रवीश कुमार की चिट्ठी सलमान के नाम

सलमान भाई, 1989 की कोई दोपहर होगी, जब पटना में ‘मैंने प्यार किया’ देख कर निकला था. एक साल पहले आमिर खान की फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ आ चुकी थी. वह फिल्म भी मैंने ऐसे ही अचानक देखने का फैसला किया था. दो साल में दो हीरो मिले थे मुङो. आमिर खान और आप. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 7, 2015 6:28 AM

सलमान भाई,

1989 की कोई दोपहर होगी, जब पटना में ‘मैंने प्यार किया’ देख कर निकला था. एक साल पहले आमिर खान की फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ आ चुकी थी. वह फिल्म भी मैंने ऐसे ही अचानक देखने का फैसला किया था. दो साल में दो हीरो मिले थे मुङो. आमिर खान और आप. मेरे जीवन की यात्र में आपकी फिल्में भी शामिल होती चली गयीं. 1991 में ‘साजन’ आयी, तो मैं दिल्ली आ चुका था. आप तब तक पर्दे पर असहज ही दिखते थे. बहुत संकोच के साथ कुछ कहते थे और जब नहीं कह पाते थे, तो आपका शरीर बोलने लगता था.

चेहरे पर एक अजीब-सी घनी तीव्रता बन जाती थी, जहां न कह पाने की तड़प सिनेमा हॉल के अंधेरे में बैठे दर्शक को साथ ले लेती थी. आपके देखने में ईमानदारी थी और बोलने में एकांत और ठहराव. वर्ष 1994 में आयी ‘हम आपके हैं कौन’ भी पसंद आयी थी. ‘हम आपके हैं कौन’ भी ‘मैंने प्यार किया’ जैसी ही थी. तब तक हम हिंदी सिनेमा को ‘बागबान’ जैसी सतही फिल्मों की तरह महान समझ कर ही देखा करते थे. बल्कि,पहली बार में लगा कि हॉलीवुड में भी ‘बागबान’ जैसी फिल्म नहीं बनती होगी. बहुत साल बाद फेसबुक पर किसी ने जब उस फिल्म की हजामत बनायी, तब समझा कि जो देखा था, वह दरअसल देखना था ही नहीं. फिर आप मेरे हीरो बनने लगे थे. गोविंदा के बाद किसी को जनता का हीरो बनते देखा, तो वह आप थे.

आपकी कई फिल्में मैंने देखीं, लेकिन बहुत सारी देखी हैं. मुङो पर्दे का सलमान अच्छा लगता है. थोड़ा ज्यादा बदमाश है, मगर वह अपनी धुन का हीरो है.

‘करण अर्जुन’ हो या ‘अंदाज अपना-अपना’. कभी ‘बागी’ तो कभी ‘जोकर’ लगता है. कभी ‘अनाड़ी’ तो कभी ‘छलिया’ लगता है. ‘हम दिल दे चुके सनम’ में जब ऐश्वर्या ने आपको नींबू से मारा था, तब लगा कि नौटंकीबाज ऐसे कर रहा है, जैसे किसी ने पत्थर मार दिया हो. आपकी फिल्म कभी सिनेमा हॉल से बाहर तो नहीं जा सकी, लेकिन लौटते वक्त आप मेरे साथ जरूर आये. लेकिन, धीरे-धीरे मैं आपकी फिल्में इसलिए देखने लगा कि क्या खूबी है कि 100 करोड़ का कारोबार करती हैं. जिसकी कामयाबी से लड़ने के लिए सब एक से एक औसत फिल्में करने लगे हैं. ‘वांटेड’ की शैली में आमिर ने ‘गजनी’ की, तो देखा नहीं गया. शाहरु ख खान ने ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ की, तो लगा कि सब सलमान होना चाहते हैं. बॉक्स ऑफिस का हीरो सलमान खान. ‘दबंग’ तक आते-आते आप इतने लोकप्रिय हो चुके थे कि एक सिनेमा घर के मालिक ने बताया कि सलमान भाई की फिल्म आती है, तो लोग हफ्ते भर से ही पूछताछ चालू कर देते हैं. पक्का फ्रंट स्टॉल का हीरो सलमान खान. दिमाग को दिल के रास्ते बहलानेवाला हीरो.

सलमान भाई, आज आपको सजा हुई है. हम सब अपने अपने छोटे-बड़े गुनाहों को भुगतते रहते हैं. कभी अंदर से, तो कभी बाहर से. मैं चाहता हूं कि मेरा सलमान सच्चे हीरो की तरह प्रायश्चित करे. उस परिवार और व्यक्ति की सोचे, जो आपकी महंगी कार के नीचे आ गये. सजा वह नहीं है, जो अदालत देती है. अदालत तो समाज और राज्य में एक व्यवस्था बनाये रखने के लिए सजा देती है, ताकि सब नियम-कानून का पालन करें. असली सजावह होती है, जिसे इनसान ख़ुद भुगतता है. इसलिए सलमान भाई, आज से जिंदगी के उन पलों का हिसाब कीजियेगा, जो बेहिसाब रह गये हैं. जिनका हिसाब सभी को करना पड़ता है. मुझे पता है कि आप असली जिंदगी में यारों के यार और तलबगारों के मददगार हैं, लेकिन कई बार एक गलती सीने पर ऐसे बैठ जाती है कि सब बेमानी हो जाता है. पर, आप चाहेंगे, तो बेमानी होने से रोक सकते हैं. मुङो दुख हो रहा है कि मेरा हीरो जेल जा रहा है. मुझे उसके लिए भी दुख हो रहा है, जिसके लिए हीरो जेल जा रहा है. मैं बस यही चाहता हूं कि आप मेरे दुख की चिंता न करें. उनकी करें, जो आपकी गाड़ी के नीचे आ गये. सजा काटने का एक बेहतर तरीका और है. उन लोगों से दूरी बना लें, जो इतने दिनों तक आपको बेगुनाह साबित कर देने के भ्रम में डालते रहे.

आपके पास ऊपरी अदालत की दहलीज पर जाने का मौका तो है और जाना भी चाहिए, लेकिन उस दहलीज पर तभी जायें, जब बेगुनाही पर वाकई यकीन हो. दलीलों से गुनाह कम नहीं हो जाता, सलमान भाई. उन दलीलों को सुनिये, जो आपके भीतर इस वक्त मचल रही होंगी. अगर सच्चे मन से लौट कर आयेंगे, तो मैं फिर से उस नये सलमान के लिए टिकट खिड़की पर खड़ा मिलूंगा, जैसे मैं 1989 में मिला था.

आपका एक दर्शक रवीश कुमार (एनडीटीवी से साभार)

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