50 रुपये और शॉल नहीं टैगोर से आशीर्वाद मांगा था मशहूर कथक नृत्‍यांगना सितारा देवी ने

देश की जानीमानी कथक नृत्‍यांगना सितारा देवी को मुबंई में देर रात निधन हो गया. वे 94 वर्ष की थी. पेट में दर्द की शिकायत के कारण उन्‍हें मुबंई के जसलोक अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था. वे दो दिनों से वेंटीलेटर में थीं. उनके बेटे विदेश में रहते हैं. बेटे के लौटने के बाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 25, 2014 1:32 PM

देश की जानीमानी कथक नृत्‍यांगना सितारा देवी को मुबंई में देर रात निधन हो गया. वे 94 वर्ष की थी. पेट में दर्द की शिकायत के कारण उन्‍हें मुबंई के जसलोक अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था. वे दो दिनों से वेंटीलेटर में थीं. उनके बेटे विदेश में रहते हैं. बेटे के लौटने के बाद मुबंई में ही गुरुवार को उनका अंतिम संस्‍कार किया जायेगा.

सितारा देवी का असली नाम धनलक्ष्‍मी था. उनका जन्‍म कोलकाता में नर्तक सुखदेव महारा के यहां हुआ था. वे 11 साल की उम्र में परिवार सहित मुबंई में रहने आ गई थीं. यहां उन्‍होंने तीन घंटे के एकल गायन से रवींद्रनाथ टैगोर को प्रभावित किया था. टैगोर ने उन्हें 50 रुपये और एक शॉल दी. लेकिन सितारा ने उसे लेने से मना कर दिया और उनसे आशीर्वाद मांगा. अगले छह दशकों में वह कथक की बडी हस्ती बनीं.

वह अक्सर कहा करती थीं,’मैं बस रियाज से कृष्ण-लीला की एक कथाकार हूं’ कथक का अर्थ ही होता है ‘कथा’ जो कृष्ण मंदिरों में विकसित हुआ और मुस्लिम राजाओं के दरबार में अपनी बुलंदियों पर पहुंचा. सितारा देवी की जडें इन्हीं ‘कथाकारों’ या आरंभिक कथक नर्तकों तक जाती है. वह एक ब्राह्म्ण कथाकार सुखदेव महाराज के परिवार में धन्नोलक्ष्मी के रुप में पैदा हुई थीं और उन्होंने कम उम्र में शादी की जगह नृत्य को ही अपने जीवन के लक्ष्य के रुप में चुना.

उनके पिता एक वैष्णव ब्राह्म्ण विद्वान और कथक कलाकार थे. उन्होंने सितारा को एक स्थानीय विद्यालय में भेजा. जहां उन्होंने ‘सावित्री सत्यवान’ की प्रस्तुति देकर अपने अध्यापकों और स्थानीय मीडिया का ध्यान खींचा.जब उनके पिता ने देखा तो उन्होंने उनका नाम सितारा रखा. उन्होंने अपनी बडी बहन की देखरेख में कथक का प्रशिक्षण पाया.

वे बचपन में ही कई फिल्‍मों में नृत्‍य भी किया था. वर्ष 1973 में सितारा देवी को पद्म श्री सम्‍मान मिला था लेकिन उन्‍होंने उसे ठुकरा दिया था. सितारा देवी ने कहा था कि क्‍या सरकार मेरे योगदान को नहीं जानती है. ये मेरे लिये सम्‍मान नहीं बल्कि अपमान के समान है. मैं भारत रत्‍न से कम नहीं लूंगी. सितारा देवी संगीत नाटक अकादमी, पद्म श्री और कालिदास जैसे प्रतिष्ठित सम्‍मान पा चुकीं हैं.

उन्होंने मुगल ए आजम के निर्देशक के. आसिफ से विवाह किया. बाद में उनका विवाह प्रताप बारोट से हुआ. वर्ष 2011 में उन्हें लीजेंड्स ऑफ इंडिया लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया.अपने शोकसंदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथक के क्षेत्र में दिए गए उनके योगदान को याद किया.

सितारा देवी ने कई फिल्मों में भी काम किया है. उनकी फिल्मों में वर्ष 1934 में ‘शहर का जादू’, 1935 में ‘जजमेंट आफ अल्लाह’, वर्ष 1938 में तीन फिल्‍में नगीना, बागबान और वतन,1939 में ‘मेरी आंखें’, 1941 में होली, पागल, स्वामी, 1942 में ‘रोटी’ , 1944 में ‘चांद’ , 1949 में ‘लेख’ , 1950 में ‘हलचल’ और वर्ष 1957 में ‘मदर इंडिया’ प्रमुख हैं.

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