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फिल्म रिव्यू : ‘तीन’ सस्पेंस- थ्रिलर लेकिन क्लाइमेक्स चौंकाता नहीं

निर्माता सुजॉय घोष निर्देशक रिभु दास गुप्ता कलाकार अमिताभ बच्चन,नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी,विद्या बालन, सब्यसाची रेटिंग तीन -उर्मिला कोरी- सस्पेंस और थ्रिलर जॉनर को हिंदी फिल्मकारों ने कम ही अपनी फिल्मों की कहानी में महत्व दिया है. कहानी जैसी उम्दा सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म बना चुके सुजॉय इस बार निर्माता के तौर पर तीन फिल्म लेकर आये हैं. […]

निर्माता सुजॉय घोष

निर्देशक रिभु दास गुप्ता
कलाकार अमिताभ बच्चन,नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी,विद्या बालन, सब्यसाची
रेटिंग तीन
-उर्मिला कोरी-

सस्पेंस और थ्रिलर जॉनर को हिंदी फिल्मकारों ने कम ही अपनी फिल्मों की कहानी में महत्व दिया है. कहानी जैसी उम्दा सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म बना चुके सुजॉय इस बार निर्माता के तौर पर तीन फिल्म लेकर आये हैं. निर्देशक रिभु दासगुप्ता की यह फिल्म कोरियाई फिल्म मोंटाज का हिंदी रीमेक है. फिल्म की कहानी कोलकाता में रह रहे एक बूढ़े दंपती जॉर्ज और नैंसी की है. जिसकी नातिन एंजेला का पहले अपहरण होता है फिर उसकी मौत हो जाती है. इस घटना को आठ साल बीत चुके हैं लेकिन जॉर्ज की जिंदगी वही थम सी गयी है. जॉर्ज को पूरा विश्वास है कि वह अपनी नातिन के हत्यारे को उसके किये की सजा दिलवा कर रहेगा. इसी के लिए वह रोज पुलिस थाने के चक्कर लगा रहा है लेकिन पुलिस के पास कोई सुराग नहीं है.

पुलिस और जॉर्ज से जुड़े लोग उसकी इस ज़िद से परेशान हैं. इसी बीच शहर में एक और बच्चे का अपहरण ठीक उसी ढंग से हो जाता है. जिस तरह से एंजेला का हुआ था. क्या यह वही अपराधी है. जॉर्ज किस तरह से इस अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचायेगा. यही फिल्म की कहानी में बुना गया है. फिल्म की कहानी की प्रस्तुति नयापन लिये है. फिल्म में बदले की भावना को कानून के जरिये पूरा करने की ललक दिखती है. फिल्म की कमज़ोर कड़ी इसकी रफ़्तार है. खास कर पहले हाफ की. जिस वजह से फिल्म पर ध्यान नहीं रह जाता है और एक थ्रिलर फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यही होनी चाहिए की हर दृश्य खास हो.

एक दृश्य को मिस करने का मतलब कहानी का आगे बढ़ जाना है लेकिन यहां ऐसा नजर नहीं आया. फ़िल्म का क्लाइमेक्स चौंकाता नहीं है. कहीं न कहीं क्लाइमेक्स की परत फिल्म देखते हुए दर्शक के दिमाग में पहले ही खुल चुकी होती है. इन खामियों को छोड़ दे तो यह एक एंगेजिंग फ़िल्म है. कोलकाता भी एक अहम पात्र की तरह फ़िल्म में नज़र आता है. विक्टोरिया,बस और ट्राम के साथ साथ इस बार बंगाली बाड़ी ,बंद पड़ी मिलें और दूसरे कम लोकप्रिय जगह इस फ़िल्म में नज़र आये हैं. ये रियल लोकेशन फिल्म की कहानी को प्रभावी बनाते हैं . फ़िल्म का नाम तीन क्यों दिया गया है यह फ़िल्म देखते हुए समझ नहीं आयी.

अमिताभ,विद्या और नवाज़ के किरदार की वजह से तो सब्यसांची का किरदार भी फ़िल्म की कहानी में अहम् था. ऐसे में फ़िल्म का नाम तीन क्यों दिया गया यह बात साफ़ नहीं हो पायी है. अभिनय की बात करें तो यह फ़िल्म पूरी तरह से अमिताभ की फ़िल्म है. निर्देशक ने उन्हें सभी किरदारों की तुलना में सबसे ज़्यादा महत्व दिया है और वे एक बार फिर से अपने अभिनय के ज़रिये प्रभाव छोड़ने में कामयाब दिखे हैं. 70 साल के बूढ़े के बॉडी लैंग्वेज से लेकर हर बात को उन्होंने आत्मसात किया है खासबात यह है कि पीकू और वज़ीर से अलग ढंग से उन्होंने इस उम्रदराज़ किरदार को जिया है.

शायद यही वजह है कि उन्हें महानायक कहा जाता है. नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी अपनी भूमिका में जमे हैं लेकिन वह अपनी पिछली फिल्मों की तुलना में कमतर नज़र आये हैं. विद्या बालन के हिस्से गिने चुने दृश्य ही हैं लेकिन इस बार प्रभावित नहीं कर पायी हैं. सब्यसांची के हिस्से में ज़्यादा सीन्स भले ही नहीं है लेकिन वह अपने अभिनय से सशक्त उपस्थिति दर्शाने में कामयाब रहे हैं. फ़िल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. जॉर्ज की बेबसी हो या इंसाफ पाने की ज़िद को ये गीत सामने लाने में कामयाब रहे हैं. फ़िल्म के संवाद कहानी और उससे जुड़े परिवेश के अनुरूप है. कुलमिलाकर यह मर्डर मिस्ट्री फ़िल्म अपने अलहदा प्रस्तुतिकरण और अमिताभ के बेजोड़ परफॉरमेंस की वजह से कुछ खामियों के बावजूद फ़िल्म से आपको जोड़े रखती है.

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