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धर्म संकट पर गहराया संकट

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By Prabhat Khabar Digital Desk | April 10, 2015 5:09 PM
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II उर्मिला कोरी II

फिल्म : धर्म संकट में

निर्माता: वायकॉम 18

निर्देशक: फवाद खान

कलाकार: परेश रावल, अन्नू कपूर, नसीरु द्दीन शाह और अन्य

रेटिंग: दो

अक्षय कुमार की ‘ओह माय गॉड’, आमिर खान की ‘पीके’ के बाद परेश रावल की फिल्म ‘धर्म संकट में’ एक बार फिर से धर्म और धार्मिक गुरुओं को कटघरे में ला खड़ा करती हैं. फिल्म की कहानी हिंदू धर्मपाल (परेश रावल) की है. जिसे मालूम होता है कि वह जन्म से मुसलमान है उसकी परवरिश हिंदू ने की है.

इसके बाद दोनों धर्मों और उनसे जुड़े नियमों के द्वंद के बीच वह खुद को फंसा पाता है. दोनों धर्मों के बीच वह अपनों और अपनी खुशियों की खोता हुआ मालूम पड़ता है. क्या वह धर्म के बजाए अपनी खुशियों को चुनेगा. फिल्म की कहानी यही है. फिल्म का ट्रीटमेंट जरुर अलग है लेकिन मूल कहानी फिर से उसी बात के ईद गिर्द घूमती है.

जिसे पहले ‘ओएमजी’ के कांजीलाल मेहता और ‘पीके’ में दूसरे गोले से आए एलियन समझा चुके हैं कि धर्म नहीं इंसानियत सबसे जरुरी चीज है और हर धर्मग्रंथ गीता, बाइबल और कुरान इसी इंसानियत की बात करता है. धर्म तोड़ने का नहीं जोड़ने का नाम है. माध्यम भले ही अलग हो लेकिन ईश्वर एक है. यह फिल्म भी इसी बात को कहती है. हर फिल्म इस बात को भले ही दोहराती जा रही हो लेकिन राजनीति और चुनावी समीकरण एक अलग ही हकीकत से रुबरु करवाते हैं. खैर फिल्म पर आते हैं.

इस फिल्म में भी धर्म और धार्मिक गुरुओं पर व्यंगात्मक अंदाज में ही सवाल उठाए गए हैं लेकिन फिल्म इसमे चूकती नजर आती है. फिल्म के दृश्य न तो गुदगुदाते हैं न ही सोचने पर मजबूर करते हैं. शायद इसलिए कि पहले भी यह सब हम देख चुके हैं. फिल्म का फर्स्ट हाफ ठीक ठाक था लेकिन सेंकेड हाफ को जरुरत से ज्यादा खींचा गया है.

क्लाइमैक्स भी आपको फिल्म के बीच में ही मालूम हो जाता है कि क्लाइमेक्स में क्या होगा. पीके में एक चैट शो के दौरान बाबा की पोल खोली गयी थी यहां एक बड़े धार्मिक अनुष्ठान. गीता और कुरान के शब्दों को ठीक उसी तरह से जोड़ा गया है जैसे फिल्म ओएमजी में अदालत में जोड़कर कांजीलाल ने बताया था.

अभिनय की बात करें तो फिल्म में अभिनय की कई बड़े नाम है. परेश रावल धर्मपाल के किरदार में कांजीलाल मेहता ही नजर आते हैं. अन्नू कपूर ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय किया है. वह पूरी तरह से किरदार में रचे बसे नजर आए . नसीरुद्दीन शाह फिल्म की भूमिका छोटी ही है लेकिन वह हमेशा की तरह किरदार में यहां भी जान डालते नजर आते हैं.

फिल्म के अन्य सहायक कलाकारों ने भी अच्छा साथ दिया है लेकिन अच्छा अभिनय भी इस फिल्म की कहानी को इंटरटेनिंग नहीं बना पाया है. फिल्म का संगीत और अन्य पक्ष ठीक ठाक रहे हैं. कुलमिलाकर फिल्म का विषय अच्छा था लेकिन उसका रटा रटाया होना और फिल्म की प्रस्तुतिकरण इसे मनोरंजन की कसौटी पर फेल कर जाते हैं.

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