‘छपाक ’ की डायरेक्टर मेघना गुलजार ने कहा, जब आप एक सुंदर चेहरे को बिगाड़ते हैं तो ज्यादा प्रभावित होते हैं दर्शक

तलवार और राज़ी की कामयाबी के बाद निर्देशिका मेघना तलवार बतौर निर्देशक एक विश्वसनीय नाम बन चुकी हैं. जिनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रहती हैं. वे समाज की अलग- अलग परिस्थितियों से रूबरू भी करवाती हैं. आज उनकी फिल्म छपाक ने टिकट खिड़की पर दस्तक दी है. प्रस्तुत है उर्मिला कोरी से हुई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2020 11:41 AM

तलवार और राज़ी की कामयाबी के बाद निर्देशिका मेघना तलवार बतौर निर्देशक एक विश्वसनीय नाम बन चुकी हैं. जिनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रहती हैं. वे समाज की अलग- अलग परिस्थितियों से रूबरू भी करवाती हैं. आज उनकी फिल्म छपाक ने टिकट खिड़की पर दस्तक दी है. प्रस्तुत है उर्मिला कोरी से हुई बातचीत-

लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी ने आपको किस तरह से प्रभावित किया

अखबार पढ़ते हुए मैंने नोटिस किया कि एसिड अटैक आजकल बहुत हो रहे हैं. ये घटनाएं बलात्कार के रूप में बड़े पैमाने पर हो रही हैं लेकिन लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं. इस पहलू पर मेरा ध्यान गया. लोगों में इस बारे में पर्याप्त जागरूकता नहीं है फिर मैंने रिसर्च करना शुरू किया तो पहला मामला जो मुझे आकर्षित करने वाला था वो लक्ष्मी अग्रवाल का मामला था. उनकी कहानी अलग- अलग कारणों से एक ऐतिहासिक कहानी रही है. वे आज एक जाना- माना चेहरा भी हैं. इस वजह से मैंने उनकी कहानी को चुना.

इस तरह की फ़िल्म के लिए तैयारी करना कठिन काम होता है आपका पूरा प्रोसेस क्या रहा

पहला काम था लक्ष्मी को समझाना. हमें उसका विश्वास हासिल करना था क्योंकि इस फिल्म के लिए उसकी मंजूरी लेनी थी. हमें उसे विश्वास दिलाना था कि हम उसकी कहानी को बहुत संवेदनशील तरीके से दिखाएंगे. उसे समझाने में थोड़ा समय लगा. अगला काम सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध हर चीज के आधार पर कहानी बनाना था. मेरे सह लेखक अतिका चौहान और मैंने कांसेप्ट बनाया. हमने लक्ष्मी के साथी आलोक से भी बात की, नोएडा में उनके एनजीओ गए और एसिड हमले में बचे कई लोगों से बात की. पता था इस तरह के संवेदनशील विषय के लिए, आपको बहुत अधिक रिसर्च करना होगा.मेहनत से कोई परहेज नहीं है बस अच्छा काम करना चाहते थे.

दीपिका जैसी सुपरस्टार अभिनेत्री जब किसी फिल्म से जुड़ती है तो फ़िल्म और प्रभावी बन जाती हैं

निश्चित रूप से जब दीपिका जैसी अभिनेत्री एक वास्तविक जीवन चरित्र को निभाती है जैसे कि लक्ष्मी की तो प्रसंशक फ़िल्म से और जुड़ जाते हैं. दीपिका सुंदरता का प्रतीक है, इसलिए जब हम एक सुंदर चेहरे को बिगाड़ते हैं तो दर्शकों पर उसका प्रभाव बहुत अधिक होता लेकिन मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्मी और दीपिका के बीच की समानता थी. एसिड अटैक से पहले लक्ष्मी और 22 साल की दीपिका को देखा जाए तो दोनों का चेहरा लगभग एक ही है.

