II अनुप्रिया अनंत II
फिल्म : सरबजीत
कलाकार : ऐश्वर्या राय बच्चन, दर्शन कुमार, रिचा चड्डा, रणदीप हुड्डा
निर्देशक : ओमंग कुमार
रेटिंग : 2.5 स्टार
एक आम इंसान की एक छोटी सी चूक ने उससे उसकी जिंदगी के अहम साल ले लिये. सरबजीत नशे की हालत में बॉर्डर के उस पार जा पहुंचा और पाकिस्तानी फौज ने उसे भारतीय जासूस समझ कर कैदी बना लिया. लगभग आठ महीने तक अत्याचार करने के बाद एक आम आदमी यह झूठ स्वीकारने के लिए रजामंद हो जाता है कि वह भारतीय जासूस रंजीत सिंह है और जिसके हाथ पाकिस्तान में हुए बम ब्लास्ट में है.
फिल्म ‘सरबजीत’ सरबजीत की पूरी कहानी दर्शकों के सामने लाती है. खासतौर से उनकी बहन दलबीर कौर किस तरह अपने निर्दोष भाई को बचाने के लिए लगातार संघर्ष करती है. फिल्म एक भाई बहन के निश्छल प्रेम को दर्शाती है. साथ ही वह दो मुल्कों की प्रशासन और सत्ता के मटाधीशों पर भी वार करती है कि सरबजीत ही नहीं, उनके जैसे कितने मासूम और निर्दोष कैदी दोनों मुल्कों में सजा काट रहे हैं.
फिल्म मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले और पाकिस्तान में हुए बम ब्लास्ट की भी घटनाओं को शामिल करती है कि कैसे दोनों मुल्कों में जब बम धमाके होते हैं तो दोनों देशों की आम जनता भी सत्ता के इस भ्रम में खो जाती है कि हर पाकिस्तानी आतंकवादी है और हर हिंदुस्तानी पाकिस्तानियों का दुश्मन है. लंबे संघर्ष के बाद जब घोषणा होती है कि सरबजीत को रिहाई मिलेगी तो अचानक उनके परिवार और उनकी बहन की आंखें फिर से नम हो जाती हैं.
चूंकि उनके साथ किस्मत ने एक बार फिर से मजाक किया है. दरअसल सरबजीत की जगह सूरजीत को रिहाही मिलती है. फिल्म में दलबीर कौर साबित करती हैं कि उनका भाई रंजीत सिंह नहीं है. रंजीत सिंह भारत में पकड़ा भी जाता है. लेकिन फिर वह रिहा हो जाता है. अपनी जिंदगी के अहम 21 साल सरबजीत ने जेल में कांटे. कैद सरबजीत को हुई थी. लेकिन सजा तो उनका पूरा परिवार काट रहा था.
रणदीप हुड्डा ने अपने हर हाव-भाव से चौंकाया है. उन्होंने सरबजीत का किरदार बेहद संजीदगी से निभाया है. उन्हें देख कर वास्तविक सरबजीत की बेबसी और लाचारी की दर्द समझ आती है. फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन सरबजीत की बहन के किरदार में हैं. दलबीर कौर ने अपनी बातचीत में कहा था कि वे बेहद शांत स्वभाव से पूरी लड़ाई लड़ती आयी हैं. लेकिन निर्देशक ने फिल्म में दलबीर के किरदार को हमेशा लाउड ही रखा है.
कई बार दलबीर बेवजह स्क्रीन पर चिखती-चिल्लाती नजर आयी हैं. कई बार उनका हीरोइनज्म उन पर हावी नजर आया है. खासतौर से शुरुआती दृश्यों में. हालांकि कुछ दृश्यों में वे प्रभावित करती हैं. एक दृश्य में जहां वे अकेले कमरे में अपने भाई की रिहाई का जश्न मना रही हैं. वे भावविभोर करता है. लेकिन शेष दृश्यों में उनका अत्यधिक चिल्लाना बोर करता है.
सरबजीत का दुख हम तब अधिक महसूस करते हैं, जब हम रणदीप का अभिनय देखते हैं. चूंकि उन्होंने एक लाचार, बेबस इंसान की भूमिका को बखूबी जिया है. वे किरदार में विश्वसनीय नजर आये हैं. सरबजीत के साथ जेल के दृश्यों में भी रणदीप का अभिनय ऐश्वर्य पर हावी नजर आता है. लेकिन सरबजीत और उनकी बहन का तो भावनात्मक जुड़ाव है. वह कई बार खोता नजर आता है.
रिचा चड्डा ने सीमित दृश्यों में संजीदगी से अभिनय किया है. दर्शन कुमार का किरदार भी खास प्रभावित नहीं कर पाता. निर्देशक ने फिल्म को पूरी तरह वृतचित्र न रख कर सिनेमेटिक लिबट्री भी ली गयी है .लेकिन फिर भी हम सरबजीत की जिंदगी के संघर्ष को इस माध्यम से कुछ हद तक देख पाते हैं. लेकिन इस फिल्म की बड़ी कमजोरी यह है कि फिल्म के संवाद आम पाकिस्तानी विरोधी संवाद ही हैं, जिनकी वजह से भड़ास वाली भावना अधिक सामने आती है. जबकि इस फिल्म को भावनात्मक स्तर पर मांझना चाहिए था.