फिल्म: मर्दानी
निर्देशक: प्रदीप सरकार
निर्माता: यशराज बैनर
कलाकार: रानी मुखर्जी, ताहिर भसीन, अनिल जॉर्ज और अन्य
रेटिंग: साढ़े तीन
भारत में हर साल करीब 40000 बच्चे किडनैप किये जाते हैं. हर आठ मिनट में एक लड़की लापता होती है. इस तरह के कई चौंकाने वाले आंकड़े हैं जो यह बात साबित करते हैं कि भारत बच्चों के देह व्यापार का गढ़ बनाता जा रहा है. महिला तस्करी और देह व्यापार की इसी भयावह सच्चई पर रानी मुखर्जी की फिल्म मर्दानी है. इससे पहले भी इस मुद्दे को फिल्मों में उठाया गया है लेकिन एक जाबांज महिला पुलिस ऑफिसर के जरिये देह व्यापार माफिया का सफाया एक अच्छा संदेश है.
फिल्म की कहानी मुंबई क्राइम ब्रांच की सीनियर इंस्पेक्टर शिवानी शिवाजी रॉय (रानी मुखर्जी) की है. शिवानी मुंबई में अपने पति डॉ बिक्र म रॉय और भतीजी मीरा के साथ रहती है. इसकी भतीजी की एक दोस्त प्यारी है जो अनाथालय में रहती है और फूल बेचकर अपनी रोजी-रोटी चलाती है. प्यारी शिवानी के भी करीब है. अचानक एक दिन प्यारी गायब हो जाती है. शिवानी मामले की तहकीकात करती है. उसे पता चलता है कि देह व्यापार माफिया के लोगों ने प्यारी को किडनैप किया है.
वह इस माफिया और उसके सरगना को खत्म करने का बीड़ा उठाती है. यह इतना आसान नहीं होता है क्योंकि इसका सरगना खूंखार ही नहीं शातिर भी है इसके बाद शुरू होता है चोर पुलिस का दिलचस्प खेल. आगे की कहानी को जानने के लिए आपको सिनेमाघर का रुख करना होगा. फिल्म कमर्शियल अंदाज में प्रस्तुत जरूर की गयी है लेकिन इसका ट्रीटमेंट रियालिस्टिक है. कहानी में थोड़ी कमजोरी है लेकिन चुस्त है. प्रदीप सरकार के कुशल निर्देशन की वजह से कहीं भी बोरियत महसूस नहीं होती है.
‘इसके बाद क्या होगा’ यह सवाल आखिर तक बना रहता है. फिल्म की कास्टिंग के लिए निर्देशक प्रदीप सरकार तारीफ के पात्र हैं. फिल्म की यूएसपी इसके कलाकारों को जबरदस्त प्रदर्शन है. रानी मुखर्जी एक रफ एंड टफ क्राइम ब्रांच की पुलिसकर्मी के किरदार में पूरे आत्मविश्वास के साथ जिया है. फिर चाहे एक्शन सीन हो या संवाद अदायगी का ढंग. विलेन के तौर पर ताहिर ने रानी को जबरदस्त टक्कर दी है. लुक में एक आम लड़के की तरह है लेकिन खौफ कायम करने में कामयाब रहे हैं. वकील जी के किरदार में अनिल जॉर्ज भी जंचे हैं. अन्य किरदारों का भी काम अच्छा है.
गीत-संगीत की बात करें तो फिल्म में एक ही गीत है. मुनीर कौसर का लिखा गया गीत ‘मैं तुमको नहीं छोड़ूंगी’ फिल्म की कहानी और उसमें छिपे संदेश को बखूबी बयां करता है. फिल्म में अनावश्यक रूप से गाने या आयटम नंबर ठूंसे नहीं गये हैं. फिल्म के संवाद कहानी को और ज्यादा प्रभावशाली बनाते हैं. फिल्म के विषय के साथ आखिर तक न्याय किया गया है. आखिर में यह फिल्म जरूर देखी जानी चाहिए. महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधिक माहौल में यह फिल्म बहुत कुछ कहती है. यह फिल्म अपने नाम को सार्थक करती है.