”बाजीराव मस्तानी” का क्लाइमेक्स जिंदगी का सबसे कठिन दृश्य : रणवीर सिंह

बॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह को ‘बाजीराव मस्तानी’ से एक बड़ी सफलता मिली है. वे बेहद खुश हैं. फिल्म की सफलता का श्रेय वह अपनी मेहनत को देते हैं. फिल्‍म में दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा भी मुख्‍य भूमिका में हैं. फिल्म की सफलता व कई पहलुओं पर उन्होंने अनुप्रिया अनंत और उर्मिला कोरी से बातचीत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 24, 2015 3:33 PM

बॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह को ‘बाजीराव मस्तानी’ से एक बड़ी सफलता मिली है. वे बेहद खुश हैं. फिल्म की सफलता का श्रेय वह अपनी मेहनत को देते हैं. फिल्‍म में दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा भी मुख्‍य भूमिका में हैं. फिल्म की सफलता व कई पहलुओं पर उन्होंने अनुप्रिया अनंत और उर्मिला कोरी से बातचीत की. पेश है बातचीत के मुख्य अंश…

1. रणवीर, सबसे पहले आपको बधाई. अब तक बेस्ट कांप्लीमेंट किससे मिला?

– मुझे अब तक का बेस्ट कांप्लीमेंट अमिताभ बच्चन सर से मिला है. हम सभी यंगस्टर्स में अब इस बात की चर्चा होती है कि किसे मिला है उनसे लिखा हुआ खत. मुझे मेरी जिंदगी में जितने भी अवार्ड मिले हैं. उनमें यह अवार्ड हमेशा खास है. अमिताभ सर ने मुझे लेटर भेजा है और मैं उसे फ्रेम करा कर घर में नहीं बल्कि एक बैंक में रखता हूं. क्योंकि वह मेरे लिए प्रीशियस है. उससे बढ़ कर कुछ नहीं है. वह बहुत बड़ा अवार्ड है . इसलिए वह मेरे लिए बड़ा धन है. मैं उसे संजो कर रखना चाहता हूं.

2. फिल्म का सबसे कठिन दृश्य कौन सा रहा आपके लिए?

– मेरे लिए फिल्म का अंतिम दृश्य बहुत कठिन था. बहुत अधिक कठिन. जिसमें बाजीराव अपने प्राण छोड़ते हैं. मेरी हर फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद मेरी मां बहुत रोती हैं, क्योंकि मेरी लगातार कुछ फिल्मों में मेरा किरदार मर जाता है और मां उसे बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं. लूटेरा में भी उसे गोली लगती है और अंत में जब वह मरता है तो मैं उस दृश्य को खुद ही नहीं भूल पाता हूं. मुझे याद है. जब मैं फिल्म की शूटिंग खत्म भी कर चुका था तब भी लूटेरा का किरदार मेरे से अलग नहीं हो पाया था.

मैं बहुत इंटेंस जाकर कोई भी किरदार निभाता हूं क्योंक़ि मैं रात रात में जग कर बैठ जाता था. मैं खुद से डर जाता था. मुझे उस वक्त भी सपने आते थे कि मुझे अलग अलग तरीके से गोली लग रही है. और मैं तीन बजे पसीने-पसीने हो जाता था. तो मुझ पर मेरे किरदारों का गहरा असर होता है. मैं एक ऐसा एक्टर हूं जो कनविक् शन पैदा करने के लिए एकदम किरदार में घूस जाता हूं. और इस वजह से मुझे बाद में परेशानी होती है. कुछ ऐसा ही बाजीराव के अंतिम दृश्य में भी हुआ था. मैंने पूरी फिल्म निकाल ली थी. लेकिन क्लाइमेक्स के वक्त मैं भंसाली सर को बोलता था कि सर मैं कैसे करूं. मुझे समझ नहीं आ रहा. मेरी रातों की नींद चली गयी थी. लेकिन तब मैं अपने एक पुराने गुरु जी के पास गया.