देखिए मूवी के बारे में क्या कहते हैं दर्शक-

बतौर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को कैसे परिभाषित करेंगी?

वह अद्भुत है. आपको फिल्म में उनका बतौर अभिनेत्री बिल्कुल अलग पक्ष देखने को मिलेगा.भावनात्मक रूप से यह फिल्म दीपिका के लिए बहुत कठिन थी.मैं उसकी हिम्मत का सम्मान करती हूं. मैं बताना चाहूंगी वह क्लस्ट्रोफोबिक है और लंबे समय तक मास्क पहनना उसके लिए आसान नहीं था.लेकिन उसने शूटिंग के दौरान इन सब बातों को कभी जाहिर नहीं होने दिया.

आपको इंडस्ट्री में 18 साल हो गए हैं लेकिन आप ने अब तक गिनी चुनी फिल्में बनायी है

मैंने कम फिल्में इसलिए नहीं की क्योंकि मैं फ़िल्म बनाना नहीं चाहती थी बल्कि बात ये है कि जब आपकी फ़िल्म नहीं चलती है तो आपके लिए अपनी अगली फिल्म बनाना मुश्किल होता है. जब आपकी फिल्म चलती है तो आपका अगला प्रोजेक्ट आसान होता है. मेरी फिल्मों के बीच एक बड़ा अंतर मेरे बेटे के कारण भी हुआ.वो छोटा था उस वक़्त उसी मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी अब वो 10 साल का है मेरे बिना रह लेता है. मेरे पति भी बहुत सपोर्टिव हैं. जो ना सिर्फ मेरे काम को समझते हैं बल्कि सपोर्ट भी करते हैं. वह मेरे बेटे और घर की देखभाल मेरी अनुपस्थिति में करते हैं, इसलिए जब भी मैं काम पर होती हूं, मुझे चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती है. मेरी शूटिंग के दौरान, वह मेरे बेटे को सेट पर भी ले आते है. उनसे मिलना मेरे लिए एक रिचार्ज की तरह होता है. मेरे बेटे ने भी हाल ही में मुझे मेरी फिल्म छपाक के लिए शुभकामनाएं दीं जब मैं फ़िल्म के सेंसर सर्टिफिकेट के लिए जा रही थी और जब मुझे बिना कट के स्पष्ट प्रमाण पत्र मिला तो मैंने पहली बार उसे अपनी खुशी साझा करने के लिए बुलाया.

छपाक बहुत ही इंटेंस फ़िल्म है जब आप इस तरह की फिल्में करती हैं तो किस तरह से अपने आपको को रिलैक्स रखती हैं

जब तक मेरी फिल्म रिलीज़ नहीं हो जाती, तब तक मैं खुद को फ़िल्म और उससे जुड़े इमोशन से जोड़े रखती हूं.एक बार जब मैं अपनी फिल्म का अंतिम कट देखती हूं तो मुझे राहत मिलती है लेकिन मेरी जिम्मेदारी मेरी फिल्म के रिलीज होने तक बनी रहती है. मैं स्विच ऑफ नहीं करती, लेकिन हां मैं भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया नहीं देती. विषय इतना संवेदनशील है कि आप जोड़ तोड़ नहीं कर नहीं सकते हैं आपको सही चीजों को प्रस्तुत करना ही होता है.

क्या आप कभी अपने पिता की फिल्म का रीमेक बनाएंगे?

नहीं कभी नहीं. मुझे लगता है कि क्लासिक्स ऐसे ही रहने चाहिए.उन्हें मुझे या किसी और को नहीं छूना चाहिए.चाहे वह फिल्म, साहित्य, संगीत या कोई और कला हो, उसे छुआ नहीं जाना चाहिए.यदि आप युवा पीढ़ी को दिखाना ही चाहते हैं तो उनके ओरिजिनल स्वरूप में ही दिखाए. वे क्लासिक हैं. वे उनको उसी स्वरूप में पसंद करेंगे.

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