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”पीकू” ने बच्चन सर के साथ काम करने का मौका दे ही दिया : इरफान खान

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना चुके इरफान जल्द ही फिल्म ‘पीकू’ में अलहदा अंदाज में नजर आनेवाले हैं. अब तक गंभीर मुद्दों और रियलिस्टिक ट्रीटमेंट से बनी फिल्मों का हिस्सा रह चुके इरफान इस फिल्म के जरिये ह्यूमर और रोमांस को अपने किरदार के साथ जीवंत करने जा रहे हैं. वे […]

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना चुके इरफान जल्द ही फिल्म ‘पीकू’ में अलहदा अंदाज में नजर आनेवाले हैं. अब तक गंभीर मुद्दों और रियलिस्टिक ट्रीटमेंट से बनी फिल्मों का हिस्सा रह चुके इरफान इस फिल्म के जरिये ह्यूमर और रोमांस को अपने किरदार के साथ जीवंत करने जा रहे हैं. वे इस फिल्म की शूटिंग के अनुभव को अपने लिए बहुत खास मानते हैं. इस फिल्म और कैरियर पर इरफान खान और उर्मिला कोरी की बातचीत..

– फिल्म में आपका किरदार क्या है. फिल्म को हां कहने की क्या वजह थी?

इस फिल्म मैं राणा चौधरी की भूमिका निभा रहा हूं, जो दिल्ली में एक टैक्सी सर्विस चलाता है. टैक्सी सर्विस की वजह से ही वह पीकू की जिंदगी से जुड़ता है. इसके बाद किस तरह से वह पीकू के साथ-साथ उसके बाबा और उसके पूरे परिवार का हिस्सा बन जाता है, यही आगे की कहानी है. यह बहुत ही इंटरटेनिंग और इंगेजिंग फिल्म है. ह्यूमर के साथ-साथ इसमे रोमांस का भी बहुत खूबसूरत एंगल है. काफी समय से मैं रोमांटिक और कॉमेडी फिल्म करना चाहता था और ‘पीकू’ मुझे यह मौका दे रही थी, इसलिए मैं इस फिल्म से जुड़ा.

– खबर है कि इस फिल्म के लिए आपने एक हॉलीवुड फिल्म का ऑफर ठुकरा दिया?

ठुकराया नहीं, मैंने ‘पीकू’ को अपनी डेट्स दे दी थी, उसके बाद मुझे वह फिल्म ऑफर हुई. एक एक्टर के तौर पर मैं हमेशा कुछ अलग करना चाहता हूं. खुद को चुनौती देने में मुङो मजा आता है. ‘पीकू’ में मुङो काफी अलग करने का मौका मिला है. मैं ‘पीकू’ का हिस्सा बन कर खुश हूं.

– इस फिल्म में आपने अमिताभ बच्चन के साथ काम किया. कैसा अनुभव रहा?

मैं लंबे अरसे से बच्चन सर के साथ काम करना चाहता था. कई प्रोजेक्ट आये, लेकिन कुछ हो नहीं पाया. आखिरकार ‘पीकू’ ने मुझे बच्चन सर के साथ काम करने का मौका दे दिया. अमिताभ बच्चन की बात करूं, तो महानायक की यही निशानी होती है कि वह अपनी महानता को आगे आने नहीं देता. वह बहुत ही खूबसूरती और सादगी से अपना काम कर जाते हैं. निर्देशक के विजन को समझते हैं. अपने किरदार पर बहुत मेहनत भी करते हैं लेकिन प्लेफुल तरीके से. कई बार कलाकार की मेहनत दर्शकों को थका देती है. बच्चन साहब बहुत ही मासूमियत से किरदार को समझ जाते हैं. उनके साथ फिल्म करते हुए बहुत कुछ सीखने को मिलता है. मुझे लगता है कि जो भी एक्टर बनना चाहता है, उसके लिए बच्चन साहब को ऑब्जर्ब करना जरूरी है. वह सिखाने के लिए हमेशा तैयार होते हैं बिना जताए. कई बार होता था कि हम अलग-अलग जगह पर बैठ कर अपनी लाइनें डिस्कस कर रहे होते थे, लेकिन फिर बैठे-बैठे बात होती और वो पास आ जाते, सींस डिस्कस करने लगते थे. एक लाइन में कहूं तो जादुई और प्रेरणादायी अनुभव रहा.

– निर्देशक के तौर पर फिल्मकार सूजीत सरकार के बारे क्या कहना है?

सूजीत का कहानी कहने का अपना ढंग है. वह सिर्फ बातों से किरदार को बयां नहीं करते हैं. कई बार आंखों के इशारों, सांसों और बॉडी लैग्वेज से किरदारों को बयां कर देते हैं. सूजीत अपने एक्टर्स को समझते हैं. यही वजह है कि वह उनके पूरी बॉडी लैग्वेज का इस्तेमाल कर जाते हैं. फिल्म की शूटिंग का एक सीन गुजरात हाइवे पर फिल्माया गया है. उस सीन की शूटिंग के वक्त लंबी जर्नी की वजह से हम सब थक गये थे, लेकिन हमारे पास रेस्ट के लिए बिल्कुल भी समय नहीं था. हमें सीन शूट करना था. मैंने थोड़ा चिड़चिड़े अंदाज से उन्हें लुक दिया, सूजीत ने आंखों ही आंखो में अपनी मजबूरी समझा दी.

– बंगाली किरदार को समझने के लिए क्या कुछ होमवर्क करना पड़ा?

मेरा सरनेम फिल्म में चौधरी जरूर है लेकिन मैं बंगाली नहीं हूं. यह फिल्म बंगाली और उत्तर भारतीय का मिला जुला रूप है.

– कोलकाता में शूटिंग के दौरान शहर और लोगों के बारे में आपको क्या खास बात नजर आयी?

एक्सीलेंट और आउडस्टेडिंग शहर है. मैं कई बार गया हूं वहां. कुछ साल रहा भी हूं लेकिन इस फिल्म की दौरान मैंने एक अलग ही कोलकाता देखा. वहां के लोगों में अब भी वही भोलापन है, जो गांव के लोगों में होता है.

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