II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म : मरजावां
निर्देशक : मिलाप जावेरी
कलाकार : सिद्धार्थ मल्होत्रा, तारा सुतारिया,रकुलप्रीत, रितेश देशमुख,रवि किशन,नोरा फतेही और अन्य
रेटिंग : डेढ़
80 और 90 के दशक की मसाला फिल्में प्यार, बदला, कुर्बानी, हीरोइज्म के साथ खूब सारा मेलोड्रामाज के लिए याद की जाती रही हैं. इन्ही फॉर्मूले से प्रेरित होकर मरजावां भी बनायी गयी है लेकिन मिलाप उनकी टीम इस बात को भूल गयी कि सिर्फ फॉर्मूले से एंटेरटेनिंग फिल्में नहीं बनती हैं. फिल्म की कहानी रघु (सिद्धार्थ मल्होत्रा) और विष्णु ( रितेश देशमुख ) की निजी दुश्मनी पर आधारित है. अन्ना ( नासर ) जैसे टैंकर माफिया किंग रघु को लेकर आया था. वह लावारिस पड़ा था, गटर के पास.
रघु अन्ना के साथ रह कर माफिया के कामकाज सीख चुका था और अन्ना अपने बेटे विष्णु से अधिक तवज्जो उसे देते थे. यही बात विष्णु को रास नहीं आती है और वह हमेशा रघु की हर चीज को बर्बाद करने में जुट जाता है.
विष्णु को यह भी लगता है कि शारीरिक रूप से वह बौना है, इसलिए अन्ना रघु को अधिक मानता है. पूरी बस्ती रघु की दीवानी है, इसमें बार डांसर ( रकुल ) भी शामिल हैं. इसी बीच रघु की जिंदगी में न बोलने वाली लड़की जोया ( तारा) की एंट्री होती है और प्रेम कहानी शुरू होती है. विष्णु की वजह से रघु के हाथों से अपने ही प्रेम जोया को गोली मारनी पड़ती है.
विष्णु जोया की जान का दुश्मन बन बैठता है और फिर बदले की कहानी का आगाज होता है. फ़िल्म में रघु खुद को अपनी प्रेमिका को मार देता है यह बात अपील करती है लेकिन परदे पर जिस तरह से वह दिखता है वो इमोशनल कम मेलोड्रामेटिक ज़्यादा लगता है।फिल्म में कहानी के लिहाज से कुछ भी नयापन नहीं है.
फिल्म कभी आपको एक विलेन, तो कभी आपको जीत, मुक़ददर का सिकंदर जैसी फिल्मों की याद दिलाने लगता है. प्रेमिका की मौत का बदला लेने वाला प्रेमी, इस स्टोरीलाइन पर अबतक हजार फिल्मों से भी ज्यादा फिल्मों का निर्माण हो चुका है. फिर व्यर्थ में इस सिर दर्द क्यों बनाया गया. यह बात फ़िल्म देखते हुए कई बार जेहन में आती है.
अभिनय की बात करें तो सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अमिताभ बच्चन जैसे तेवर दिखाने की कोशिश की है, जिसमें वह पूरी तरह नाकामयाब रहे हैं. सिर्फ माचिस की तीली होठों में दबा लेने भर से एंग्री यंग मैन कोई नहीं बन जाता है. अपनी संवाद अदायगी और अपने एक्शन में पूरी तरह सिद्धार्थ विफल रहे हैं. एक फिल्म पुरानी तारा भी बिल्कुल प्रभावित नहीं करती, हां परदे पर सिर्फ खूबसूरत ज़रूर लगती है. रितेश बौने विलेन के किरदार में जंचे है लेकिन कुछ अलहदा नहीं कर पाए हैं. रकूल के लिए फिल्म में ज्यादा करने के लिए कुछ भी नहीं था. बाकी के किरदारों का काम ठीक ठाक था.
दूसरे पहलुओं की बात करें तो संवाद के नाम सिर्फ बड़े -बड़े डायलॉग लिख देने भर से फिल्में मसालेदार एंटरटेनमेंट नहीं बन जाती है. यह फ़िल्म देखते हुए यह बात शिद्दत से महसूस होती है. फ़िल्म के संवाद में तुकबंदी के साथ साथ पुराने गानों के बोल भी हैं।फ़िल्म में ऐसा कुछ भी खास नहीं है जिसका जिक्र किया जाए.
कुलमिलाकर मिलाप की यह रिवेंज लव स्टोरी अपील नहीं करती है. इससे दूर रहने में ही समझदारी है.