जब जावेद अख्तर ने किसी छोटे शहर भाग जाने के बारे में सोचा…

नयी दिल्ली : सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए चार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके प्रसिद्ध गीतकार, पटकथाकार और कवि जावेद अख्तर ने एक समय किसी छोटे शहर भाग जाने और वहां किसी छद्म नाम के साथ रहने के बारे में सोचा था क्योंकि उन्हें लगा था कि वह अब और लेखन नहीं कर सकते. तय समयसीमा के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 30, 2015 3:18 PM

नयी दिल्ली : सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए चार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके प्रसिद्ध गीतकार, पटकथाकार और कवि जावेद अख्तर ने एक समय किसी छोटे शहर भाग जाने और वहां किसी छद्म नाम के साथ रहने के बारे में सोचा था क्योंकि उन्हें लगा था कि वह अब और लेखन नहीं कर सकते.

तय समयसीमा के भीतर गीत और पटकथाएं सौंपने के लगातार दबाव और ‘लेखक के तौर पर विचारों के अवरुद्ध’ होने से परेशान अख्तर ने महाराष्ट्र के सांगली जिले भाग जाने के बारे में सोचा. हालांकि वह पहले कभी भी वहां नहीं गये थे.

अख्तर ने कहा, ‘ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ, जब भी मैं कोई पटकथा लिखता, कोई निर्माता आता और मुझे बडी साइनिंग अमाउंट दे जाता. इसके बाद जब मैं लिखने बैठता तो मुझे लगता कि मैं अब आगे एक भी पन्ना नहीं लिख पाउंगा.’ फिल्म लेखक और कवि यहां अपनी किताब ‘इन अदर वर्ड्स’ के विमोचन के लिए आए थे जो उनकी रचनाओं का अली हुसैन मीर द्वारा अंग्रेजी में किया गया अनुवाद है.

उन्होंने कहा, ‘ उस दौरान टेलीविजन नहीं थे, इसलिए कोई भी मेरा चेहरा नहीं पहचानता था और हर कोई मुझे मेरे नाम से जानता था. जब मैं लिखने में सक्षम नहीं होता तो कल्पना करता था कि इससे निकलने का एक ही तरीका है और वह है किसी छोटे शहर भाग जाना औैर वहां किसी दूसरे नाम से रहना एवं कोई दूसरा काम शुरु करना है.’

अख्तर ने कहा, ‘ पता नहीं क्यों मैं हर बार भाग जाने के बारे में सोचता था, मैं सांगली जाने के बारे में सोचता था, वह शहर जहां मैं पहले कभी नहीं गया था. और इसका कारण यह भी हो सकता है कि मैं कभी भी सांगली के रहने वाले किसी व्यक्ति से नहीं मिला था, इसलिए मैंने सोचा कि मैं वहां छिप सकता हूं, वह एक सुरक्षित जगह होगी.’

अख्तर अपने पिता और उर्दू साहित्य के प्रतिष्ठित कवि जां निसार अख्तर से बगावत कर 1960 के दशक की शुरुआत में मुंबई आ गए थे. दर्शकों से बातचीत के दौरान जब उनसे पूछा गया कि लेखक के तौर पर विचारों के अवरुद्ध होने से कैसा निपटा जाए तो उन्होंने कहा कि रचनात्मकता की प्रक्रिया का कोई कडा या तेज नियम नहीं है और हर कोई इस चीज से जूझता है.

अख्तर ने कहा,’ लेकिन अगर आप एक पेशेवर लेखक हैं तो आप केवल प्रेरित होने का इंतजार नहीं कर सकते, आपको बस लिखना होगा. आपको एक तय तारीख को इसे सौंपना होगा. जब आप किसी फिल्म की पटकथा या गीत लिख रहे होते हैं तो आप यह नहीं कह सकते कि मैं प्रेरित नहीं हो पा रहा…यह संभव नहीं है इसलिए बेहतर होगा कि आप प्रेरित हों.’

Next Article

Exit mobile version