शंकर वेकेंटेस्वर सर आये थे मुंबई मेरी मदद करने के लिए. शंकर सर का थियेटर गुप्र है. जिसमें कल्की, ऋचा, गुलशन देविया ये लोग जुड़े हैं. उन्होंने मुझे वह सीन करने में मेरी मदद की. मैंने 11 दिन में उस सीन को शूट किया था. और 12वें दिन मैं बिल्कुल ऐसा लगा कि अपना शरीर छोड़ चुका हूं. वह दृश्य मेरे लिए बिल्कुल यादगार दृश्य रहेगा. मैं जिंदगी में कभी नहीं भूल सकता. मैं रात को सो नहीं पाता था. मेरे लिए बहुत डरावना सीक्वेंस था. बतौर एक्टर खुशी है कि मैं कर पाया. लेकिन करने के बाद एक साल तक वह सीक्वेंस मुझे सताता रहा. मुझे पता है कि लोगों के दिल को वह सीन बहुत छू गयी है तो लग रहा है कि मेहनत पूरी हुई.

3. आप मेथेड एक्टिंग को तवज्जो देते हैं?

– मेथेड एक्टिंग बोलना बहुत लूजली फेका हुआ शब्द है.कोई समझता नहीं है.दरअसल, लोग बहुत कंफ्यूजड हो जाते हैं. अगर किसी एक्टर का वह प्रोसेस है तो लोग उसे मेथेड एक्टिंग कहने लगते हैं.जबकि हर एक्टर का अपना अपना प्रोसेस होता है. हां, मेरा भी प्रोसेस है. लेकिन वह बदलते रहता है.दिल धड़कने दो में मेरा अलग प्रोसेस होता है, लूटेरा में अलग प्रोसेस होता है, बाजीराव में अलग था.रामलीला में अलग सा था. बैंड बाजा बारात में अलग प्रोसेस था. फिल्म बदलती है. किरदार बदलते हैं तो प्रोसेस भी बदलता है.निर्देशक से भी प्रोसेस बदलता है. हर बार उसे मेथेड कहा जा सकता है. मैं खुद मेथेड नहीं कह सकता.हां, मगर हर सीन के लिए मैं अपना प्रोसेस खुद इख्तियार करता हूं.हां मैं कोशिश करता हूं कि प्रीपेयर करूं. लेकिन भंसाली सर वह करने नहीं देते हंै. वह लास्ट मोमेंट पर चीजें बदल कर मुश्किालात खड़े कर देते हैं. पांच मिनट में डॉयलॉग बदल देते हैं और लंबे लंबे संवाद बोलेंगे पांच मिनट में पूरे कर लो. वह चाहेंगे ये भी बोल दे. वह भी इमोशन ले आ. मैं और आदित्य रॉय कपूर जोक भी करते हैं कि भंसाली सर को सीन के अंदर के अंदर के अंदर पता नहीं उसके भी अंदर क्या चाहिए होता था.

‘दिल धड़कने दो’ में खास प्रेप नहीं किया था. उसमें मुझे बिल्कुल बोल चाल भाषा का भी प्रयोग करना था और आम लगना था. जोया चाहती भी नहीं हैं कि उनकी फिल्मों के किरदार भारी भरकम लगने के लिए संवाद बोलें. फिल्म में स्पोकन ही लैंग्वेज था. जोया को किसी संवाद को अंडरलाइन करना भी पसंद नहीं है तो वहां उसकी तरह से तैयारी की थी. तो हर फिल्म में प्रोसेस बदलता है. बाजीराव में तो 21 दिनों तक सिर्फ रिहर्सल होते थे. फिर शूटिंग के वक्त पूरा ढाई घंटे का मेकअप करके रेडी होता था. फिर व्हाइस के एक्सरसाइज होते थे. फिर बॉडी लैंग्वेंज़. फिर वह पेशवा बनता होता था. रोज सुबह.

4. अपनी सफलता के लिए किसे श्रेय देना चाहेंगे?

– अपने परिवार को, क्योंकि वह सोलिड सिस्टम थी. मेरी जिंदगी में इस किस्म से सपोर्ट करते हैं. मेरी जिंदगी को आसान बना देते हैं. शॉट आउट कर देते हैं. देख लेते हैं. संभाल लेते हैं. ताकि मैं अपना काम देख सकूं.मैं सुबह उठता हूं. खाना खाता हूं और फिर फ्रेश होकर सेट पर पहुंच जाता हूं. 12 घंटे एक्टिंग करता हूं. और फिर आता हूं. सो जाता हूं. मुझे ये नहीं सोचना पड़ता कि मेरा सारा बाकी का काम कैसे हो रहा है. वह सबकुछ मेरा परिवार करता है.

