पढ़िये कैसी है फिल्म ”मैं और चार्ल्स”

।।उर्मिला कोरी ।। फिल्म – मैं और चार्ल्स निर्देशक -प्रवाल रमन निर्माता राजू चड्ढा, अमित कपूर ,विक्रम कलाकार – रणदीप हूडा , रिचा चड्ढा, आदिल हुसैन, टिस्का चोपड़ा और अन्य रेटिंग -ढाई बायोपिक फिल्मों के इस दौर में निर्देशक प्रवाल रमन की फ़िल्म मैं और चार्ल्स ८० के दशक के बिकनी किलर के नाम से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 30, 2015 7:03 PM
।।उर्मिला कोरी ।।
फिल्म – मैं और चार्ल्स
निर्देशक -प्रवाल रमन
निर्माता राजू चड्ढा, अमित कपूर ,विक्रम
कलाकार – रणदीप हूडा , रिचा चड्ढा, आदिल हुसैन, टिस्का चोपड़ा और अन्य
रेटिंग -ढाई
बायोपिक फिल्मों के इस दौर में निर्देशक प्रवाल रमन की फ़िल्म मैं और चार्ल्स ८० के दशक के बिकनी किलर के नाम से कुख्यात अपराधी चार्ल्स शोभराज की ज़िन्दगी के कुछ दशकों पर फोकस करती है. फ़िल्म फैक्ट्स के साथ साथ फिक्शनल का मिला जुला स्वरुप है. मूलरूप से यह फिल्म ८० के दशक के कमिश्नर आमोद कान्त के साथ अपराधी चार्ल्स के चोर पुलिस के खेल पर आधारित है.फिल्म में यह बात दिखाई गयी है कि चार्ल्स और आमोद के चूहे बिल्ली का खेल चार्ल्स की मर्जी से चलता है.
फिल्म में यह बात आखिर में मालूम होता है लेकिन जिस तरह से इस बात का प्रस्तुतिकरण किया गया है वह कंफ्यूज करता है और फिल्म में थ्रिलर की कमी महसूस होती है . फिल्म पर प्रवाल ने ज़्यादा रिसर्च नहीं की. चार्ल्स की लाइफ से जुडी जो बातें सार्वजनिक है वही फिल्म में भी नज़र आ रही है.जिससे फिल्म अपना मार्क नहीं छोड़ पाती है. चार्ल्स की ज़िन्दगी के बारे में और जानने की उत्सुकता बनी रहती है.
निर्देशक प्रवाल रमन ने कहानी से ज़्यादा फ़िल्म के लुक पर ध्यान दिया है.उन्होंने स्टाइलिश फिल्‍म बनाने की कोशिश की है और उसमें बहुत हद तक वे कामयाब हुए हैं. मगर वही प्रयोग इस फिल्‍म को थोड़ा कमजोर भी कर रहा है. कहानी बहुत ही तेजी से रुख बदलती है. इतनी जल्दी-जल्दी फिल्‍म फ्लैशबैक में जाती है कि कंफ्यूजन होने लगता है. फिल्म में कई बार चार्ल्स शोभराज के अपराधिक व्यक्तित्व को परिवार की देन बताया गया है. जो अपराधी और अपराध को सही साबित करना सा लगता है. ये बात अटपटी सी लगती है.खासकर रिचा चड्ढा के किरदार के संवाद में यह बात कई बार आती है.अभिनय की बात करे तो चार्ल्स शोभराज की जिन्दगी को परदे पर रणदीप हुड्डा ने बेहतरीन तरीक़े से जिया है. उन्‍होंने जिस तरह चार्ल्स के हावभाव को पकड़ा है और चार्ल्स के अंदाज में बातचीत का लहजा दिखाया है वो बेहतरीन है.
उनकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है. उन्होंने चार्ल्स के रहस्य ,सम्मोहन और आकर्षण को बखूबी जिया है. आदिल हुसैन अपने दमदार अभिनय के ज़रिए रणदीप का बखूबी साथ देते हैं. रिचा चड्ढा की भूमिका छोटी है लेकिन उनका अभिनय देखने वाला है अन्य किरदारों का काम भी सराहनीय है फिर चाहे वह टिस्का हो या अन्य. चार्ल्स के इंट्रेस्टिंग किरदार के मुकाबले फिल्म के सवांद फीके से लगते हैं. फिल्म के लोकेशंस ज़रूर रोचक हैं. थाईलैंड ,गोवा और दिल्ली को खूबसूरती से फिल्म की कहानी के साथ जोड़ा गया है ऊपर से ८० के दशक की फील लिए. संगीत की बात करे तो सिर्फ जब छाए मेरा जादू गीत याद रह जाता है,बैकग्राउंड म्यूजिक और अन्य तकनीकी पहलु अच्छे हैं. फिल्म में कई कमियों के बावजूद यह फिल्म कई पहलुओं पर अपील कर जाती है .

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