II अनुप्रिया अनंत II
फिल्म : मांझी द माउंटेन मैन
कलाकार : नवाजुद्दीन सिद्दिकी, राधिका आप्टे, पंकज त्रिपाठी
निर्देशक : केतन मेहता
रेटिंग : 3.5 स्टार
केतन मेहता ने बिहार के गया इलाके के नजदीक गांव गहलौर के दशरथ मांझी की जीवनी से प्रभावित होकर ‘मांझी द माउंटेन मैन’ बनाई है. दशरथ मांझी ने गहलौर इलाके में स्थित पहाड़ को सिर्फ हथौड़े से अकेले तोड़ डाला था. लोगों ने उस दौर में उन्हें कई बातें कही. उन्हें पहाड़ पगला, पगला बाबा व कई नामों से पुकारा जाता था. लोगों को लगता था कि वे पागल हैं. भला इतना ऊंचा पहाड़ भी कोई तोड़ कर रास्ता बना सकता है.
मांझी को पूर्ण रूप से दशरथ मांझी की बायोपिक फिल्म नहीं माना जा सकता है. चूंकि केतन ने कई स्थानों पर अपनी सिनेमेटिक लिबर्टी भी ली है. मांझी ने भी प्रेम किया था. एक ऐसा प्रेम जिसमें उन्होंने अपनी महबूबा अपनी पत्नी के लिए पहाड़ से लड़ना तय कर लिया. ‘मांझी’ फिल्म में हम मांझी के बचपन से लेकर युवा होने तक के सफर को देखते हैं. फ्लैशबैक के रूप में उनके पूरे सफर को निर्देशक हमें दिखाते हैं. प्रेम में कई प्रेमियों ने कई कुर्बानियां दी हैं.
शाहजहां ने प्रेमिका के लिए तो ताजमहल बनवाया और फिर ताजमहल बनाने वालों के हाथ कांट दिये. ताकि दोबारा वह वैसा कोई ताजमहल न बनवा पाये. यहां भी दशरथ ने प्रेम में पड़ कर कांटा, लेकिन किसी के हाथ नहीं बल्कि ऊंचे पहाड़ को काट कर एक रास्ता बनवाया और अपने प्रेम में दिये वचन को पूरा किया. मांझी फिल्म में निर्देशक सिर्फ मांझी की जिंदगी को नहीं दर्शाते बल्कि वे साथ साथ मांझी जो कि मुशहर प्रजाति से संबंध रखते हैं.
उस दौर में बसे उस पूरे इलाके की कहानी कहते हैं. किस तरह जमींदारी प्रथा हावी थी, छुआछुत, जात-पात के आधार पर भेदभाव किस कदर हावी था. सरकारी दांव पेच किस तरह खेले जाते थे. इस पर भी प्रकाश डाला गया है. दीपा साही इंदिरा गांधी के छोटे से किरदार में नजर आती हैं और फिल्म के मुताबिक किस तरह कांग्रेस सरकार से मांझी को मदद भी मुहैया कराई गयी यह भी दर्शाया जाता है.
निर्देशक इस पर भी बातचीत करते हैं. फिल्म में छोटे दृश्य के माध्यम से यह दर्शाने की भी कोशिश की गयी है, कि किसी दौर में मजबूर, लाचार लोग क्यों नक्सल की राह चुनते हैं. केतन की इस फिल्म की खास बात यह भी है कि उन्होंने दशरथ मांझी के किरदार को हिंदी फिल्मों में चल रहे ट्रेंड की तरह लार्जर देन लाइफ दिखाने की कोशिश नहीं की है. ऐसे दृश्यों में मांझी को नहीं बांधा हैं, जो अविश्वसनीय लगे.
मांझी अपनी पत्नी फगुनिया से बेइतहां प्यार करते थे. एक दिन फगुनिया खाना लेकर मांझी के पास पहाड़ के उस पार जाने की कोशिश करती है. और उनका पैर फिसल जाता है और पहाड़ की वजह से वे समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पातीं और फगुनियां की मौत हो जाती है. इस हादसे से मांझी की दिल दहल उठता है और वे निर्णय करते हैं कि वे इस पहाड़ को तोड़ कर रास्ता बना कर रहेंगे.
इसी क्रम में उन्हें एक पत्रकार का साथ मिलता है, जो वाकई में एक सच्चे पत्रकार की तरह मांझी की जो मदद हो सके. वह करते हैं. केतन मेहता ने फगुनिया और मांझी के प्रेम दृश्यों को दिखाने के लिए कई सिनेमेटिक लिबर्टी ली है. नवाजुद्दीन सिद्दिकी बेहतरीन कलाकार हैं. और इस फिल्म से वे अपने अभिनयशैली को एक स्तर और ऊपर लेकर जाते हैं. वे हर दृश्य में चौंकाते हैं. फिल्म में उनका आम बने रहना भी इस फिल्म को खास बनाता है.
एक दृश्य में जहां गांव में अकाल पड़ जाता है, वहां मांझी प्यास बुझाने के लिए कुएं की दीवारों को चाट रहे होते हैं. वे दृश्य मार्मिक हैं. राधिका आप्टे लगातार चौंका रही हैं. वे अपनी क्षमता को समझते हुए फिल्मों का चुनाव कर रही हैं और बेहतरीन चुनाव कर रही हैं. उन्होंने फगुनिया के किरदार को बखूबी जिया है. नवाज का उन्होंने पूरा सहयोग दिया है. यह जोड़ी आगे भी दोहरायी जाये तो अच्छी जोड़ी साबित होगी.
राधिका में इस दौर की स्मिता पाटिल नजर आती हैं. दशरथ जैसी शख्सियत पर बनी यह फिल्म हर उस व्यक्ति को प्रेरित करेगी जो जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं, लेकिन कर पाने की हिम्मत नहीं कर पाते. वैस लोग जिन्हें हर काम पहाड़ कीतरह ऊंचा लगता है. वे इनसे प्रेरणा ले सकते हैं कि एक दौर में कोई व्यक्ति था, जिसने 22 साल तक लगातार पहाड़ तोड़ कर रास्ता बनाने की ठानी और कामयाबी भी हासिल की. यह फिल्म प्रेरणा देती है.