चाहिए. यह फिल्म इसी सोच पर तंज भी कसती है.
फ़िल्म की कहानी मुंहफट और बिंदास एनी उर्फ अनिता (आथिया शेट्टी) की है, जो छोटे शहर में भले ही रहती हो लेकिन उसका सपना शादी कर विदेश में रहने का है ताकि वह अपनी उन सहेलियों से कमतर ना रहे जो शादी करके विदेश में है.
विदेश में बसने की चाह में वह अब तक बीसियों रिश्ते ठुकरा चुकी है लेकिन अब तक कोई विदेश ले जाने वाला दूल्हा नहीं मिला है. एनी के पड़ोस में दुबई से घर लौटे पुष्पिंदर (नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी) की एंट्री होती है. 36 साल का पुष्पिंदर अब तक कुंवारा है क्योंकि उनकी माताजी को ढेर सारा दहेज चाहिए. हालत ऐसी हो गयी है कि अब पुष्पिंदर किसी भी लड़की से शादी करने के लिए तैयार बैठा है बस वो लड़की हो.
एनी को कोई विदेश ले जाने वाला दूल्हा मिल नहीं रहा ऐसे में ना चाहते हुए भी एनी पुष्पिंदर पर डोरे डालने लगती है कि कम से कम दुबई ले जाने वाला पति तो मिल जाएगा. किसी भी लड़की से शादी के लिए तैयार बैठे पुष्पिंदर को जब सामने से गोरी चिट्टी एनी का प्रोपोजल मिलता है तो वो तुरंत शादी कर लेता है लेकिन शादी के बाद कहानी में ट्विस्ट आ जाता है. जब मालूम होता है कि पुष्पिंदर की दुबई वाली नौकरी जा चुकी है.
पुष्पिंदर और एनी की ज़िन्दगी में क्या तूफान आता है ? क्या उनकी शादी टिकेगी ? यही आगे की कहानी है. फ़िल्म की कहानी भले ही साधारण है और आगे क्या होगा कहानी में ये भी मालूम होता है लेकिन फ़िल्म का ट्रीटमेंट ऐसा है कि वो आपको गुदगुदाता रहता है. मध्यमवर्गीय दो पड़ोसियों की दुनिया के इर्द गिर्द कहानी को कहना अनूठापन लाता है . हां कहानी थोड़ी लंबी खिंच गयी है. फ़िल्म का लेंथ थोड़ा कम किया जा सकता था.
अभिनय की बात करें तो नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी समर्थ अभिनेता है. एक बार फिर उन्होंने काबिलेतारीफ एक्टिंग की है. 36 साल के कुंवारे के अकेलेपन औऱ सोच को उन्होंने अपने किरदार से बखूबी निभाया है. आथिया शेट्टी ने छोटे शहर की लड़की का अंदाज़ अच्छे से पकड़ा है. कुछ सीन्स में उनकी ओवरएक्टिंग को छोड़ दे तो खासकर फर्स्ट हाफ के शुरुआत में तो वो बतौर एक्ट्रेस अच्छी रही हैं. बुंदेलखंडी भाषा को उन्होंने आत्मसात कर लिया था.
नवाज़ और आथिया की केमिस्ट्री अच्छी बन पड़ी है. बाकी के किरदारों की भी तारीफ करनी होगी जो हमें आसपास से लगते हैं. फ़िल्म की स्टारकास्ट इसकी सबसे बड़ी यूएसपी है. ये कहना गलत ना होगा फ़िल्म का संगीत औसत है.सिनेमैटोग्राफी अच्छी रही है. संवाद ठीक ठाक है. कुलमिलाकर कुछ खामियों के बावजूद बेहतरीन कलाकारों से सजी ये फ़िल्म मनोरंजन करती है.