5. इस दौरान अपने बारे में आपने क्या डिस्कवर किया?

– एक एक्टर के रूप में अब मैं महसूस करता हूं कि मेरे पास बहुत सारे स्ट्रेंथ हैं. मैं अपनी कमजोरियों और ताकत को अब समझने लगा हूं और यह भी समझने लगा हूं कि मेरी कमजोरियां मेरी ताकत से बड़े नहीं हैं. इतना कांफीडेंस मेरे में कभी था ही नहीं पहले कि मैं एक एक्टर के रूप में स्वीकारा जाऊंगा.लेकिन वह कांफीडेंस आया है.मुझे खुशी है कि मैं अपने सीन्स के साथ बहुत स्ट्रगल करता हूं. कई बार मुझे दर्द होता है. लेकिन फिर जब लोग उसे पसंद करते हैं. फिल्म के एक एक सीन को लेकर आपसे बातें करते हैं तो लगता है कि एक्टर के रूप में मैंने खुद को डिस्कवर कर लिया है. पांच मिनट में मराठी लहजे और पूरे एकसेंट के साथ पूरी फिल्म में नजर आने की तैयारी करना मैं बता नहीं सकता कितना कठिन था. लेकिन मैं कर लेता था.

भंसाली सर ओके बोलते थे तो धीरे धीरे मेरा विश्वास मेरे अंदर के एक्टर पर और मजबूत होता गया. इस तरह के किरदारों को निभाने के लिए कई बार मैं उन जगहों पर गया हूं, जहां जाना मुझे पसंद नहीं था. कई डार्क प्लेसेज पर, कई वैसे मोमेंट्स को याद कर अपने इमोशन में लाना यह सब कठिन था मेरे लिए. फिल्म में डिप्रेशन का पार्ट निभाना यह सब कठिन था मेरे लिए क्योंकि मैं दिल से बहुत इमोशनल इंसान हूं.लेकिन मैंने काम को छोड़ा नहीं. बतौर एक्टर मेरे निर्देशक जब भी कहेंगे, जितनी बार कहेंगे और जब तक कहेंगे मैं काम करता रहूंगा. टेक्स देता रहूंगा. हो सकता है कि मैं असफल हो जाऊं.फिर भी मैं अपना बेस्ट देने से पीछे नहीं हटूंगा.

6. भंसाली सर के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा है?

– अब मैं यह कह सकता हूं कि अगर भंसाली सर और किसी अभिनेता को लेकर फिल्म सोचेंगे या कास्ट कर लेंगे तो मैं बहुत हर्ट हो जाऊंगा. मुझे लगता है कि उन्हें जो चाहिए. उनकी जो डिमांड रही है. उसे मैंने पूरा किया है. भंसाली सर स्पानटेनियस काम कराते हैं. वे सेट पर कब मूड बदल लेंगे यह पता नहीं होता और न ही इसका अनुमान लगाया जा सकता है. ऐसे में हमारी कोशिश हमेशा रही है कि मैं बेस्ट दूं.

खुशी तब अधिक होती है जब भंसाली सर कहते हैं कि रणवीर उन अभिनेताओं में से हैं जिससे कुछ भी करा लो. वह कर देगा तो मैं यह सुन कर ही पागल हो जाता हूं. लगता है कि मेरी मेहनत रंग लायी है. भंसाली सर को क्या चाहिए वह समझ कर परफॉर्म कर पाना कठिन होता है. वह चौंकाते हैं अपनी सोच. अपनी कनविक् शन से. लेकिन उनके साथ बहुत कुछ सीखा है. बारीकी डिटेलिंग, थॉट प्रोसेस सबकुछ सीखा है.

7. आप अपने अभिनय में अपने किरदारों के लैंग्वेज पर भी अच्छा कमांड कर लेते हैं?

– हां, एक्चुअली मैं इन चीजों को तवज्जो देता हंू. पहली बार मेरी फिल्म बैंड बाजा बारात में दिल्ली वाली हिंदी बोली थी. दीपिका भी कहती हैं कि मैं जब तेरे मिली एक साल के बाद तक तब तक यही सोचती थी कि तू दिल्ली का लौंडा है. तेरी हिंदी इतनी अच्छी थी. राम लीला में खुद भंसाली सर श्योर नहीं थे. उन्होंने मुझे गुजरात भेजा फिर हम रीडिंग करेंगे. जैसे मैंने रीडिंग शुरू की. चार लाइन पढ़े. उन्होंने कहा यही है. पूरी पिक्चर में तू ऐसे ही बोलेगा. विद्या बालन जी ने मुझसे कहा कि वह राम लीला देखने के बाद मेरे किरदार को भूल नहीं पा रही हैं. उसके बोलने का तरीका नहीं भूल पा रही है. जब आपका इंटेंस इमोशन आ जाता है तो लहजा छूटने लगता है. लेकिन फिल्म में कहीं भी राम का लहजा नहीं छूटता.

