राम माधवानी एक महत्वपूर्ण फिल्म ‘नीरजा’ लेकर आये हैं. ‘नीरजा’ के माध्यम से उन्होंने एक ऐसी कहानी कहने की कोशिश की है, जिसमें एक आम लड़की बहादुरी से लोगों की जान बचाती है. एक ऐसी लड़की को ही सलाम कर रही है उनकी फिल्म नीरजा. फिल्म में नीरजा भनोट का किरदार सोनम कपूर मुख्य भूमिका निभा रही हैं. पेश है अनुप्रिया अनंत बातचीत के मुख्य अंश…
1. ‘नीरजा’ की कहानी पर फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया?
– दरअसल, अतुल कसबेकर ने मुझे कॉल किया था और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं नीरजा भनोट के बारे में जानता हूं.क्या मैंने सुना है. और हां, बिल्कुल मैंने उनके बारे में सुन रखा था. वह मॉडल थीं, एयरहोस्टेस थीं. चूंकि मैं एड वर्ल्ड से हूं तो मैं उनके बारे में जानता था. मैंने उनके कई सारे एड्स देखे थे. मेरे पार्टनर ने तो उनके साथ शूटिंग भी की थी. जिस दिन उन्होंने फ्लाइट ली थी. उसकी शाम में ही उसने वह एड की शूटिंग खत्म की थी और फिर घर आयी. और फिर फ्लाइट लिया था और मेरी पत् नी की दोस्त की दोस्त नीरजा थीं. तो मैंने सोचा कि हां, यह कहानी बहुत मोटिवेशनल होगी.
हमें इस पर कहानी बनानी चाहिए. तो मैंने मैरी कॉम के राइटर सायवन क्वादरस के पास यह कहानी थी. उन्होंने अतुल से पूछा था और इस माध्यम से ये कहानी मुझ तक आयी. मैंने तय किया कि फिल्म बनाऊंगा और इसके बाद हम नीरजा के पेरेंट्स से मिले. उनकी मां से मिला. और जब मैं उनकी मां से मिला तो वह भी मुझे बहुत प्रेरक लगीं. और मुझे लगा कि इस पर फिल्म बननी चाहिए. मेरा मानना है कि कम उम्र में नीरजा ने जो किया. उनकी कहानी सुनी जानी ही चाहिए.
2. आपने फिल्म को वास्तविक रखने की कितनी कोशिश की है?
फिल्म के लिए हमने काफी रिसर्च किया है. मुझे लगता है कि यह दर्शक तय करेंगे कि हमने कितना वास्तविक रखा है. क्योंकि हमने उनके परिवार से बातचीत के आधार पर इसे रियलिस्टिक अप्रोच रखने की कोशिश की है.
3. सोनम को नीरजा के किरदार चुनने की खास वजह क्या रही?
– मैंने महसूस किया कि सोनम और नीरजा के किरदार में काफी समानताएं हैं. दोनों के पास दिल है. मुझे लगता है कि सोनम भी काफी पारिवारिक लड़की हैं. और नीरजा के लिए भी उनका परिवार काफी महत्वपूर्ण था. सोनम से जब मैं फिल्म की बात करता हूं तो मैं कहूंगा कि उन्होंने सिर्फ फिल्म में एक्टिंग नहीं की है. वह पूरी तरह से मेरी फिल्म से जुड़ी थीं. इसके प्रोसेस में. फिल्म का सुर क्या है. उनके सवाल जवाब मुझे अच्छा लगा.इसके अलावा जब मैं उन्हें नीरजा के पेरेंट्स से या उन्हें जानने वाले लोगों से मिलाने ले गया. उन्होंने अपनी तरफ से जिस तरह से किरदार को महसूस किया.यह उनकी खासियत है.
