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चार दशक से भी ज्यादा समय से हिंदी फिल्म उद्योग में सक्रिय और सफल महानायक अमिताभ बच्चन इन दिनों फिल्म तीन में नजर आ रहे हैं. वह अपनी हर फिल्म को एक नौकरी की तरह देखते हैं. उसके साथ न्याय करना वह एक्टर के तौर पर अपनी जिम्मेदारी मानते हैं. उर्मिला कोरी और अनुप्रिया से […]

चार दशक से भी ज्यादा समय से हिंदी फिल्म उद्योग में सक्रिय और सफल महानायक अमिताभ बच्चन इन दिनों फिल्म तीन में नजर आ रहे हैं. वह अपनी हर फिल्म को एक नौकरी की तरह देखते हैं. उसके साथ न्याय करना वह एक्टर के तौर पर अपनी जिम्मेदारी मानते हैं. उर्मिला कोरी और अनुप्रिया से हुई बातचीत
आपकी पिछली फिल्म वजीर के बाद यह फिल्म भी एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है. एक ही जॉनर की फिल्म एक के बाद एक क्यों
मिस्ट्री और थ्रिलर फिल्म में एक प्रश्नचिंह ढूंढना होता है लेकिन हर बार अलग कुछ ढूंढना पडता है. मैं जॉनर पर ध्यान नहीं देता हूं. कहानी पर ध्यान देता हूं . ये समझता हूं कि चलो एक और नौकरी मिल गयी है.उसे अच्छे से करना है. जॉनर गिने चुने होते हैं. एक्शन, कॉमेडी, रोमांस और सस्पेंस थ्रिलर लेकिन उनसे जुड़ी अनगिनत कहानियां होती आयी है. उन्हीं अलग अलग कहानियों से जुड़ना चाहता हूं.
एक एक्टर के तौर पर आपकी ख्वाहिश परदे पर क्या कुछ अलग क्या कुछ नया करने की शेष है
मैं सोच नहीं पाता हूं. क्या हमें करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए. जो लोग बनाते हैं उनको ज्यादा पता है अच्छी बात है कि कुछ न कुछ निकलता है. अच्छा लगता है कि लोग अलग सोच रहे हैं. आजकल की जो पीढी है. आजकल की जो फिल्म परिवार है. अलग अलग सोच के हैं. अलग अलग तरह की फिल्मों के लिए जनता को बहुत श्रेय देना चाहता हूं. जनता अब निर्धारित कर रही है. कहानी अलग होनी चाहिए। उनका साफ कहना है आप अलग बनाइए वरना हम फिल्म देखने नहीं आएंगे. टेलिविजन है इंटरनेट है. अलग अलग तरह के पदार्थ मनोरंजन के लिए मौजूद है. ड्राईंग रुम से हटाकर सिनेमा घरों में लाना एक चैलेंज बन गया है. हम तो विदेशी हमारे आंगन में आ गए हैं और प्रबल भी हो गए हैं. मुझे याद है सन १९९५ मेरा प्रोडक्शन हाउस एबीसी्एल भारत पहला कॉरपोरेट था. मैं अमेरिका गया हुआ था.
अक्सर फॉक्स, सोनी जैसे कई प्रोडक्शन हाउस की तरफ से मुझे मुंबर्ई में मिलने के लिए चिट्ठियां आती थी. जब मैं अमेरिका गया तो अपने वहां रह रहे वकील दोस्त से इस बारे में बात की तो उसने कहा कि तुम्हें मिलना चाहिए। मैं मिलने पहुंच गया. वहां पहुंचा तो उनलोगों ने एक घंटे तक बिना रुके हमारी भारतीय फिल्में और कलाकारों के बारे में बात की. मैंने जब इस बारें में जब अपने वकील दोस्त को बताया तो उसने कहा कि हॉलीवुड जल्द ही बॉलीवुड के लिए चुनौती बनने वाला है. उनकी पूरी तैयारी हो रही है. उसकी बात आज सही साबित हो रही है. हॉलीवुड जहां गया है. उसने बर्बादी की है. जमर्नी, फ्रांस , ब्रिटेन सहित कई जगहों का सिनेमा इस बात का गवाह रहा है.हमें बने रहना तो उनकी फिल्मों से गुणवत्ता में मुकाबला करना होगा.
रिभु नवोदित फिल्मकार हैं उन्हें आपको मनाना फिल्म तीन के लिए मनाना कितना आसान था.
