FILM REVIEW: मनोरंजन के तारों को छेड़ने में असफल ‘BANJO”

II उर्मिला कोरी II फिल्म: बैंजो निर्माता: एरोज निर्देशक: रवि जाधव कलाकार: रितेश देशमुख,नर्गिस फाखरी,धर्मेश,राम मेनन,आदित्य और अन्य रेटिंग: दो हिंदी फिल्मों में म्यूजिक पर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं. ‘बैंजो’ महाराष्ट्र के निम्नवर्ग में लोकप्रिय वाद्य ‘बैंजो’ और उसके बजाने वालों की कहानी है. फिल्म की कहानी नन्द किशोर की है जो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2016 3:13 PM

II उर्मिला कोरी II

फिल्म: बैंजो

निर्माता: एरोज

निर्देशक: रवि जाधव

कलाकार: रितेश देशमुख,नर्गिस फाखरी,धर्मेश,राम मेनन,आदित्य और अन्य

रेटिंग: दो

हिंदी फिल्मों में म्यूजिक पर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं. ‘बैंजो’ महाराष्ट्र के निम्नवर्ग में लोकप्रिय वाद्य ‘बैंजो’ और उसके बजाने वालों की कहानी है. फिल्म की कहानी नन्द किशोर की है जो अपने तीन साथियों के साथ गणपति और देवी में ‘बैंजो’ बजाता है.

उन्हें दुःख है कि बैंजो प्लेयर्स को आर्टिस्ट नहीं माना जाता बल्कि रास्ते का बैंड माना जाता है इसलिए उन्हें खुद को बैंजो प्लेयर बताने में शर्म आती है. कहानी तब बदल जाती है जब फिल्म में क्रिस की एंट्री होती है. वह अमेरिका से आयी है और न्यूयॉर्क के एक म्यूजिक फेस्टिवल में वह इसी बैंजो बैंड के साथ दो सिंगल्स बनाना चाहती है लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है इसी पर फिल्म की कहानी है.

फिल्म इसके सीक्वल की गुंजाईश पर खत्म हो जाती है. फिल्म की स्क्रिप्ट में सभी चर्चित फार्मूले और मसाले डालने की कोशिश हुई है जैसे दो बैंजो वाले बैंड के बीच दुश्मनी, प्रेम कहानी, जमीन को लेकर बिल्डर और कॉर्पोरेट के बीच भी रस्साकसी है. क्राइम सीन साथ में इमोशनल सीन भी. रितेश का कोई परिवार नहीं है. रितेश अनाथ है.

फिल्म में आखिर तक यह बात नहीं बताई गयी थी कि आखिरकार बिल्डर बुहानी ने रितेश के किरदार को कहा क्या था. कुलमिलाकर फिल्म में मनोरंजन के सारे मसाले डालने के चक्कर में फिल्म बेस्वाद हो गयी है. निर्देशक के तौर पर रवि जाधव मुम्बई के रंग को वह परदे पर लाने में कामयाब हुए हैं लेकिन कहीं न कहीं फिल्म का यही ट्रीटमेंट इसे सिर्फ महाराष्ट्र के दर्शकों को अपील करने तक सीमित कर जाता है.

कई नेशनल अवार्ड फिल्में रवि मराठी में बना चुके हैं. उन्होंने इस फिल्म का निर्देशन करने की जिम्मेदारी क्यों ली यह बात अखरती है. फिल्म का स्क्रीनप्ले बहुत कमज़ोर है. अभिनय की बात करें तो एक अरसे बाद वह सोलो हीरो वाली फिल्म में रितेश नज़र आ रहे हैं. एंग्री यंग मैन और रॉकस्टार के मेल से बने किरदार तराट को रितेश ने निभाने की अच्छी कोशिश की है. हाँ कहीं कहीं वह ओवर द टॉप हो जाते हैं.

रितेश का साथ दे रहे उनकी तीन तिगड़ी की तारीफ करनी होगी. धर्मेश एलांडे इस फिल्म में डांस नहीं कर रहे हैं बल्कि सिर्फ अभिनय कर रहे हैं. खास बात यह है कि वह अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं. राम मेनन और आदित्य भी अपने किरदार से फिल्म में एक अलग रंग भरते हैं. नर्गिस सहित दूसरे कलाकारों का काम औसत है.

फिल्म के संवाद इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है क्योंकि वह इस बोझिल स्क्रीनप्ले को थोड़ा कम बोर बनाते हैं. मोहन कपूर के साथ डिनर वाला दृश्य हंसी से लोट-पोट कर जाता है इसके अलावा भी कई संवाद समय समय पर गुदगुदाते हैं. फिल्म में विशाल शेखर का गीत संगीत कहानी और परिवेश के अनुरूप हैं. फिल्म की सिनेमाटोग्राफी में मुम्बई की झुग्गी झोपड़ियां दिखाई गयी है लेकिन उनकी हताशा और निराशा नहीं बल्कि जोश के रंग से फिल्म को सजाया गया है.

फिल्म के गाने किसी खूबसूरत लोकेशन पर शूट न होकर झोपड़ियों के आसपास शूट होना अलग अनुभव है. कुलमिलाकर ‘बैंजो’ अपने कमज़ोर स्क्रीनप्ले की वजह से मंजोरंजन के सही तारों को छेड़ने में नाकामयाब नज़र आती है.

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