बचपन में ही पिता ने समझा दिया था सांवला होना ठीक :शबाना आजमी
जयपुर: बॉलीवुड की जानीमानी अभिनेत्री शबाना आजमी का कहना है कि त्वचा के सांवले रंग के प्रति अपने मन से किसी भी तरह के पूर्वाग्रह को हटाने का श्रेय वह अपने पिता और जाने-माने शायर कैफी आजमी को देती हैं. उनके पिता ने उनसे कहा था कि,’ सांवला होना ठीक है और काला होना सचमुच […]
जयपुर: बॉलीवुड की जानीमानी अभिनेत्री शबाना आजमी का कहना है कि त्वचा के सांवले रंग के प्रति अपने मन से किसी भी तरह के पूर्वाग्रह को हटाने का श्रेय वह अपने पिता और जाने-माने शायर कैफी आजमी को देती हैं. उनके पिता ने उनसे कहा था कि,’ सांवला होना ठीक है और काला होना सचमुच में सुंदर है.’
शबाना ने जयपुर साहित्य उत्सव में कहा कि,’छोटी लडकी होने के तौर पर मुझे भी सुनहरे बालों और नीली टिमटिमाती आंखों वाली सफेद गुडि़या से प्रेम था लेकिन मेरे पिता ने मुझे कभी भी वह नहीं दिलाया. जब मैं नौ साल की थी तो उन्होंने काली त्वचा और आंखों वाली गुडि़या मुझे दिलाई और कहा कि सांवला होना अच्छी बात है और काला होना वाकई सुंदर है.’
अभिनेत्री ने कहा कि ‘खराब तोहफा’ देने को लेकर अपने पिता से शुरुआती नाखुशी के बावजूद उन्होंने शीघ्र समझ लिया कि उनके अब्बा की बातों के गहरे मायने हैं. उन्होंने कहा,’जिस तरह के मूल्यों और विश्वास के साथ मैं बडी हुई बाद में उसकी झलक जो फिल्में मैंने की उसमें भी मिलती है.’
साहित्य उत्सव में ‘फैज एंड कैफ—ए पोएटिक लीगैसी’ शीर्षक वाले सत्र में शबाना पाकिस्तानी कलाकार और परमाणु हथियारों के खिलाफ जागरुकता पैदा करने वाली कार्यकर्ता सलीमा हाशमी और गीतकार अली हुसैन मीर से बातचीत कर रही थीं.अपने पिता की काव्य विरासत की प्रशंसा करते हुए 64 वर्षीया अभिनेत्री शबाना आजमी ने कहा कि,’ मेरे पिता इतने महान शायर थे कि हर कोई यह समझता था कि जो नज्म वह पढ रहे हैं वह उसी व्यक्ति के लिए है. खासतौर पर महिलाएं ऐसा महसूस करती थीं.’
उन्होंने एक वाकया सुनाते हुए कहा, ‘उनकी आंखों में इस कदर विश्वास था. बच्ची के तौर पर मैं अपनी अम्मी और अब्बा के साथ पार्टी में गई थी. वहां कैफी साहब ने एक नज्म पढी और एक महिला ने कहा,’ आप कमाल का लिखते हैं कैफी साहब.’ इस पर मेरे पिता ने जवाब दिया,’ आपके लिए ही लिखा है मोहतरमा और मैं आक्रोशित हो गई और मैंने बताया कि मेरे पिता ने ये पंक्तियां मेरी मां के लिए लिखी थीं.’
शबाना ने आगे कहा,’ पार्टी में मेरे बर्ताव से मेरी मां ने शर्मिंदगी महसूस की लेकिन भीतर से मैं जानती थी कि वह सातवें आसमान पर हैं. मेरे पिता ने हालांकि फिर किसी महिला को अपनी नज्म समर्पित करने का साहस कभी नहीं किया.’ इस बीच, सलीमा हाशमी ने भी अपने बचपन के क्षणों और अपने पिता और प्रसिद्ध शायर फैज अहमद फैज की विरासत को याद किया.