उन्होंने कहा कि यह कठिन होता है कि आप पूरी फिल्म में वह कंसीटेंसी बरकरार रख पायें.तो वह मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि थी कि मेरे लहजे पर भी लोगों की तारीफ की. मेरी कोशिश होती है कि मैं बॉडी लैंग्वेज, लुक और लहजे में कंसीटेंसी रख पाऊं.भंसाली जी ने भी कहा था कि बाजीराव के वक्त कि यह तेरा स्ट्रांग पत्ता है कि तू लहजा अच्छा पकड़ता है. तो और कोई एक्टर कर नहीं पाता है. तो तू कर और फूल कमिटमेंट के साथ की. रामलीला में अब की हिंदी थी तो कठिन नहीं था.बाजीराव में उस दौर की हिंदी बोलनी थी तो कठिन था.लहजा पकड़ने में. प्रकाश कपाड़िया लिखते भी थे वैसे डायलॉग तो ऋषिकेश जी रहते थे हर संवाद को वह देखते थे कि मैं किस तरह से बोल रहा हूं.

8. अपने अब तक के सफर को किस तरह देखते हैं?

– मैं बहुत संतुष्ट हूं. खासतौर से इस बात से कि पांच सालों में ही मुझे कितने अच्छे लोगों का साथ मिला है. मेरा जो सपना था कि मैं एक कलाकार बनना चाहता था. भगवान ने लाखों करोड़ों लोगों में से से मुझे चुना. आप सोचें कितने लोग होते हैं जो यहां आते जरूर हैं. लेकिन कामयाब नहीं हो पाते हैं. लेकिन मुझे मौका मिला. और इसलिए मैंने यह तय करके रखा है कि मैं मेहनत करता रहूंगा. हमेशा. कभी स्टारडम को अपनी मेहनत पर हावी नहीं होने दूंगा. चूंकि आदी सर ने मुझसे कहा था कि मैं मेहनत से ही आगे निकल सकता हूं तो मैं. तो मैं उसके साथ कभी भी क्रांप्रमाइज नहीं करूंगा. मेरी अगली फिल्म बेफिक्रे में भी अपने अंदर के कलाकार को नयी उड़ान देने की कोशिश करूंगा.

9. आप मेथेड एक्टिंग को तवज्जो देते हैं?

मेथेड एक्टिंग बोलना बहुत लूजली फेका हुआ शब्द है.कोई समझता नहीं है.दरअसल, लोग बहुत कंफ्यूजड हो जाते हैं. अगर किसी एक्टर का वह प्रोसेस है तो लोग उसे मेथेड एक्टिंग कहने लगते हैं.जबकि हर एक्टर का अपना अपना प्रोसेस होता है. हां, मेरा भी प्रोसेस है. लेकिन वह बदलते रहता है.दिल धड़कने दो में मेरा अलग प्रोसेस होता है, लूटेरा में अलग प्रोसेस होता है, बाजीराव में अलग था.रामलीला में अलग सा था. बैंड बाजा बारात में अलग प्रोसेस था. फिल्म बदलती है. किरदार बदलते हैं तो प्रोसेस भी बदलता है.निर्देशक से भी प्रोसेस बदलता है. हर बार उसे मेथेड कहा जा सकता है. मैं खुद मेथेड नहीं कह सकता.हां, मगर हर सीन के लिए मैं अपना प्रोसेस खुद इख्तियार करता हूं. हां मैं कोशिश करता हूं कि प्रीपेयर करूं. लेकिन भंसाली सर वह करने नहीं देते हैं.

