उर्मिला कोरी
सदी की सबसे कामयाब फ़िल्म शोले ने आज 40 साल पुरे कर लिये हैं. 1975 को यह आज ही के दिन रिलीज़ हुई थी. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने बीते दिनों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर कहा कि उन्हें कभी भी ऐसा नहीं लगा था कि यह फ़िल्म इतने दशकों बाद भी दर्शकों का मनोरंजन करेगी और आज की युवा पीढ़ी भी इस फ़िल्म को कई बार देख चुकी है. इस प्रेस कांफ्रेस की कुछ खास बातों पर एक नज़र –
1. अमिताभ बच्चन ने कहा कि अमजद खान उन्हें शॉर्टी कहकर बुलाते हैं. यह वह व्यंग में अमिताभ बच्चन के कद को देखकर बोलते थे.
2. शूटिंग के अनुभव के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि उस वक़्त में शूटिंग के दौरान वर्कशॉप का चलन नहीं था और न ही सितारों को बुलाने के लिए वैनिटी वैन में दस्तक देने की ज़रूरत पड़ती थी. अमिताभ कहते हैं कि फ़िल्म के डी ओ पी द्वारिका दिवेचा के पास एक भोंपू हुआ करता था जिसे वह बजाते थे और सबको मालूम पड़ जाता था कि शॉट रेडी हो गया है.
3. फ़िल्म का क्लाइमेक्स बदलने वाला था. शुरुवात में जब दो दिन फ़िल्म को सफलता नहीं मिली तो रमेश सिप्पी ने फ़िल्म के क्लाइमेक्स को बदलने को सोचा उन्हें लगा कि अमिताभ की मौत दर्शकों को पसंद नहीं आ रही है ऐसे में रविवार को फ़िल्म का क्लाइमेक्स दुबारा शूट होने वाला था लेकिन फिर न जाने क्यों रमेश सिप्पी को लगा एक दिन और देखना चाहिए. सोमवार को फिर सबकुछ बदल गया. फ़िल्म को ज़बरदस्त रेस्पॉन्स मिलने लगा.
4. फ़िल्म में गब्बर को भी मरना था. ठाकुर के कील वाली जूतियों से लेकिन सेंसर बोर्ड को इससे ऐतराज़ था कि ठाकुर कानून अपने हाथ में ले. जिसके बाद फ़िल्म में गब्बर को कानून के हाथों सौंपते दिखाया गया. सेंसर की वजह से ही फ़िल्म का कोई भी एक्शन सीन 90 फिट से ऊपर शूट नहीं हुआ था.
5. विधवा विवाह पर उस साल आयी फ़िल्म फूल पत्थर थी जिसे बॉक्स ऑफिस पर काफी फायदा हुआ था जिस वजह से रमेश सिप्पी ने सोचा कि क्यों न अमिताभ के किरदार को विधवा राधा से प्यार करते दिखाया जाए.
6. इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन और जया बच्चन ने ही नहीं बल्कि अमिताभ की बेटी स्वेता ने भी काम किया था. अमिताभ की माने तो जिस सीन में वह तिजोरी की चाभी जया जी को दे रहे हैं उस दौरान उनके गर्भ में श्वेता थी.
7. 70 एमएम वाले प्रिंट्स पर रिलीज़ हुई यह पहली फ़िल्म है लेकिन फ़िल्म का प्रीमियर 70 एमएम पर नहीं हो पाया था क्योंकि फ़िल्म के प्रिंट कस्टम में फंस गये थे वह प्रीमियर के बाद मिले थे लेकिन अमिताभ, रमेश सिप्पी और विनोद खन्ना ने रात के दो बजे जमीनपर लेट कर 70 एमएम रील पर यह फ़िल्म देखी थी. जो सुबह पांच बजे तक चली थी.
8. सुरमा भोपाली के किरदार के लिए जगदीप ने बाकायदा भोपाल के लोगों के साथ समय बिताया था. जावेद अख्तर भोपाल से हैं इसलिए उन्होंने जगदीप की बहुत मदद भी की.
9. यह पहली फ़िल्म थी जिसके गीतों के साथ उसका डायलाग रिलीज़ हुआ था.
10. इस फ़िल्म से अमिताभ को जोड़ने के लिए धर्मेन्द्र के साथ-साथ सलीम जावेद ने भी रमेश सिप्पी से सिफारिश की थी बाकायदा फ़िल्म जंजीर भी दिखायी थी.
11. फ़िल्म का प्रसिद्ध पानी की टंकी पर फिल्माया गया सीन के लिए दो पानी की टंकियां बनायीं गयी थी एक उचाई पर दूसरा उससे काफी नीचे था. नीचे पानी की टंकी क्लोजअप शॉट के लिए लिया गया था.
12. अमिताभ की माने तो फ़िल्म की शूटिंग के दौरान उन्हें कभी नहीं लगा था कि यह फ़िल्म इतनी सफल रहेगी लेकिन अमजद खान भाई हमेशा यह कहते थे कि कमाल की फ़िल्म बन रही है.
13. यह डाकुओं पर बनी चुनिंदा फ़िल्म थी क्योंकि अब तक डाकुओं की फ़िल्म की शूटिंग चम्बल या राजस्थान के रेगिस्तान में हुआ करती थी लेकिन इस फ़िल्म की शूटिंग बंगलोर में हुई थी. रामगढ का सेट तैयार किया गया था. अभिनेता धर्मेन्द्र चबूतरे पर ही सोते थे.
14. अमिताभ की माने तो उनके किरदार के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को लिया जाना था उन्हें ऐसी जानकारी नहीं थी हाँ गब्बर के किरदार के लिए रमेश सिप्पी डैनी को चाहते थे. अमिताभ खुद भी गब्बर का किरदार निभाने की खवाइश रखते थे लेकिन उनकी आवाज़ रमेश सिप्पी को गब्बर के लिए सही नहीं लगी थी.