II उर्मिला कोरी II
फिल्म: कपूर एंड संस
निर्माता : धर्मा प्रोडक्शंस
निर्देशक: शकुन बत्रा
कलाकार: सिद्धार्थ मल्होत्रा,फवाद खान, आलिया भट्ट,रिषी कपूर, रत्ना पाठक, रजत कपूर और अन्य
रेटिंग: तीन
प्रेम कहानियों के साथ साथ पारिवारिक फिल्में धर्मा प्रोडक्शन की खासियत रही है. लंबे समय बाद धर्मा प्रोडक्शन एक बार फिर पारिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी को लेकर आया है ‘कपूर एंड संस’ (सिंस 1921) के जरिए, लेकिन अलग अंदाज में. फिल्म का ट्रीटमेंट हो या संवाद पूरी तरह से आज की युवा पीढी को ध्यान में रखकर बनाया गया है खासकर मेट्रो सीटिज के युवाओं के मद्देनज़र.
फिल्म की आत्मा सभी के दिलों को छूने में कामयाब नज़र आती है. ‘कपूर एंड संस’ अपने नाम की तरह ही कपूर परिवार की कहानी है. जहां रिश्तों में कई सारे गिरह हैं. पति (रजत कपूर) पत्नी (रत्ना पाठक शाह) में नहीं बनती हैं. भाईयों (सिद्धार्थ मल्होत्रा और फवाद खान) में मनमुटाव है. बेटे को अपने माता पिता से इस बात की शिकायत है कि वह उससे ज्यादा उसके बड़े भाई को चाहते हैं क्योंकि उसका भाई सफल है. कुलमिलाकर कहा जाये तो परिवार एक नहीं है.
सभी अपनी जिंदगी अलग-अलग तरीके से जी रहे हैं. इस परिवार में एक उम्रदराज दादू भी है. जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर है. उनकी बीमारी की वजह से बिखरा हुआ परिवार पांच साल बाद एक बार फिर एक होता है लेकिन क्या वाकई कपूर परिवार दिल से भी एक हो पाएंगे. क्या रिश्तों की गिरह किसी बड़े हादसे का कारण बनेगी. इसी के इर्द गिर्द फिल्म की कहानी बुनी गयी है. फिल्म की कहानी को सबसे ज्यादा प्रभावी उसका ट्रीटमेंट बना जाता है.
फर्स्ट हाफ में फिल्म का ट्रीटमेंट बहुत लाइट है वहीं दूसरे भाग में यह फिल्म आपको भावुक कर जाती है. इंटरवल के बाद कहानी थोड़ी स्लो जरुर है लेकिन वह भी मनोरंजन के स्तर पर खरी उतरती है. आमतौर पर मौजूदा पारिवारिक फिल्में पूर्वानुमेय होने के कारण नीरस लगती है लेकिन शकुन बत्रा की तारीफ करनी होगी. जिस तरह से उन्होंने कहानी को प्रस्तुत किया है. कई सींस को एक ही फ्रेम में दिखाना फिर चाहे वह फिल्म के क्लाईमैक्स के दृश्य हो. बिना मेलोड्रामा के बहुत ही सहज ढंग से बयां करने के लिए शकुन बधाई के पात्र है.
कपूर परिवार में कोई भी परफेक्ट नहीं है. यह बात भी अच्छी लगती है. आमतौर पर पारिवारिक फिल्मों में कुछ सदस्यों को दोषरहित बताया जाता रहा है, भगवान के तुल्य लेकिन यहां मानवीय कमजोरियों को कहानी में अहम स्थान दिया गया है. फिर चाहे कपूर फैमिली हो या टिया के किरदार का शराब के नशे में राहुल को किस करना हो. रिश्तों पर आधारित ये फिल्म अपनी कहानी और अच्छी एक्टिंग की वजह से ज्यादा मजेदार लगती है.
फिल्म मस्ती से भरपूर है खासकर फर्स्ट हाफ. संवाद फिल्म को और ज्यादा मनोरंजक कर जाते हैं लेकिन यह भी कहना होगा कि युवा पीढी को दर्शाने के लिए कई संवाद और कुछ दृश्य इस फिल्म के पारिवारिक टैग पर खरे नहीं उतरते हैं. अभिनय की बात करें तो फिल्म का हर कलाकार खास है. ऋषि कपूर ने अपने किरदार को बहुत ही प्रभावी ढंग से जीया है. वह फिल्म से निकलने के बाद भी याद रह जाते हैं. फवाद खान की बात करें तो जितने वह परदे पर आकर्षक नजर आ रहे हैं. उन्होंने उतना ही बेहतरीन अभिनय भी किया है.
सिद्धार्थ के किरदार में ज्यादा लेयर भले ही नहीं थे लेकिन उन्होंने अपनी भूमिका को सहजता से निभाया है. आलिया के लिए करने को कुछ खास नहीं था हां फिल्म में वह प्यारी बहुत लगी हैं. रत्ना पाठक शाह और रजत कपूर हमेशा की तरह इस बार भी प्रभावित करने में कामयाब रहे हैं. दूसरे कलाकारों ने कहानी में इनका साथ बखूबी दिया है. फिल्म के गीत संगीत की बात करें तो कई सारे नाम इससे जुड़े हैं.
‘चुल्ल’ और ‘बोलना’ गाने रिलीज से पहले ही हिट हो गए है लेकिन फिल्म की कहानी और कलाकारों के अभिनय की तरह संगीत प्रभावी नहीं बन पाया है. बैकग्राउंड स्कोर कहानी के हिसाब से ठीक है. फिल्म की एडिटिंग और सिनेमाटोग्राफी की तारीफ करनी होगी. कुलमिलाकर कपूर एंड संस (सिंस 1921) एक मनोरंजक फिल्म होने के साथ साथ दिल को भी छूती है.