II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म : कट्टी बट्टी
निर्देशक : निखिल अडवानी
निर्माता : यूटीवी मोशन पिक्चर्स
संगीतकार : शंकर एहसान लॉय
कलाकार : इमरान खान, कंगना रनौत, विवान और अन्य
रेटिंग : डेढ़
पिछले हफ्ते रिलीज हुई 80 के दशक की प्रेमकहानी ‘हीरो’ के रीमेक के बाद निर्देशक निखिल आडवाणी इस हफ्ते आज के दौर की प्रेम कहानी को फ़िल्म ‘कट्टी बट्टी’ के लेकर आएं हैं. फ़िल्म ‘कट्टी बट्टी’ माधव (इमरान)और पायल (कंगना)की कनफ्यूज़न प्रेम कहानी है. इस प्रेम कहानी में एक ट्विस्ट भी है. जिस में प्यार के दर्द को दिखाया गया है लेकिन वो किसी सरदर्द से कम नहीं है या फिर यह कहा जा सकता है कि फ़िल्म जब तक फिल्म ट्विस्ट तक पहुँचती है आपका सब्र जवाब दे चुका होता है.
‘कट्टी बट्टी’ की स्क्रिप्ट बिखरी हुई है. कहानी से जुड़ाव हो ही नहीं पता है. फ़िल्म जिस तरह से फ्लैशबैक से आती जाती है और इमरान का किरदार पायल को ढूंढने के लिए कभी 5 लाख के कमोड को ख़राब करता है तो कभी पायल की फ्रेंड के बच्चे को रुलाता है. फ़िल्म कहीं न कहीं ‘थ्री इडियट्स’ की याद दिलाता है. बस फर्क यह है कि वहां दो दोस्त अपने दोस्त का पता निकालने के लिए ऐसा करते हैं जबकि यहाँ एक प्रेमी अपनी प्रेमिका का पता जानना चाहता है.
वैसे फ़िल्म के कई दृश्य सुपरहिट हिंदी फिल्मों से मिलते जुलते नज़र आते हैं. फिल्म का ट्विस्ट 60-70 के दशक की फिल्मों में खूब रिपीट हुआ है. इमरान की फिल्म ‘गोरी तेरे प्यार में’ करीना का किरदार भी इमरान को एक कछुआ गिफ्ट करता है. हां गीत ‘दे किसियां’ ज़रूर कुछ अलग अंदाज़ में शूट हुआ है.ऐसा अब तक रुपहले पर्दे पर नज़र नहीं आया है. अभिनय की बात करे तो पूरी फ़िल्म में इमरान ही छाए हुए हैं. कंगना की भूमिका बहुत कम है. कंगना इन दिनों बॉक्स ऑफिस क्वीन है. ऐसे में निखिल अडवानी पुरी स्क्रिप्ट इमरान के इर्द गिर्द बुनने की बात अटपटी लगती है.
इमरान ने अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले अच्छा अभिनय किया है लेकिन बतौर अभिनेता इमरान खान की अपनी हदें हैं. ये बात निर्देशक निखिल को समझनी चाहिए. कंगना हमेशा की तरह बेहतरीन रही हैं. फ़िल्म के आखिर दृश्य में उन्होंने अपने लुक के साथ जिस तरह से न्याय किया है. वह अभिनय के प्रति उनके जूनून की ही झलक हैं. अन्य किरदार फिल्म में अपने अपने किरदार में फिट बैठे हैं.
फिल्म का संगीत ज़रूर अच्छा है. फिल्म के सवांद बहुत साधारण हैं. रोमांटिक कॉमेडी वाली इस फिल्म में कुछ इस तरह के डायलाग हैं. टूटे दिल की कहानियां खूब चलती है. डीडीएलजे एक बार बनी लेकिन देवदास कई बार. कॉमेडी के नाम पर कछुवे का नाम मिल्खा है तो बियर और फिनायल की बोतल एक सी होती है. कुलमिलाकर ‘कट्टी बट्टी’ पूरी तरह से निराश करती है.