II उर्मिला कोरी II
फिल्म : मोहेंजो दारो
निर्माता : सुनीता गोवारिकर
निर्देशक : आशुतोष गोवारिकर
कलाकार : रितिक रोशन, पूजा हेगड़े, कबीर बेदी, अरुणोदय सिंह, नितीश भरद्वाज, नरेंद्र झा, मनीष चौधरी
रेटिंग: ढाई
‘जोधा अकबर’ के छह साल बाद निर्देशक आशुतोष गोवारिकर और अभिनेता रितिक रोशन की जोड़ी इतिहास से पूर्व की कहानी यानि ईसा से 2016 साल पहले की सभ्यता को फिल्म ‘मोहेंजो दारो’ से सामने लेकर आते हैं. जब फिल्म से आशुतोष जैसे जहीन निर्देशक का नाम जुड़ता है तो इतिहास के पुख्ता होने के साथ-साथ कहानी में उसकी प्रस्तुति दिलचस्प होने की उम्मीद जगती है.
लेकिन उस कालखंड के पुख्ता साक्ष्य नहीं है जिससे आषुतोष अपना संसार रचने की पूरी छूट मिली है लेकिन इतनी छूट के बावजूद कहानी को वो प्रभावी नहीं बना पाए हैं. कहानी एक छोटे से गांव आमरी से शुरू होती है. वहां सरमन (रितिक रोशन) अपने काका (नितिश भारद्वाज) और काकी के साथ रहता है. नदी के पार मोहेंजो दारो हमेशा उसे अपनी तरफ आकर्षित करता है,
एक दिन नील की फसल के व्यापार के बहाने वह बड़े शहर मोहेंजोदारो पहुंच जाता है. वहां जाकर वह पाता है कि चारों तरफ आरजकता फैली है. मोहेंजोदारो के महम (कबीर बेदी) अपनी शक्तियों की वजह से बलपूर्वक सबके ऊपर राज करने की कोशिश करता है जिसमें उसके बेटे मूंजा (अरुणोदय सिंह) सहित कई लोग शामिल हैं. इस अराजकता के बीच सरमन की मुलाकात चानी (पूजा हेगड़े) से होती है.
परिस्थितियां कुछ ऐसी बनती है कि चानी के प्यार को पाने के लिए वह महम को चुनौती देता है. इसी बीच उसे कुछ ऐसी बातें भी पता चलती है जिसके बारे में उसे कभी भी नहीं बताया गया था. सरमन का अतीत भी मोहेंजोदारो से जुड़ा हुआ है. क्या है वह अतीत. किस तरह से महम की मनमानी और लालच को सरमन रोकेगा ,यही फिल्म की आगे की कहानी में छिपा है.
मोहेंजो दारो की विध्वंश के असल घटनाक्रम को भी फिल्म की इस कहानी में जोड़ा गया है. फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है ,ऐसी कहानी अब तक हम कई फिल्मों में हम देख चुके हैं जब नायक दबे कुचले लोगो का प्रतिनिधित्व करता है फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले इस फिल्म की सबसे बड़ी खामी है. जिसमें ना ही इतिहास के लिए कोई उत्सुकता जगती है, ना ही रोमांस और ड्रामा की इतनी पकड़ है कि आप इसे सिनेमैटिक आर्ट का एक बेहतरीन नमूना बता सकें.
हाँ मोहेंजोदारो को कैनवास को बड़ा बनाने आसुतोष ने डिटेल्स के साथ पेश किया है. फिल्म के लुक पर काम किया गया है. मोहेंजोदारो एक बहुत विकसित नगर रहा है इसके साक्ष्य मिलते हैं. इस बात को फिल्म में भी दिखाया गया है. उच्च नगर नीचला नगर ,अच्छे शहर की सड़कें, लोगों के रोजी रोटी कमाने के काम या वजन तोलने के माध्यम, उस दौर के अलग अलग सभ्यताओ को भी व्यपारियों के ज़रिये दर्शाया गया है.
जानवरों और हथियारों का भी जिक्र है वीएफएक्स के इस्तेमाल में ज़रूर वह चूकते नज़र आते हैं. फिल्म के क्लाइमेक्स वाले सीन को और ज़्यादा प्रभावी बनाया जा सकता था. आज इतने साधन है कि उस दृश्य को हिंदी सिनेमा का यादगार दृश्य बनाया जा सकता था अभिनय पक्ष में रितिक रोशन ने अपने किरदार और कहानी के अनुरूप अभिनय किया है. वैसे रितिक का यह अंदाज़ हम पिछली फिल्मों में देख चुके हैं.
कबीर बेदी महम के किरदार को और ज़्यादा प्रभावी अपने अभिनय से बना जाते है इस में उनकी मदद उनकी दमदार आवाज़ भी करती है. मॉडल पूजा हेगड़े इस फिल्म से हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत कर रही हैं. वह फिल्म में सुंदर नज़र आई है हाँ उनके अभिनय में खामी रह गयी है. मनीष चौधरी पुजारी के किरदार में प्रभावित करते हैं. एक अरसे बाद नितीश भरद्वाज को परदे पर देखना अच्छा लगता है लेकिन फिल्म में उन्हें वह स्पेस नहीं दिया गया है जिसकी उम्मीद थी.
इसके अलावा फिल्म नरेंद्र झा, सुहासिनी मुले जैसे कई मंझे चेहरों का भी बखूबी इस्तेमाल नहीं किया गया है. संगीत की बात करें तो म्यूजिक मोजार्ट ए आर रहमान इस बार चुकते नज़र आए हैं. फिल्म में उनका संगीत औसत है. बैकग्रॉउंग संगीत भी ज़्यादा अपीलिंग नहीं है. फिल्म की भव्यता आकर्षित करती हैं. संवाद कहानी के अनुरूप है कुलमिलाकर मोहेंजोदारो अपने लुक और कलाकारों के अभिनय की वजह से अपील करती है.