खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार ‘बेबी’ के बाद अब ‘गब्बर’ बन बुरे लोगों को सुधारने का जिम्मा उठाते नजर आनेवाले हैं. इस फिल्म में भी वह अंडरकवर कॉप हैं, लेकिन अक्षय इसे अपनी पिछली फिल्मों से अलग करार देते हैं, क्योंकि यहां पर बुरा ही अच्छा है. उनका मानना है कि बुरे लोगों की बुराई खत्म करने के लिए कभी-कभी बुरा बनना पड़ता है. अक्षय से उनकी इस सोच और फिल्म पर उर्मिला कोरी की बातचीत.
गब्बर क्या है?
– हमारे देश में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि मुझे लगता है कि हमें भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए हीरो की नहीं, बल्कि विलेन की जरूरत है. मैं यहां पर दुबई का उदाहरण देना चाहूंगा. दुबई में क्राइम का आंकड़ा एक प्रतिशत से भी कम है, क्योंकि वहां पर दोषियों को बहुत ही कड़ी सजा दी जाती है, जिस वजह से क्राइम करने से पहले लोग दो बार सोचते हैं. हमारे यहां लोगों को कानून का डर ही नहीं है, जिससे लोग धड़ल्ले से भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी कर रहे हैं. यह सब खत्म करना है, इसके लिए बुरे लोगों के बीच डर होना जरूरी है. इसी डर का नाम गब्बर है.
1. आप इस तरह की फिल्में पहले भी कर चुके हैं, जहां पर आप बुरे लोगों से लड़ते हैं?
– जहां तक मुझे लगता है, यह मेरी दूसरी फिल्मों से अलग है, क्योंकि यहां पर बुरा ही अच्छा है. मुझे यही बात सबसे अच्छी लगी थी. यह एक अंडर कॉप पुलिस ऑफिसर है, जिसका बुरे लोगों से डील करने का अपना तरीका है. वह कानून के तरीके से नहीं, बल्कि अपने तरीके से सजा देता है.
2. फिल्म का शीर्षक ‘मैं हूं गब्बर’ से ‘गब्बर इज बैक’ करने की वजह क्या थी?
– फिल्म का शीर्षक बदलने का आइडिया निर्देशक कृष का ही था. उन्हें लगता है कि ‘मैं हूं गब्बर’ से ‘गब्बर इज बैक’ ज्यादा अच्छा साऊंड कर रहा है. वैसे मुझे भी यही लगता है कि यह शीर्षक ज्यादा अपीलिंग है.
3. क्या आपको लगता है कि हमारे देश का कानून कमजोर है? क्या बुराई का खात्मा बुराई से ही होगा?
– फिल्म की शुरुआत में ही यह बात कही जायेगी कि हमारे देश में कानूनी प्रक्रिया कमजोर नहीं है, बल्कि उसे और बेहतर करने की जरूरत है. यह साउथ की एक फिल्म का हिंदी रीमेक है. यह फिल्म मुर्गोदोष ने 12 साल पहले बनायी थी, लेकिन इसमें मौजूदा दौर को ध्यान में रखते हुए बहुत सारे बदलाव किये गये हैं. बुराई को बुराई से मारा जाना चाहिए, यह बात इस फिल्म में है जरूर, लेकिन वह इंसान अच्छा है, बस बुरों के साथ बुरा करता है.
4. कृष एक नवोदित निर्देशक हैं. इस फिल्म से जुड़ने की वजह कहीं संजय लीला भंसाली तो नहीं?
– कृष ने दो फिल्में बनायी है. दोनों ही फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. वह बहुत ही काबिल निर्देशक हैं. उन्हें पता है कि उनको क्या करना है. संजय लीला भंसाली की जहां तक बात है, तो इस फिल्म के शुरुआत में और आखिरी दिन जब पैकअप था, तभी उनसे मेरी मुलाकात हुई थी. मुझे नये लोगों के साथ काम करने में बहुत मजा आता है. जिन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने की भूख होती है, मुझे वे लोग अच्छे लगते हैं. कुछ अलग करने का अपना मजा होता है.
5. आप हर किस्म की फिल्म कर चुके हैं. अब आप खुद को किस किरदार में या किस जॉनर की फिल्म में देखना पसंद करेंगे?
– मैं एक माइथोलॉजिकल फिल्म करना चाहता हूं. मुझे लगता है कि हमारे पास माइथोलॉजिकल कंटेट की भरमार है. मैंने कोई पौराणिक किताब नहीं पढ़ी है, लेकिन बचपन में स्कूल की किताबों में ऐसे किरदार पढ़े थे. मुझे कृष्णा और शिवा का किरदार करने का मन है. मैं उनका भक्त हूं. वैसे कृष्णा मैं बचपन में क ई बार बन चुका हूं, इसके अलावा फिल्म ‘ओह माय गॉड’ में भी मेरा किरदार कृष्णा का ही था. मैं शिव बनना चाहता हूं. खास कर मौजूदा दौर में. मुझे लगता है कि भगवान शिव एक कूल डूड के किरदार में परफेक्ट नजर आ सकते हैं. बुराई के खिलाफ लड़ने का उनका अपना अंदाज है. वैसे बचपन में अपनी दादी मां की वजह से मैंने ‘हर हर गंगे’, ‘जय संतोषी मां’ जैसी कई फिल्में देखी हैं. मुझे ऐसा कोई किरदार मिले, तो मैं जरूर करूंगा. मैं ऐसी फिल्में निर्मित करने के लिए भी तैयार हूं.
6. आप कर्म, किस्मत और भगवान में से किसको मानते हैं?
– मैं कर्म, किस्मत, भगवान तीनों को मानता हूं. मुझे लगता है कि मेरे कर्म मुझे यहां लेकर आये हैं, लेकिन किस्मत की वजह से मुझे अच्छी फिल्में अच्छे निर्माता, अच्छे निर्देशक और अच्छे रोल मिले, जिस वजह से मैं यहां बना हुआ हूं. वरना मुझसे ज्यादा टैलेंटेड और खूबसूरत लोगों को मौका नहीं मिल पाया है. इसलिए मेरे अनुसार, सफलता के लिए 70 प्रतिशत किस्मत और 30 प्रतिशत आपकी मेहनत की जरूरत है.
7. सेंसर बोर्ड के नये नियमों पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
– हां, बहुत सारे नये नियम आये हैं. फिलहाल मुझे लगता है कि इन चीजों से हमारा सिनेमा अब लंबे समय तक प्रभावित नहीं होगा.