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महिला निर्देशकों को लैंगिक चश्मे से देखना गलत : फराह खान

पणजी : अपनी पहली ही फिल्म ‘मैं हूं ना’ के जरिए अपने निर्देशन का लौहा मनवाने वाली बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म निर्देशिका फराह खान का कहना है कि महिला निर्देशकों को लैंगिक विभेद के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. फिल्म निर्देशक, कोरियोग्राफर, प्रोड्यूसर फराह ने यहां कहा, ” फिल्म निर्देशन कोई लैंगिक आधार पर […]

पणजी : अपनी पहली ही फिल्म ‘मैं हूं ना’ के जरिए अपने निर्देशन का लौहा मनवाने वाली बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म निर्देशिका फराह खान का कहना है कि महिला निर्देशकों को लैंगिक विभेद के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. फिल्म निर्देशक, कोरियोग्राफर, प्रोड्यूसर फराह ने यहां कहा, ” फिल्म निर्देशन कोई लैंगिक आधार पर टिकी हुयी भूमिका नहीं है.’ उन्‍होंने आगे कहा,’ फिल्म निर्देशक एक फिल्म निर्देशक होता है, पुरूष या महिला नहीं. वह अपने नाम के साथ महिला निर्देशक का तमगा लगाना उचित नहीं मानती.’

हालांकि वह यह बात भी स्वीकार करती हैं कि कुछ महिला निर्देशकों को यह तमगा लगाना अच्छा लगता है लेकिन उनके नजरिये में यह लैंगिकता का मुद्दा नहीं बल्कि कौशल,दक्षता और पेशेवराना अंदाज का मसला अधिक है.

अभिनेताओं के मुकाबले अभिनेत्रियों को कम पैसा मिलने के सवाल पर फराह ने कहा कि व्यवस्था ही ऐसी बनी हुयी है. उन्होंने इसके लिए दर्शकों की मानसिकता को अधिक जिम्मेदार बताया और दर्शकों से अभिनेत्रियों की केंद्रीय भूमिका वाली फिल्मों को अधिक प्रमुखता दिए जाने की बात कही.

फराह ने यहां 50वे अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्मोत्सव में ” मास्टर क्लास” सत्र में फिल्म आलोचक राजीव मसंद के साथ बातचीत में यह बातें कहीं श्याम बेनेगल की ‘मंथन’ जैसी सामाजिक संदेश वाली फिल्मों के आज नहीं बनने संबंधी सवाल पर विस्तार में जाते हुए फराह ने कहा, ”फिल्मों का असर अगर समाज पर होता तो पूरी दुनिया आज गांधीगिरी अपना चुकी होती और भारत पाकिस्तान के बीच दोस्ती हो चुकी होती.”

उनका मानना है कि फिल्में वही दिखाती हैं जो समाज में होता है. इसका उल्टा नहीं है. उन्होंने कहा कि समाज की हर गलत प्रवृत्ति के लिए सिनेमा पर दोष मढ़ना उचित नहीं है. हालांकि उन्होंने ”टायलेट एक प्रेमकथा, ‘मंगल मिशन’ और ‘पैडमैन’ जैसी फिल्मों का जिक्र करते हुए कहा कि आज भी सामाजिक संदेश देने वाली फिल्में काफी संख्या में बन रही हैं और दर्शक उन्हें सराह भी रहे हैं लेकिन वे उनसे कितना संदेश लेते हैं यह तो उन पर ही निर्भर करता है.

फराह ने डिजीटल प्लेटफार्म को फिल्मों के लिए खतरा बताने वाले सवाल के जवाब में कहा,” डिजीटल स्ट्रीमिंग का भविष्य है लेकिन यह कहना कि यह मुख्य धारा के सिनेमा की जगह ले लेगा तो ऐसा नहीं है.”

‘ मैं हूं ना’, ‘ओम शांति ओम’, ‘जाने कहां से आयी है’, ‘हैप्पी न्यू ईयर’ और ‘स्टूडेंट आफ दी ईयर’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुकीं फराह श्रीदेवी से लेकर अनन्या पांडे तक बालीवुड की तमाम जानी मानी अभिनेत्रियों को अपनी कोरियोग्राफी से सफलता की बुलंदियों पर पहुंचा चुकी हैं लेकिन अभी भी उनकी एक दिली तमन्ना बची हुयी है. वह हालीवुड अभिनेता टॉम क्रूज को अपनी कोरियोग्राफी पर नचाना चाहती हैं.

एक अन्य सवाल के जवाब में 1982 की हिट फिल्म ”सत्ते पे सत्ता’ के रिमेक की खबरों को पूरी तरह अफवाह बताते हुए फराह खान ने कहा कि ये सब कोरी अफवाहें हैं और यह अफवाह तभी सच होगी जब वह खुद इसकी पुष्टि करेंगी. फराह ने अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी अभिनीत फिल्म के रिमेक के जवाब में कहा,” किसने बोला कि सत्ते पे सत्ता की रिमेक बन रही है. हम बोलेंगे तभी सच होगा.”

‘मैं हूं ना’ फिल्म की निदेशक फराह ने हंसते हुए कहा,” मीडिया तो हर सप्ताह रिमेक की एक खबर चला देता है. मीडिया ही हर सप्ताह रिमेक बनाता है, मैं नहीं. मैंने आज तक इस बारे में कोई घोषणा नहीं की है.’ उल्लेखनीय है कि हालिया मीडिया रिपोर्टों में यह बात सामने आयी थी कि फराह खान की अगली फिल्म ‘सत्ते पे सत्ता’ का रिमेक होगी जिसे वह फिल्म निर्देशक रोहित शेट्टी के साथ मिलकर बनाएंगी और रितिक रोशन तथा अनुष्का शर्मा मुख्य भूमिका में होंगे.

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