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जन्‍मदिन विशेष: …और कवि से गीतकार बन गये शैलेंद्र, जानें कुछ खास?

‘किसी की मुस्‍कुराहटों पे हो निसार’, ‘मेरा जूता है जापानी’, ‘सजन रे झूठ मत बोलो’, ‘प्‍यार हुआ इकरार हुआ’ और ‘खोया खोया चांद’ जैसे कई सुपरहिट और अनमोल गीत लिखनेवाले जानेमाने गीतकार शैलेंद्र आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके गाने आज भी सबके दिलों में बसते है. उनके गानों में बेफ्रिकी और मस्‍तमौलापन तो […]

‘किसी की मुस्‍कुराहटों पे हो निसार’, ‘मेरा जूता है जापानी’, ‘सजन रे झूठ मत बोलो’, ‘प्‍यार हुआ इकरार हुआ’ और ‘खोया खोया चांद’ जैसे कई सुपरहिट और अनमोल गीत लिखनेवाले जानेमाने गीतकार शैलेंद्र आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके गाने आज भी सबके दिलों में बसते है. उनके गानों में बेफ्रिकी और मस्‍तमौलापन तो होता ही था साथ ही उनके गानों को समाज का दर्पण भी कहा जाता था. उन्‍होंने अपने गानों में समाज में मौजूद गरीबी और बेबसी को भी अलग ही अंदाज में दर्शाया.

ऐसे शुरू हुआ सफर…
सरल शब्‍दों से लोगों के दिलों में उतरने वाले शैलेंद्र का जन्‍म 30 अगस्‍त 1923 को रावलपिंडी में हुआ था. मूलरूप से उनका परिवार बिहार के भोजपुर का था. उनके पिता फौज में थे जिस कारण उनकी तैनाती रावलपिंडी में हुई तो घर-बार छोड़ यहां आ गये. पिता के रिटायरमेंट के बाद मथुरा आकर बस गये. शैलेंद्र ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय रेलवे में एक प्रशिक्षु के तौर पर नौकरी की थी. इसी दौरान उन्‍होंने कवितायें लिखनी शुरू कर दी थी. फिल्‍मकार राज कपूर की उनपर नजर पड़ी जब शैलेंद्र एक मुशायरे में अपनी कविता ‘जलता है पंजाब’ पढ़ रहे थे.
राजकपूर और शैलेंद्र की जुगलबंदी
राजकपूर उनकी कविता से बहुत प्रभावित हुए और उनसे काम करने का आग्रह किया. लेकिन शैलेंद्र अपनी नौकरी से खुश थे. शैलेंद्र की पत्‍नी गर्भवती थीं इस दौरान उन्‍हें पैसों की सख्‍त जरुरत पड़ी. इस वक्‍त उन्‍हें राजकपूर की याद आई और उन्होंने उनसे पैसे उधार लिये. इस समय राजकपूर अपनी फिल्‍म ‘बरसात’ को लेकर बिजी थे लेकिन गाने नहीं लिखे गये थे. यह गीत ‘बरसात में हमसे मिले तुम सनम तुमसे मिले हम’ और ‘पतली कमर है तिरछी नज़र है’ थे. इसके बाद तो राजकपूर और शैलेंद्र की शानदार जुगलबंदी शुरू हो गई और शैलेंद्र कवि से गीतकार बन गये.
शैलेंद्र के लिखे गये शानदार गीत
‘अवारा हूं’ (अवारा), मेरा जूता है जापानी (श्री 420), आज फिर जीने की (गाईड), गाता रहे मेरा दिल (गाईड), सबकुछ सीखा हमने (अनाड़ी), अजीब दास्‍तां है ये (दिल अपना और प्रीत पराई), मुड़ मुड़ के न देख (श्री 420), रामैय्या वस्‍तावैया (श्री 420) और क्‍या से क्‍या हो गया (गाईड) जैसे कई शानदार गीत लिखे.
‘तीसरी कसम’ ने तोड़ दिया
शैलेंद्र ने फणीश्‍वर नाथ रेणु की कहानी पर आधारित ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किया. फिल्‍म में राजकपूर और वहीदा रहमान ने मुख्‍य भूमिका निभाई थी. इस फिल्‍म में उन्‍होंने काफी पैसा लगाया लेकिन फिल्‍म नाकाम रही. हालांकि इस फिल्‍म के बेहतरीन निर्माण के लिए उन्हें राष्ट्रपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया. वे कर्ज में डूब गये और बुरी तरह टूट गये. ऐसा कहा जाता है कि इस नुकसान के बाद उन्‍होंने शराब पीना शुरू कर दिया था. ज़्यादा शराब पीने के कारण लिवर सिरोसिस से शैलेंद्र का निधन 14 दिसंबर 1966 को निधन हो गया.

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