4. आपने जब नीरजा के पेरेंट्स को बताया कि फिल्म बनाना चाहते हैं तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
– दरअसल, वे लोग बहुत खुश हुए थे. उनकी बेटी के पिछली जिंदगी के बारे में काफी बातें होती रही थीं और इन बातों से जाहिर है कि माता पिता को दुख होता ही होगा. हम जब इस फिल्म की योजना लेकर गये थे. उस वक्त तक नीरजा के पिता का देहांत हो चुका था. लेकिन उनकी माताजी ने सोनम को देखते ही कहा कि देखो लाडो आ गयी. उन्होंने हम पर पूरा विश्वास किया और हमारे साथ पूरी तरह से सहयोग किया. और शबाना आजमी जी भी थी हमारे साथ. हमारी कोशिश रही है कि हम उनकी जिंदगी को जान बूझ कर कुरेदे नहीं. तो हमने वही चीजें दिखाई हैं, जो हम सीमा में रह कर दिखा सकते हैं. हमें इसे सेंसलाइज करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी.
4. शबाना जी को इस किरदार के लिए मनाना कितना कठिन था?
– शबाना जी मेरी दोस्त की तरह हैं. शबाना जी को स्क्रिप्ट पसंद आयेगी तो वह हां कहेंगी ही. शबाना जी को मैं काफी पहले से जानता हूं. मैं उनके घर पर भी काफी जाता रहा हूं. शबानाजी और मैं दोनों ही एक तरह की वर्ल्ड की फिल्मों को पसंद करते हैं, तो वहां से भी शबाना जी को यह पता है कि मेरा थॉट प्रोसेस क्या है. इससे भी मदद मिली. उन्होंने हां, कहा और फिर थोड़ा नर्वस हुआ कि उन्हें डायरेक्ट करूंगा. लेकिन शबाना जी बिल्कुल सामान्य हो जाती हैं. उन्हें देख कर तो लगता है कि जैसे आज ही अभिनय शुरू किया है. वह जिस तरह से वर्कशॉप करती हंै, अपने निर्देशक को सुनती हैं.उनके लिए सम्मान और बढ़ा मेरी नजर में. उनकी भूख आज भी जारी है. मैं मानता हूं कि शबाना जी जहां हैं. वहां आप सेफ हैं.
5. फिल्में बनने पर लोग इस तरह की घटनाओं के बारे में अधिक जान पाते हैं. क्या आप इस बात से सहमत हैं?
– नहीं, मुझे नहीं लगता. जैसे ऐसी किताबें हैं, जो मैंने पढ़ी हैं. और उन पर फिल्में नहीं बनी हैं. लेकिन फिर भी मुझे याद है. यह इस बात पर निर्भर करती है कि उस माध्यम ने उस विषय के साथ कितना न्याय किया है. और लोग इस पर किस तरह रियेक्ट करते हैं. सो, मुझे लगता है कि लोग इस फिल्म को देखना चाहते हैं.
6. शूटिंग अनुभव के बारे में बतायें?
– हमने इस फिल्म की शूटिंग 21 दिनों में पूरी की है और अंडर बजट प्रोजेक्ट है ये. फिल्म भी 2 घंटे की है. हां, लेकिन मेरी कोशिश थी कि नीरजा के संघर्ष को दिखाया जा सके. रियलिटी में 15 घंटे यह संघर्ष जारी रहा था तो मैं चाहता था कि वह संघर्ष कम से कम लोगों के सामने आ पाये.
7. आप चूंकि विज्ञापन की दुनिया से हैं तो यह वजह है कि आप अंडर प्रोजेक्ट काम कर पाते हैं? फिल्म मेकिंग में यह कितना सहयोग कर रहा है.
– जी हां, मैंने विज्ञापन की ुदनिया से ही अनुशासित होना, रिसर्च करना, क्रिस्प रहना, और साथ ही साथ प्लानिंग करना सीखा है. साथ ही विज्ञापन ने ही मुझे सिखाया है कि आप कम शब्दों में किस तरह अपनी बात को लोगों के सामने रख पाते हो.