वह डायलॉग, जो कभी नहीं भूलेंगे

शराबी : आज की दुनिया में अगर जिंदा रहना है तो दुनिया का बटन अपने हाथ में रखना पड़ता है जंजीर : इस इलाके में नए आए हो साहब…वरना शेरखान को कौन नहीं जानता नास्तिक : मैं तेरी मौत इतनी खराब कर दूंगा ….कि तुझे देखकर मौत का फरिश्ता भी कांप उठे प्रमुख संवाद मैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 13, 2013 9:11 AM

शराबी : आज की दुनिया में अगर जिंदा रहना है तो दुनिया का बटन अपने हाथ में रखना पड़ता है

जंजीर : इस इलाके में नए आए हो साहब…वरना शेरखान को कौन नहीं जानता

नास्तिक : मैं तेरी मौत इतनी खराब कर दूंगा ….कि तुझे देखकर मौत का फरिश्ता भी कांप उठे

प्रमुख संवाद

मैं भी पुराना चिड़ीमार हूं, पर कतरना अच्छी तरह से जानता हूं. (शीश महल)

टोकियो में रहते हो पर टोकने की आदत नहीं गई. (अराउंड द वल्र्ड)

राशन पर भाषण बहुत है. भाषण पर राशन नहीं. सिर्फ ये जब भी बोलता हूं, ज्यादा ही बोलता हूं… समझे.(उपकार)

सटाले, सटाले …मेरा भी समय आएगा

(कश्मीर की कली)

जुल्म करने वाला भी पापी और जुल्म सहने वाला भी पापी (गंगा की सौगंध)

अगर तुम मेरे टुकड़े-टुकड़े भी कर दो… फिर भी मेरा

हर टुकड़ा हक की आवाज देगा (गंगा की सौगंध)

पुरस्कार

वर्ष 2013 में दादासाहब फाल्के, वर्ष 2001 में पद्मभूषण, तीन बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला.

उपकार (1967) आंसू बन गए फूल (1969)

बेईमान (1972)

फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार (1997)

कुछ खास पहलू

1969 से 1982 तक कॅरियर के शीर्ष काल में प्राण को फिल्म के नायक से भी ज्यादा मेहनताना दिया जाता था. उस दौर में सिर्फ राजेश खन्ना ही ऎसे हीरो थे जिन्हें प्राण से ज्यादा भुगतान मिलता था. इसी वजह से राजेश खन्ना की फिल्मों में प्राण कम नजर आए. दोनों की फीस ज्यादा होने से निर्माता उन्हें साथ लेने में हिचकते थे.

1972 में "बेईमान" फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया. कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार फिल्म "पाकीजा" के लिए गुलाम मोहम्मद को मिलना चाहिए था न कि फिल्म "बेईमान" के लिए शंकर-जयकिशन को.

Next Article

Exit mobile version