II अनुप्रिया अनंत II
फिल्म : जय गंगाजल
कलाकार : प्रकाश झा, प्रियंक चोपड़ा, मानव कौल, राहुल भट्ट, मुरली शर्मा
निर्देशक : प्रकाश झा
रेटिंग : 2.5 स्टार
‘जय गंगाजल’ किसी भी लिहाज से फिल्म ‘गंगाजल’ का सीक्वल नहीं है. फिल्म की कहानी एक दूसरे से बिल्कुल नहीं जुड़ी है. कहीं से भी कोई कड़ी नहीं मिलती. पूरी कहानी लकीसराय के बांकीपुर जिले की है. प्रकाश झा प्रशासन और राजनीति की कहानी को दिखाने में माहिर रहे हैं. इस बार उन्होंने निर्देशन और अभिनय दोनों की जिम्मेदारी संभाली है. पहली बार प्रकाश झा किसी फिल्म में अहम किरदार में नजर आ रहे हैं.
वे भोलानाथ सिंह के किरदार में हैं. जो उस जिले के डीएसपी हैं. लोग उन्हें सर्कल बाबू के नाम से जानते हैं. प्रकाश झा ने स्थान और परिवेश के अनुसार अपने सारे किरदारों की भाषा और उनके हाव भाव पर काम किया है. हर किरदार अपने किरदार में रंगे नजर आयें. फिल्म के संवाद, लहजे से फिल्म के अंतराल से पहले कहानी रोमांचित करती है. भोला नाथ सिंह एक भ्रष्ट नेता है और विधायक बबलू पांडे के राइट हैंड हैं.
भोलानाथ सिंह उर्फ बीएन सिंह उर्फ सर्किल बाबू भ्रष्टाचार को फैलाने में पूरा सहयोग करते हैं. किसी आला अफसर का तबादला करना उनकी बायीं हाथ का खेल है. पूरा बांकीपुर जिला भ्रष्टचार के गिरफ्त हैं. बबलू पांडे के गुंडे, मुन्ना मस्तानी, डबलू पांडे जैसे लोग उनकी ईशारों पर नाचते हैं. चुनाव का माहौल है और एक तरफ अवैध तरीके से समांता कंपनी गरीब किसानों की जमीन हथियाना चाहती है. लोग बेबस हैं. और ऐसे में उस जिले में आभा माथूर की एंट्री होती है.
आभा माथूर (प्रियंका चोपड़ा) उस इलाके की एसपी बनती हैं और भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के लिए पूरी तैयारी करती है. प्रियंका ने फिल्म के शुरुआती दृश्यों में काफी प्रभावित किया है और इससे पूरी उम्मीद जगती है कि आगे उनका रोमांचक अंदाज दर्शकों के सामने आयेगा. वह स्टंट करती नजर आयेंगी. लेकिन अफसोस इस बात का है कि आगे के दृश्यों में उनके तेवर उनके संवाद तक ही सीमित रह जाते हैं. उन्हें सीमित दृश्यों में अभिनय करने के मौके मिले हैं.
अफसोस यह है कि हम उन्हें जिस रुतबे में देखते हैं. वह रुतबा उनके एक्शन में नजर नहीं आता. प्रियंका प्रभावशाली अभिनेत्री हैं और इस फिल्म में वह अकेली अपने अभिनय से एक अलग मुकाम हासिल कर सकती थीं. लेकिन अफसोस यह है कि उनके हिस्से में अधिक दृश्य भी नहीं आये हैं. सबसे निराशाजनक बात यह थी कि जब जब गंभीर हादसे हुए. वहां प्रियंका एसपी होने के बावजूद फिल्म की अहम किरदार होने के बावजूद देर से ही पहुंची हैं. उनके किसी कदम से बांकीपुर जिले में कोई बड़े बदलाव नहीं होते. जिसकी पूरी गुंजाईश थी.
इसकी एक बड़ी वजह यह है कि फिल्म में निर्देशक प्रकाश झा बतौर अभिनेता अधिक नजर आये हैं. निस्संदेह वह ट्रेंड अभिनेता नहीं हैं तो कई दृश्यों में यह बात स्पष्ट नजर भी आयी है. लेकिन उन्होंने खुद को चुस्त-दुरुस्त दिखाने की पूरी कोशिश की है. खासतौर से संवाद अदायगी में वे लुभाते हैं. लेकिन कई दृश्यों में उनका अति उत्साह खलता है. बेहतर होता अगर वह प्रियंका के साथ अपने अभिनय की साझेदारी दिखा कर फिल्म की कहानी को राह देते. शुरुआती दृश्यों से लेकर अंत के दृश्यों तक वही अहम किरदार नजर आये हैं.
उनकी फिल्मों की शैली और अंदाज धीरे धीरे धूमिल हो रही है. वे महिला पुलिस ऑफिसर के रूप में एक प्रभावशाली आभा माथूर को प्रस्तुत करने में नाकामयाब रहे हैं. महिला दर्शक उन्हें देख कर प्रेरणा लें. ऐसे कोई दृश्य नहीं हैं. फिल्म केवल फिल्मी ड्रामे के ईद-गिर्द घूमती रह गयी है. मानव कौल को भी अपनी अदाकारी दिखाने के संपूर्ण मौके नहीं मिले हैं. मुरली शर्मा ने अपने किरदार में जान डाली है और उनका किरदार प्रभावित करता है. प्रकाश झा अपने दृश्यों को रचने में माहिर रहे हैं. लेकिन इस बार कई कमियां खलती हैं. एक दृश्य में गांव वालों का खून खौलने लगता है. फिर अगले ही दृश्य में वे नपुसंक हो जाते हैं.
बलात्कार, हत्या, भ्रष्टाचार की घालमेल वाली कहानी हमने पहले भी देखी है. हां, इस फिल्म में किस तरह एक भ्रष्ट पुलिस अफसर का दिल बदल कर एक नेक पुलिस अफसर बनता है. इस पर विशेष ध्यान दिया गया है. प्रकाश झा मानव कौल और प्रियंका चोपड़ा की सहयोग से दृश्यों को गढ़ते और कहानी कहते तो फिल्म कुछ और ही आकार लेती. कहानी में नयापन न होने की वजह बेवजह कहानी लंबी लगती है.
एक खास बात यह रही कि प्रकाश झा ने फिल्म के दृश्यों के साथ माहौल के अनुसार बैकग्राउंड गीतों का सहज उपयोग किया है. प्रियंका तो इस लिहाज से माहिर कलाकार हैं ही कि कम दृश्यों में वे खुद को स्थापित कर लेती हैं. सो, इस बार भी उनका अभिनय शानदार है. लेकिन दृश्यों के सीमित होने की वजह से इस किरदार में वह पूरी तरह निखर कर सामने नहीं आ पायी हैं और इस बात का बेहद अफसोस होगा प्रियंका के दर्शकों को.