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सिर्फ शोर शराबा है, कहानी गूल

फिल्म :शोरगूल कलाकार : जिम्मी शेरगिल, आशुतोष राणा, नरेंद्र झा, शशि वर्मा, हितेन तेजवानी, ऐजाज खान, सुहा गुजेन निर्देशक : जितेंद्र तिवारी रेटिंग : 1 स्टार ।। अनुप्रिया वर्मा।। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर इलाके में वर्ष 2013 के दंगे को आधार पर इस फिल्म की कहानी लिखी गयी है. लेकिन फिल्म के पहले दृश्य से […]

फिल्म :शोरगूल

कलाकार : जिम्मी शेरगिल, आशुतोष राणा, नरेंद्र झा, शशि वर्मा, हितेन तेजवानी, ऐजाज खान, सुहा गुजेन
निर्देशक : जितेंद्र तिवारी
रेटिंग : 1 स्टार
।। अनुप्रिया वर्मा।।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर इलाके में वर्ष 2013 के दंगे को आधार पर इस फिल्म की कहानी लिखी गयी है. लेकिन फिल्म के पहले दृश्य से ही कहानी व किरदार मेलोड्रामेटिक किरदार में नजर आने लगते हैं. फिल्म में हिंदू-मुसलिम की मोहब्बत से हुए भड़के दंगे की कहानी है. भड़काऊ संवादों और भारी भरकम संवादों का इस्तेमाल कर यही कोशिश की गयी है कि दर्शक इस भ्रम में रहें कि वह किसी रियलिस्टिक फिल्म को देख रहे हैं.
जबकि हकीकत यह है कि फिल्म में अच्छे कलाकारों के जमावड़े के बावजूद फिल्म बिल्कुल अपील नहीं करती. निर्देशन के लिहाज से भी ऐसा प्रतीत होता है, जैसे उन्हें सारे किरदारों को अभिनय का ककहरा सिखाये बिना ही परफॉर्म करने को कह दिया हो. एक मुसलिम लड़की है, जिसका बचपन का दोस्त रघु है. वह हिंदू है. लेकिन मन ही मन जैनब से प्यार कर बैठा है. जैनब का निकाह तय हो चुका है. लेकिन रघु अपने जज्बात छुपा नहीं पाता. और कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं कि शहर का माहौल बिगड़ जाता है. आशुतोष राणा गांव के चौधरी की भूमिका में हैं, जो हिंदू हैं लेकिन मजहब का मतलब इंसानीयत मानते हैं. जिम्मी शेरगिल विधायक की भूमिका में हैं, जो अपने स्वार्थ के लिए राजनीति खेलता रहता है. नरेंद्र झा मुसलिम समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं फिल्म में.
पूरी फिल्म में न तो किसी किरदार को बखूबी गढ़ने की कोशिश की गयी है. न ही किरदारों ने सही तरह से परफॉर्म किया है. कहानी में न तो प्रेम कहानी ही उभर कर सामने आ पायी है और न ही राजनीति का खेल ही सही तरीके से सामने आ पाया है. और न ही यह हकीकत के थोड़े भी करीब पहुंची है. ऐसी फिल्में पहले भी रिलीज होती रही हैं. यह फिल्म 2016 की फिल्म है.यह विश्वास नहीं होता. जैनब का किरदार निभा रहीं सुहा गुजैन ने सोनाक्षी सिन्हा की नकल
करने की पूरी कोशिश की है. उनके संवाद, चेहरे के हाव-भाव में उनकी असहजता साफ नजर आ रही है. आश्चर्य यह है कि जिम्मी शेरगिल, नरेंद्र झा और आशुतोष राणा जैसे बेहतरीन कलाकारों ने क्यों इस फिल्म के लिए हामी भरी. जबकि इस फिल्म में उनकी क्षमता का सिर्फ दहन ही हुआ है. खून-खराबा और शोर शराबे से फिल्म की कहानी ऊपर नहीं उठ सकती. यह बेहद जरूरी है कि हर पहलुओं पर काम हो. हितेन तेजवानी और ऐजाज छोटे परदे के बड़े कलाकार हैं, लेकिन फिल्म में वे मिस-फिट ही नजर आये हैं. फिल्म में कोई दिशा नजर ही नहीं आती. फिल्म हर लिहाज से दिशाविहीन नजर आयी है और वह प्रभावित नहीं करती.

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