मैंने उनके साथ धारावाहिक युद्ध में काम किया है. जब युद्ध सीरियल की विचारधारा बनी. अनुराग ने कहा कि मैं व्यस्त हूं.मैं पूरी तरह से इस प्रोजेक्ट से नहीं जुड़ पाऊंगा. रिभु इसका निर्देशक करेंगे. मैं उसके बाद देख लूंगा. उसी दौरान रिभुु ने मुझे कहा कि मैं आपके साथ फिल्म बनाना चाहता हूं जब सुजॉय प्रस्ताव भेजा तो मैंने हां कह दिया.
पीकू के बाद इस फिल्म की शूटिंग भी कोलकाता में ,क्या इस कहानी का भी एक अहम पात्र कोलकाता है.
सच कहूं तो शुरुआत में इस फिल्म की शूटिंग कोलकाता में नहीं होनी था क्योंकि पीकू की तरह इसको हमें नहीं दिखाना था. गोवा में हम इस फिल्म की शूटिंग करने वाले थे लेकिन वहां हमे परमिशन नहीं मिला. जिसके बाद कोलकाता में शूटिंग हुई. यह बंगाली की कहानी नहीं बल्कि एंग्लो बंगाली जॉन विश्वास की कहानी है. जिसकी भाषा में बंगालियत नहीं होगी.वैसे कोलकाता में बहुत सारे एंग्लो बंगाली भी रहते हैं. वहां चाइनीज की भी बहुत संख्या है. एक अलग चाइनीज मार्केट ही है. जूते अच्छे बनाते हैं. मुझे वहां के जूते बहुत पसंद हैं.
इस फिल्म में आपने गाने का अनुभव कैसा रहा
शुरुआत में गाना हम रखना नहीं चाहते थे. इस तरह का किरदार गाना गाए यह बात जम नहीं रही थी लेकिन फिर महसूस हुआ कि इस गीत के जरिए यह किरदार अपनी अंदरूनी भावना व्यक्त करता है. पोती की तस्वीर है उससे कैसे बात कर रहे होता है.इस गाने के जरिए वह कर रहा है. खुलकर नहीं कर नहीं गा रहा है. दबी आवाज में गा रहा है.
कोलकाता का आपकी जिंदगी में कितना महत्व है.
बहुत महत्व है. पहली नौकरी जो मिली थी. वह कलकत्ते में ही मिली थी. हमारे समय में नौकरी पाना है तो ग्रेजुएट हो जाओ. आजकल इतनी विधाएं हो गयी है. बच्चे कहीं भी जाए.बहुत सारे फील्ड़ हैं. हमारे समय में ग्रेजुएशन के पूरे होने का इंतजार होता था और उसके बाद नौकरी के लिए निकल जाते थे. किसी ने कहा कि आॅल इंडिया रेडियो में चले जाओ वहां भी गए मगर वहां रिजेक्ट हो गए. जिसके बाद किसी ने कहा कि अगर ग्रेजुएशन किसी अच्छे कॉलेज से की है तो कलकत्ते में काम बन सकता है .वहां नौकरी मिल गए. सात आठ साल वहां बिताए. पहली बार स्वतंत्रता का एहसास इसी शहर ने करवाया. पहली तनक्वाह. अपने आपको संभालना . क्या खाना है. कहां कितना पैसा देना है.सबकुछ खुद से करना होता था. यही पहली बार सीखा. आठ साल के बाद मुंबई आ गया तो फिर बंगाल जया के रुप में घर आ गया. उसके बाद फिल्मों की शूटिंग के सिलसिले में कई बार गया. यारना, दो अंजाने , लास्ट लेयर से पीकू तक कई बार यहां आया. रिषी दा सहित कई बंगाली निर्देशकों से भी जुडा रहा. जब भी शूटिंग के लिए आया .दो तीन बजे रात निकल जाते हैं शहर को देखने के लिए. दिन में जाने का अवसर नहीं मिल पाता है. जब भी वहां जाता हूं पुरानी यादें ताजा हो जाती है. बंगाल के लोग का पैशन काबिलेतारीफ है. वहां बहुतही होनहार लोग है. खेल हो संगीत हो या कला हो. बहुत सोच समझकर चुनतेहैं. समय लगता है लेकिन खुद को साबित करते हैं. यहां के लोग बहुत प्यार देते हैं. उनका व्यवहार बदलता नहीं है. मैं तो अपने सभी कलाकार साथियों को कहता हूं कि जब भी आप डिप्रेसड हो जाओ इस शहर चले जाओ. वहां का प्यार और अपनापन देखकर आपका मनोबल बढ जाएघा. जब आप जाएंगे आप डिप्रेसड हो जाओ वहां जाए मनोबल बढ़ जाएगा.यहां के लोगों से बार बार मिलने का मन होता है.
