Film Review: फिल्‍म देखने से पहले जानें कैसी है फिल्‍म ”भांगड़ा पा ले”

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म: भांगड़ा पा ले निर्माता: आरएसवीपी मूवीज निर्देशक: स्नेहा तौरानी कलाकार: सनी कौशल,रुखसार,श्रिया पिलगांवकर,परमीत,समीर और अन्य रेटिंग: डेढ़ एक वक्त था जब हिंदी फिल्मों में डांस एक बहुत लोकप्रिय जॉनर हुआ करता था. मिथुन और गोविंदा को उनकी डांस वाली फिल्मों ने ही स्टार बनाया था. हाल के वर्षों में कोरियोग्राफर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 3, 2020 2:02 PM

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म: भांगड़ा पा ले

निर्माता: आरएसवीपी मूवीज

निर्देशक: स्नेहा तौरानी

कलाकार: सनी कौशल,रुखसार,श्रिया पिलगांवकर,परमीत,समीर और अन्य

रेटिंग: डेढ़

एक वक्त था जब हिंदी फिल्मों में डांस एक बहुत लोकप्रिय जॉनर हुआ करता था. मिथुन और गोविंदा को उनकी डांस वाली फिल्मों ने ही स्टार बनाया था. हाल के वर्षों में कोरियोग्राफर से निर्देशक बने रेमो डिसूजा ने इस जॉनर को फिर से जीवंत कर दिया है. नवोदित निर्देशिका स्नेहा तौरानी ने अपनी निर्देशन की पारी के लिए भांगड़ा पा ले से इसी जॉनर को चुना है.

डांस जॉनर की फिल्मों में गीत संगीत कहानी की तरह ही सबसे अहम होता है लेकिन यहां कहानी के साथ साथ गीत संगीत बेदम रह गए हैं. फ़िल्म की कहानी में दो कहानियां एक साथ चलती है. एक कहानी का समय 40 का दशक है तो दूसरी कहानी मौजूदा समय की है.

जग्गी (सनी कौशल) को लंदन जाकर डांस कॉम्पिटि‍शन जीतना है लेकिन इससे पहले उसे कॉलेज में डांस कॉम्पिटिशन जितना ह. उसे एक पार्टनर की ज़रूरत है. उसकी मुलाकात सिमी(रुखसार) से होती है. वह सिमी को अपनी डांस पार्टनर बनाना चाहता है लेकिन उसे मालूम पड़ता है कि सिमी कॉम्पिटिशन में उसके प्रतिस्पर्धी है क्योंकि वह दूसरे कॉलेज की है.

सिमी कॉम्पिटिशन जीत जाती है. जग्गी हार जाता है. अब वह लंदन के भांगड़ा डांस कॉम्पिटिशन का हिस्सा कैसे बन पाएगा और 40 के दशक वाली दूसरी कहानी किस तरह से इस कहानी से जुड़ी है उसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी. हालांकि उस कहानी की ज़रूरत फ़िल्म को नहीं थी.

फ़िल्म की कहानी जितनी कमज़ोर है उतना ही उसका ट्रीटमेंट भी. फ़िल्म के फर्स्ट हाफ में गानों की भरमार है जो फ़िल्म की कमज़ोर कहानी को और कमज़ोर कर जाते है।. फ़िल्म का पहला हाफ बहुत कमजोर है. दूसरे हाफ में कहानी थोड़ा संभलती है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

अभिनय की बात करें तो सनी कौशल औसत रहे हैं. 40 के डाक वाले कप्तान और आज के दौर के जग्गी की भूमिका में उन्होंने मेहनत तो की है लेकिन इमोशनल सीन में वे कमज़ोर रह गए हैं. इस फ़िल्म से अपनी शुरुआत करने वाली रुखसार उम्मीद जगाती हैं. श्रिया पिलगांवकर अपनी भूमिका में प्रभावी रही हैं. परमीत सेठी और समीर सोनी चंद दृश्यों में नज़र आए हैं. फ़िल्म में उनके करने को कुछ खास नहीं था.बाकी के किरदार ठीक ठाक रहे हैं.

फ़िल्म के गीत संगीत में आइकोनिक सांग भांगड़ा पा ले और याई रे बस यही अच्छे हैं बाकी के गाने जब शुरू होते हैं तो लगता है कि क्यों ये बज रहे हैं. फ़िल्म के संवाद में ज़रूरत से ज़्यादा दोहराव है. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. पंजाब की खूबसूरती को बखूबी दृश्यों में लाया गया है. कुलमिलाकर भांगड़ा पा ले निराश करती है.

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