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फिल्‍म रिव्‍यू ‘तलवार” : ”कड़वी सच्‍चाई” की दमदार प्रस्तुति

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म : तलवार निर्देशक : मेघना गुलज़ार निर्माता : जंगली पिक्चर्स कलाकार : इरफ़ान खान नीरज काबी कोंकोणा सेनशर्मा और अन्य रेटिंग : तीन 2008 में नोएडा में हुए डबल मर्डर केस के जांच पर अब तक मीडिया, फ़िल्म और किताबों में काफी कुछ लिखा और कहा जा चुका है लेकिन […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म : तलवार

निर्देशक : मेघना गुलज़ार

निर्माता : जंगली पिक्चर्स

कलाकार : इरफ़ान खान नीरज काबी कोंकोणा सेनशर्मा और अन्य

रेटिंग : तीन

2008 में नोएडा में हुए डबल मर्डर केस के जांच पर अब तक मीडिया, फ़िल्म और किताबों में काफी कुछ लिखा और कहा जा चुका है लेकिन मेघना गुलज़ार की फ़िल्म तलवार अलग है. इस मर्डर के जांच प्रक्रिया की तीन अलग अलग पहलुओं को सामने लाते हुए कई ऐसे अनसुलझे सवालों के जवाब देती है. जो सिर्फ मीडिया ट्रायल के ज़रिये देखने वाले दर्शकों को चौंकाती है.

यह फ़िल्म सोचने को मजबूर करती है कि क्या हमारा कानून सही और गलत में फर्क कर पाने में इतना कमज़ोर है. फ़िल्म के सवांद में यह बात कही भी गयी है कि न्याय की देवी के एक हाथ में तलवार है. वह तलवार हमारी पुलिस है लेकिन उस में जंग लग चुका है. फ़िल्म का शीर्षक इसी तलवार पर है. फ़िल्म की कहानी विशाल भरद्वाज ने लिखी है.

फ़िल्म की कहानी में पात्रों के नाम बदल दिए गए. फ़िल्म की कहानी माता पिता द्वारा अपनी बेटी श्रुति और नौकर खेमपाल की हत्या का केस सीबीआई को सौपें जाने से शुरू होती है. यह केस अश्विनी कुमार को मिला है लेकिन जांच के दौरान वह पाता है कि सवेंदनहीन पुलिस अपनी कुर्सी को बचाने के दबाव में बेगुनाहों को गुनहगार बना चुकी है. वह हत्या से जुड़े सुराखों को तवजो न देकर अपने पूर्वाग्रहों से ग्रसित है. फ़िल्म की प्रस्तुति में संवेदनशीलता बरकरार रखी गयी है.

दर्द को कहानी कहते हुए हमेशा ध्यान में रखा गया है. फ़िल्म तीन अलग अलग पहलुओं से कहानी को सामने लाती है लेकिन फ़िल्म देखते हुए यह बात ज़रूर महसूस होती है कि यह फ़िल्म तलवार दंपति को बेगुनाह दिखाने में ज़्यादा फोकस करती है. अन्य जांच के पहलु सतही नज़र आते है. फ़िल्म के फर्स्ट हाफ से बेहतर सेकंड हाफ है।फ़िल्म के सवांद भी रोचक हैं. जब दोनों सीबीआई पक्ष अपना पहलु केस पर रखते हैं।वह सीन खास है.

फ़िल्म सीरियस है लेकिन इसके संवाद जांच प्रक्रिया में जुड़े पुलिस कर्मचारी और आला अधिकारियों की बातचीत और हावभाव गुदगुदाते है. फ़िल्म को अति गंभीर होने से बचा जाते हैं.अभिनय इस फ़िल्म की यू एस पी है. इरफ़ान, कोंकणा, नीरज सभी अपनी भूमिका में छाप छोड़ते हैं. वह इतने बेहतरीन कलाकार क्यों कहे जाते हैं अपने उम्दा अभिनय से इस फ़िल्म में फिर साबित कर जाते हैं.

तब्बू छोटी भूमिका में है लेकिन याद रह जाती हैं. अन्य कलाकारों ने भी अच्छी एक्टिंग की है. फ़िल्म की कहानी में म्यूजिक का कोई स्कोप नहीं था. यही वजह है कि बैकग्राउंड म्यूजिक और बिना लिप्सिंग के गीतों से कहानी से जुड़े दर्द को बयां किया गया है. फ़िल्म के दूसरे पहलु भी कहानी के अनुरूप है.

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