इस फिल्म में आपने स्कूटर चलाना भी सीखा कैसा अनुभव था
स्कूटर चलाए मुद्दत हो गयी थी. कॉलेज में चलायी थी. जिनके पास स्कूटर था वो हीरो जिनके पास गाड़ी उनका तो पूछों मत. एकाध स्कूटर ही हमारे यूनिवर्सिटी में हुआ करती थी. हमेशा लाइन लगी रहती है.मेरा भी नंबर लग जाता था. उन दिनों स्कूटर चलाने का बहुत इंतजार होता था. इस फिल्म के लिए चलाना था. आदत नहीं होती है तो फिर स्कूटर चलाने में डर लगता है. भाग्यवश मैं उन्हीं दिनों टीवीएस का ब्रैंड अंबेसडर बनाया गया है तो स्कूटर मिल गया . उसको चलाया.रात में अभ्यास किया. कोलकाता में भी शूटिंग के दौरान अभ्यास किया है. वैसे इस फिल्म में मेरा एक मध्यमवर्गीय बंगाली का किरदार है. ऐसे में मुझे पुरानी सी स्कूटर दी गयी है.कभी कहां उखड़ जाएगा. गिर जाएगा. पता नहीं है.
इस फिल्म में आपके साथ नवाजुद्दीन सिद्धकी भी है. इन दिनों वह अपने अभिनय से फिल्म दर फिल्म सबको प्रभावित कर रहे हैं. आपका क्या कहना है.
जी हां वह बहुत ही टैलेंटेड है. फिल्म दर फिल्म वह खुद को साबित कर रहे हैं.मैंने उनके साथ शूजीत सरकार की फिल्म शूबाइट की थी. उस फिल्म में उनका रोल छोटा सा था लेकिन मैं उसी फिल्म में उनसे प्रभावित होने से खुद को नहीं रोक पाया. मुझे समझ आ गया था कि यह अपनी पहचान बनाने में जरुर कामयाब रहेंगे. वैसे मुझे यंग जेनरेशन के एक्टर्स के साथ काम करने में मजा आता है. काफी कुछ सीखने को मिलता है. हम सेट आइडियाज के साथ आते हैं. यंग जेनरेशन का अपना तरीका होता है. उनके साथ काम करते वक्त बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
अभी हाल ही में खबर आयी कि आप अपने पिता डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन की सभी कविताओं को अंग्रेजी रुपांतरण करने वाले हैं ऐसी क्यों जरुरत महसूस हुई.
आजकल की पीढी शायद ही कविता पाठ नहीं करती है. संस्कृति की बातें कम करते हैं. साहित्य में ज्यादा रुचि है. हिंदी भाषी हैं तो हिंदी नहीं बोलते हैं. मराठी हैं तो मराठी में बात नहीं करते हैं. अंग्रेंजी ही उनकी बोलचाल की भाषा हो गयी है. आज की पीढी को बाबूजी की साहित्य से जोड़ने के लिए ही लगा कि अनुवाद की जाए. यह जया का सुझाव भी था. बाबूजी की मशहूर रचना मधुशाला १९३३ लिखी गयी थी. १९४० में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक प्रोफेसर ने उसका अंग्रेजी में अनुवाद किया था. बाबूजी की सौं वी वर्षगांठ पर हमने एक तरफ उनकी हिंदी रचना तो दूसरी तरफ उसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया था. मैं जब कभी विदेश जाता हूं तो अपने वहां के दोस्तों को मैं अंग्रेजी में बाबूजी की रचनाएं यदा कदा सुना देता था. उनमे से बहुत से लोग बहुत गुणी और ज्ञानी है. उन्होंने मुझे कहा कि वह इसमे हमारी मदद करेंगे. वह बाबूजी की रचनाओं को लय में लाकर अनुवाद कर रहे हैं.
आपके लिखे कॉलम की बहुत ही चर्चा होती है क्या आप भी अपनी पिता की तरह कुछ लिखते हैं.
जो भी मैं लिखता हूं, वो तुकबंदी है. जो कोई भी कर सकता है. वैसे कवि होने के सवाल पर मां जी कहती है कि घर में एक कवि काफी है.
इन दिनों सोशल मीडिया आपके और नरेंद्र मोदी की दोस्ती की बातें अक्सर आती रहती हैं. पनामा मामले में भी आपका नाम भी आया था.