वह लास्ट मोमेंट पर चीजें बदल कर मुश्किालात खड़े कर देते हैं. पांच मिनट में डॉयलॉग बदल देते हैं और लंबे लंबे संवाद बोलेंगे पांच मिनट में पूरे कर लो. वह चाहेंगे ये भी बोल दे. वह भी इमोशन ले आ. मैं और आदित्य रॉय कपूर जोक भी करते हैं कि भंसाली सर को सीन के अंदर के अंदर के अंदर पता नहीं उसके भी अंदर क्या चाहिए होता था.दिल धड़कने दो में खास प्रेप नहीं किया था. उसमें मुझे बिल्कुल बोल चाल भाषा का भी प्रयोग करना था और आम लगना था. जोया चाहती भी नहीं हैं कि उनकी फिल्मों के किरदार भारी भरकम लगने के लिए संवाद बोलें.

फिल्म में स्पोकन ही लैंग्वेज था. जोया को किसी संवाद को अंडरलाइन करना भी पसंद नहीं है तो वहां उसकी तरह से तैयारी की थी. तो हर फिल्म में प्रोसेस बदलता है. बाजीराव में तो 21 दिनों तक सिर्फ रिहर्सल होते थे. फिर शूटिंग के वक्त पूरा ढाई घंटे का मेकअप करके रेडी होता था. फिर व्हाइस के एक्सरसाइज होते थे. फिर बॉडी लैंग्वेंज़. फिर वह पेशवा बनता होता था. रोज सुबह.

10. अपनी सफलता के लिए किसे श्रेय देना चाहेंगे?

अपने परिवार को, क्योंकि वह सोलिड सिस्टम थी. मेरी जिंदगी में इस किस्म से सपोर्ट करते हैं. मेरी जिंदगी को आसान बना देते हैं. शॉट आउट कर देते हैं. देख लेते हैं. संभाल लेते हैं. ताकि मैं अपना काम देख सकूं.मैं सुबह उठता हूं. खाना खाता हूं और फिर फ्रेश होकर सेट पर पहुंच जाता हूं. 12 घंटे एक्टिंग करता हूं. और फिर आता हूं. सो जाता हूं. मुझे ये नहीं सोचना पड़ता कि मेरा सारा बाकी का काम कैसे हो रहा है. वह सबकुछ मेरा परिवार करता है.

11. इस दौरान अपने बारे में आपने क्या डिस्कवर किया?

– एक एक्टर के रूप में अब मैं महसूस करता हूं कि मेरे पास बहुत सारे स्ट्रेंथ हैं.मैं अपनी कमजोरियों और ताकत को अब समझने लगा हूं और यह भी समझने लगा हूं कि मेरी कमजोरियां मेरी ताकत से बड़े नहीं हैं. इतना कांफीडेंस मेरे में कभी था ही नहीं पहले कि मैं एक एक्टर के रूप में स्वीकारा जाऊंगा.लेकिन वह कांफीडेंस आया है. मुझे खुशी है कि मैं अपने सीन्स के साथ बहुत स्ट्रगल करता हूं. कई बार मुझे दर्द होता है. लेकिन फिर जब लोग उसे पसंद करते हैं. फिल्म के एक एक सीन को लेकर आपसे बातें करते हैं तो लगता है कि एक्टर के रूप में मैंने खुद को डिस्कवर कर लिया है. पांच मिनट में मराठी लहजे और पूरे एकसेंट के साथ पूरी फिल्म में नजर आने की तैयारी करना मैं बता नहीं सकता कितना कठिन था. लेकिन मैं कर लेता था.

भंसाली सर ओके बोलते थे तो धीरे धीरे मेरा विश्वास मेरे अंदर के एक्टर पर और मजबूत होता गया. इस तरह के किरदारों को निभाने के लिए कई बार मैं उन जगहों पर गया हूं, जहां जाना मुझे पसंद नहीं था. कई डार्क प्लेसेज पर, कई वैसे मोमेंट्स को याद कर अपने इमोशन में लाना यह सब कठिन था मेरे लिए. फिल्म में डिप्रेशन का पार्ट निभाना यह सब कठिन था मेरे लिए क्योंकि मैं दिल से बहुत इमोशनल इंसान हूं.लेकिन मैंने काम को छोड़ा नहीं. बतौर एक्टर मेरे निर्देशक जब भी कहेंगे, जितनी बार कहेंगे और जब तक कहेंगे मैं काम करता रहूंगा. टेक्स देता रहूंगा. हो सकता है कि मैं असफल हो जाऊं. फिर भी मैं अपना बेस्ट देने से पीछे नहीं हटूंगा.

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