पनामा मामले पर हमने बयान दिया है. जितनी भी नोटिस और समन जारी किए गए उस पर मैंने जवाब भेजा है और आगे भी भेजूंगा. जहां तक बात प्रधानमंत्री जी से दोस्ती की है तो ऐसा कुछ नहीं है. गुजरात राज्य का ब्रांड अंबेसडर बनना पूरी तरह से इत्तेफाक था. हमारी प्रोडक्शन हाउस ने फिल्म पा बनायी थी. सबने कहा कि टैक्स फ्री करना चाहिए तो हमने गुजरात, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में अपनी फिल्म भेजी थी.
उस वक्त नरेंद्र मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने कहा कि आपको फिल्म दिखानी पड़ेगी. उसी दौरान हमारी मुलाकात हुई थी. उसी दौरान जब बैठे तो मालूम हुआ कि आर्कोलॉजिकल साइट्स पूरे भारत में सबसे ज्यादा गुजरात में ही है. उन्होंने कहा कि आपलोग यहां आकर शूटिंग करें. मैंने कहा कि आपलोग इस बात को प्रचारित करिए.अपने जरिए बताइए. दूसरे दिन उनकी पूरी टीम आ गयी और मैं गुजरात का ब्रांड अंबेसड़र बन गया.
आप सोशल साइट्स पर सबसे ज्यादा लोकप्रिय और एक्टिव सेलिब्रिटिज हैं लेकिन बहुत लोग इनका दुरुपयोग भी करते हैं. आपका क्या कहना है.
सबकुछ आना चाहिए. हर चीज का अच्छा है तो बुरा पक्ष भी. सोशल साइटस के माध्यम से सबकेपास एक आवाज है. अब कम से कम पता तो चल जाता है. लोगों का किसी मुद्दे पर क्या विचार है. प्रत्येक इंसान मेंकुछ न कुछ कमियां रहती है.कमियों की वजह से क्या हम दोस्ती या रिश्ते नहीं बनाते हैं तो सोशल साइट्स को क्यों बैन.मैं अपने ब्लॉग की बात करूं तो बकायदा एक रिस्पांस कॉलम है .
ऐसे डिजाइन किया है जहां मैं लोगों के विचार के नीचें अपना विचार रखूं. मुझे वह क्रिट्क्सि की तरह लगते हैं. जिस तरह से आप फिल्में देखते हैं फिर उनका रिव्यूज करते हैं. उसी तरह वह लोग भी करते हैं. कई बार हम अपनी फिल्मों और अभिनय में वह खामियां नहीं देख पाते हैं. जो ये लोग देख लेते हैं इसलिए अगर वह मेरे किसी परफॉर्मेंस या फिल्म के खिलाफ लिखते हैं तो भी मैं पढता हूं. अगली बार ध्यान रखता हूं. हां अश्लील शब्दों से मुझे परहेज है. वो कोई लिखता है तो फिर मैं उसे समझाता हूं फिर भी लगा रहता है तो ब्लॉक कर देता हूं.
आपने अपने कैरियर में उतार चढ़ाव का लंबा दौर देखा हैं अक्सर लोग कहते हैं कि युवा पीढ़ी सफलता जल्दी पाना चाहती हैं इसलिए वह परेशानियों से घबरा जाती हैं. आप क्या युवा पीढ़ी को टिप्स देना चाहेंगे.
हम टिप्स विप्स नहीं दे सकते हैं. चुनौतियों हर इंसान के सामने आतीहै. यही जीवन है. न करेंगे सामना तो कैसे जीएंगे. प्रयास करते रहना चाहिए. यही जिंदगी है. यहां पर मैं बाबूजी की एक बात को फिर से दोहराना चाहूंगा. करोड़ों बार दोहरा चुका हूं. मन का हो तो अच्छा न हो तो और अच्छा.
आपके बंगले के नाम हमेशा ही चर्चा का विषय बने रहते हैं उनके नामों के बारे में बताएं
प्रतिक्षा नाम बाबूजी के एक कविता पर है. स्वागत यहां सबके लिए , नहीं किसी के लिए प्रतिक्षा पर आधारित है. दूसरे बंगले का नाम जलसा से पहले मनसा था. हमारी पूर्व पीढी की पहली महिला मनसा के नाम पर था लेकिन कईंयों ने कहा कि यह नाम उस बंगले के लिए सही नहीं रहेगा जिसके बाद मनसा को जलसा बना दिया. बेटी का ब्याह उसी घर से हुआ था. एक हाल ही में छोटी सी जमीन ली है. उसका नाम मनसा रखा है. तीसरे बंगले का जनक नाम भी बाबूजी का दिया हुआ है. .

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